परेश रावल की फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ 31 अक्टूबर को रिलीज होगी (तस्वीर क्रेडिट@SirPareshRawal)

दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ की रिलीज पर रोक लगाने से किया इनकार, कहा- कोर्ट सुपर सेंसर बोर्ड नहीं है

नई दिल्ली,31 अक्टूबर (युआईटीवी)- दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिनेता परेश रावल अभिनीत फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ की रिलीज के खिलाफ दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह “सुपर सेंसर बोर्ड” नहीं है और इतिहास को लेकर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ताओं ने पर्याप्त रिसर्च किए बिना याचिका दायर की है,इसलिए अदालत इसमें दखल देने का कोई औचित्य नहीं देखती।

यह मामला उस समय सामने आया,जब फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ की रिलीज से पहले दो अलग-अलग याचिकाएँ दाखिल की गई थीं,जिनमें दावा किया गया था कि फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है और इससे देश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि फिल्म में ताजमहल को लेकर गलत संदेश फैलाने की कोशिश की गई है और इसके जरिए राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया जा रहा है।

मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड (केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) एक सक्षम प्राधिकरण है,जो फिल्मों की सामग्री का परीक्षण करता है और उसके आधार पर प्रमाण पत्र जारी करता है। कोर्ट ने कहा, “हम सेंसर बोर्ड नहीं हैं। अगर किसी को फिल्म की सामग्री से शिकायत है,तो पहले उसे संबंधित प्राधिकरण के पास जाना चाहिए। अदालत इस तरह के मामलों में प्राथमिक स्तर पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती।”

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ताओं ने फिल्म के खिलाफ पर्याप्त अध्ययन या तथ्यात्मक विश्लेषण नहीं किया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “इतिहास को लेकर कई तरह के दृष्टिकोण हो सकते हैं। केवल इस आधार पर कि किसी फिल्म में आपकी राय से अलग दृष्टिकोण दिखाया गया है,इसका मतलब यह नहीं कि अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए।”

इस मामले में दो याचिकाएँ दायर की गई थीं। पहली याचिका शकील अब्बास नामक व्यक्ति ने दाखिल की थी,जबकि दूसरी याचिका चेतना गौतम ने दायर की थी। दोनों याचिकाओं में माँग की गई थी कि फिल्म की रिलीज से पहले उसके प्रमाणन की समीक्षा की जाए और उस पर एक स्पष्ट डिस्क्लेमर जोड़ा जाए,जिसमें कहा गया हो कि यह फिल्म किसी ऐतिहासिक तथ्य का दावा नहीं करती।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील शकील शेख ने कोर्ट से अनुरोध किया कि फिल्म के ट्रेलर और प्रमोशनल सामग्री में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है। उन्होंने कहा कि ट्रेलर में दिखाया गया है कि ताजमहल के गुंबद से भगवान शिव प्रकट होते हैं और इस दृश्य के जरिए यह संदेश दिया जा रहा है कि ताजमहल पहले एक हिंदू मंदिर था। याचिकाकर्ता ने इसे ऐतिहासिक साक्ष्यों के विपरीत बताया और दावा किया कि इस तरह की प्रस्तुति से सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है।

हालाँकि,अदालत ने इन तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा कि फिल्मी सामग्री की व्याख्या या उसके संभावित प्रभाव का आकलन अदालत नहीं कर सकती। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हम यह तय नहीं कर सकते कि फिल्म में क्या दिखाया जाए और क्या नहीं। इसके लिए एक स्थापित प्रक्रिया है और वह प्रक्रिया सेंसर बोर्ड के जरिए पूरी होती है। अगर किसी को फिल्म से दिक्कत है,तो उसे सरकार या बोर्ड से संपर्क करना चाहिए, न कि अदालत से।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने बिना उचित प्रक्रिया अपनाए सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाया है। केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील आशीष दीक्षित ने भी बताया कि अब तक किसी भी याचिकाकर्ता ने फिल्म को लेकर सरकार को कोई आधिकारिक शिकायत या प्रतिवेदन नहीं दिया है।

अदालत ने इस दौरान यह भी कहा कि अभिनेता परेश रावल को याचिका में पक्षकार बनाए जाने की कोई जरूरत नहीं थी। कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर कल आप किसी मामले में अवमानना याचिका दायर करते हैं,तो क्या संबंधित वकील को पक्षकार बनाएँगे? परेश रावल एक प्रोफेशनल कलाकार हैं,वे कंटेंट के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। किसी फिल्म के अभिनेता को केवल इस वजह से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता कि उन्होंने उस फिल्म में अभिनय किया है।”

फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ 31 अक्टूबर को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। फिल्म के ट्रेलर के रिलीज होते ही यह सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई थी। 16 अक्टूबर को जारी ट्रेलर में दिखाया गया था कि ताजमहल के भीतर से भगवान शिव का स्वरूप प्रकट होता है,जिसके बाद इस पर विवाद शुरू हो गया। कई लोगों का कहना है कि फिल्म इतिहास को गलत रूप में पेश कर रही है,जबकि कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उदाहरण मान रहे हैं।

फिल्म में अभिनेता परेश रावल मुख्य भूमिका में नजर आने वाले हैं। उनके अलावा जाकिर हुसैन,मनोज जोशी और अनुप्रिया गोयनका जैसे कलाकार भी अहम भूमिकाओं में हैं। फिल्म के निर्देशक का दावा है कि यह कहानी “इतिहास से प्रेरित एक कल्पना” है और इसे किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने के इरादे से नहीं बनाया गया है।

इस बीच,फिल्म के निर्माता पक्ष ने कोर्ट में कहा कि उन्हें सेंसर बोर्ड से पहले ही प्रमाणन मिल चुका है और फिल्म में आवश्यक डिस्क्लेमर जोड़ा गया है,जिसमें साफ लिखा गया है कि यह रचना कल्पनाशील दृष्टिकोण पर आधारित है और किसी ऐतिहासिक तथ्य का दावा नहीं करती।

अदालत ने अंत में कहा कि अगर याचिकाकर्ताओं को अभी भी फिल्म से कोई शिकायत है,तो वे उचित प्रशासनिक मंच पर जाकर अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं,लेकिन अदालत फिल्म की रिलीज पर रोक नहीं लगा सकती।

इस प्रकार,दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ के खिलाफ दायर दोनों याचिकाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि फिल्म सेंसर बोर्ड के प्रमाणन के बाद अपनी निर्धारित तिथि पर रिलीज होगी। कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद यह मामला फिलहाल समाप्त हो गया है,लेकिन फिल्म के आसपास जारी विवाद अभी भी थमा नहीं है। जनता अब बेसब्री से इंतजार कर रही है कि 31 अक्टूबर को रिलीज के बाद ‘द ताज स्टोरी’ किस तरह की प्रतिक्रिया पाती है — इतिहास को चुनौती देने वाली रचना के रूप में या एक कलात्मक प्रयोग के रूप में।