वाशिंगटन,4 सितंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान पर जहाँ उन्होंने भारत को “टैरिफ का महाराजा” कहा था,भारत के पूर्व राजदूत और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जडेजा मोटवानी इंस्टीट्यूट फॉर अमेरिकन स्टडीज के महानिदेशक मोहन कुमार ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने इस दावे को भ्रामक और वास्तविकता से कोसों दूर बताया है। रविवार को न्यूजवीक मैगजीन में प्रकाशित अपने लेख “क्या भारत वाकई टैरिफ किंग है? बिल्कुल नहीं” में कुमार ने विस्तार से समझाया कि भारत के टैरिफ ढाँचे को लेकर जो धारणा बनाई जा रही है,वह व्यापक तो है,लेकिन काफी हद तक भ्रामक भी है।
मोहन कुमार ने तर्क दिया कि अमेरिका द्वारा शुरू किया गया टैरिफ युद्ध दरअसल विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मूलभूत सिद्धांतों और समझौतों का उल्लंघन है। हालाँकि,उन्होंने यह भी माना कि डब्ल्यूटीओ लंबे समय से निष्क्रिय स्थिति में है और वैश्विक व्यापार विवादों के समाधान में उसकी प्रासंगिकता घट गई है। बावजूद इसके,उनका मानना है कि किसी भी देश के खिलाफ इस तरह से “टैरिफ किंग” जैसी उपाधि देना न केवल गलत है,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गुमराह करने वाला भी है।
ट्रंप ने अपने हालिया बयान में एक बार फिर से आरोप दोहराया कि भारत अमेरिकी निर्यात पर दुनिया में सबसे अधिक टैरिफ लगाता है। उन्होंने यह कहते हुए भारत पर हमला बोला कि भारत लंबे समय से अमेरिकी उत्पादों पर भारी कर वसूल रहा है,जिसकी वजह से अमेरिका को व्यापार घाटा झेलना पड़ रहा है। ट्रंप ने यहाँ तक कहा कि भारत हमारे साथ व्यापार इसलिए कर पा रहा है क्योंकि हम उनसे “मूर्खतापूर्ण तरीके” से टैरिफ नहीं लेते।
मोहन कुमार ने इन दावों की सटीकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि टैरिफ की गणना के तरीके को लेकर अक्सर गलतफहमियाँ फैलती हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि साधारण औसत टैरिफ को आधार बनाकर भारत को सबसे ऊँचे कर दर लगाने वाला देश बताना उचित नहीं है। इसके बजाय,ट्रेड-वेटेड टैरिफ यानी व्यापार-भारित कर दर अधिक उपयुक्त तरीका है। यही वास्तविक तस्वीर पेश करता है क्योंकि इससे यह पता चलता है कि बाजार में आने वाले सामानों पर व्यवहार में कितना शुल्क लागू होता है। कुमार ने आँकड़े पेश करते हुए बताया कि भारत का व्यापार-भारित टैरिफ मात्र 4.6 प्रतिशत है,जबकि साधारण औसत दर करीब 16 प्रतिशत बैठती है।
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि भारत कृषि क्षेत्र में अपेक्षाकृत ऊँचे टैरिफ लागू करता है। इसका कारण देश के करोड़ों किसानों को संरक्षित करना है,जिनकी आजीविका कृषि पर निर्भर है। इस संदर्भ में उन्होंने अमेरिका की उस माँग को अनुचित बताया,जिसमें भारत से अपने कृषि बाजार को पूरी तरह खोलने के लिए कहा गया है। कुमार के अनुसार,ऐसी माँग करना भारत से आत्महत्या करने के समान है,जिसे कोई भी लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार स्वीकार नहीं कर सकती। उन्होंने तर्क दिया कि पश्चिमी देशों के किसान तो पहले से ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी का लाभ उठाते हैं,जबकि भारत के किसान ऐसे किसी मजबूत सुरक्षा तंत्र से वंचित हैं।
कुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिकी निर्यातकों को भारत में उतना ऊँचा टैरिफ नहीं झेलना पड़ता,जितना प्रचारित किया जाता है। कई एशियाई देशों की तुलना में भारत में अमेरिकी उत्पादों पर कम या बराबर दर का कर लागू होता है। उन्होंने खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक्स और तकनीकी क्षेत्र का उल्लेख किया,जहाँ भारत अधिकांश आयात पर शून्य प्रतिशत टैरिफ लगाता है। इसके विपरीत,वियतनाम में यही दर 8.5 प्रतिशत और चीन में 5.4 से 20 प्रतिशत के बीच है। इससे यह साबित होता है कि भारत का टैरिफ ढाँचा प्रतिस्पर्धा विरोधी नहीं है,बल्कि वैश्विक मानकों के अनुरूप है।
पूर्व विदेश सेवा अधिकारी के मुताबिक,ट्रंप प्रशासन का यह दावा कि भारत अमेरिकी व्यापार को रोकने के लिए सबसे अधिक टैरिफ लगाता है,केवल राजनीतिक बयानबाजी है। वास्तविकता यह है कि भारत का औसत व्यापार-भारित टैरिफ सम्मानजनक और संतुलित है। वहीं,कृषि क्षेत्र में संरक्षणवादी नीतियाँ भारत जैसे विकासशील देश की आवश्यकता हैं,जिन्हें पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं से तुलना करना उचित नहीं होगा।
मोहन कुमार का यह लेख ऐसे समय में सामने आया है,जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव चरम पर है। राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला किया था और भारत पर रूसी तेल से लाभ कमाने का आरोप भी लगाया था। हालाँकि,भारत ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से इंकार कर दिया और अपनी स्वतंत्र नीति पर कायम रहते हुए कहा कि उसकी प्राथमिकता राष्ट्रीय हित है।
कुमार का मानना है कि भारत को टैरिफ किंग बताना केवल सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश करना है। वास्तविकता यह है कि भारत कई क्षेत्रों में व्यापार के लिए एक खुला बाजार है और अमेरिकी कंपनियों को यहाँ अवसर भी मिलते हैं। उनका यह भी कहना है कि यदि अमेरिका और भारत दोनों देशों के बीच व्यापारिक मुद्दों को संतुलन और आपसी समझ के साथ हल नहीं किया गया,तो यह रणनीतिक साझेदारी को कमजोर कर सकता है,जो बीते दशकों में काफी मेहनत से बनाई गई है।
इस तरह,मोहन कुमार का यह करारा जवाब न केवल भारत की छवि को स्पष्ट करता है बल्कि यह भी बताता है कि टैरिफ विवाद केवल आँकड़ों की बाजीगरी है,जिसे राजनीतिक लाभ के लिए बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जा रहा है। उनके अनुसार, भारत को “टैरिफ किंग” कहना न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है,बल्कि यह भारत-अमेरिका संबंधों की जटिलताओं को सतही ढंग से देखने जैसा है।