नई दिल्ली,25 सितंबर (युआईटीवी)- दिल्ली की राजनीति और कानून व्यवस्था से जुड़े एक चर्चित मामले में तीस हजारी कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। मामला मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर हुए हमले का है,जिसने पूरे राज्य की राजनीति और जनता के बीच गहरी हलचल पैदा कर दी थी। अदालत ने स्पष्ट निर्देश देते हुए दिल्ली पुलिस को आदेश दिया है कि आरोपी राजेश भाई सकारिया को दर्ज की गई एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराई जाए। अदालत का यह फैसला उस सिद्धांत पर आधारित है,जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही स्थापित कर दिया था कि किसी भी आरोपी को एफआईआर की प्रति उपलब्ध कराना उसका मौलिक अधिकार है।
दरअसल,यह घटना उस समय हुई थी,जब मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता एक साप्ताहिक ‘जनसुनवाई’ कार्यक्रम में आम लोगों की शिकायतें सुन रही थीं। इसी दौरान अचानक भीड़ में से एक व्यक्ति बाहर आया और उसने मुख्यमंत्री पर एक भारी वस्तु फेंक दी। यह हमला इतना अचानक और अप्रत्याशित था कि कोई भी इसे रोक नहीं पाया। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता इस वार से असंतुलित होकर जमीन पर गिर गईं। हालाँकि,सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए हमलावर को पकड़ लिया और मुख्यमंत्री को नजदीकी अस्पताल ले जाया गया। इस घटना ने पूरे दिल्ली में सनसनी मचा दी और सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए।
हमले के बाद दिल्ली पुलिस ने तेजी से जाँच शुरू की। पुलिस की ओर से राजकोट निवासी राजेश खिमजी उर्फ राजेश भाई सकारिया और उसके साथी तहसीन सैय्यद को गिरफ्तार किया गया। शुरुआती जाँच में पता चला कि दोनों आरोपी डॉग लवर हैं और लगातार संपर्क में रहते थे। पुलिस पूछताछ में तहसीन ने यह स्वीकार भी किया कि उसे राजेश की योजना के बारे में पूरी जानकारी थी। यह भी खुलासा हुआ कि हमला अचानक गुस्से या आवेश में नहीं किया गया,बल्कि इसकी पहले से प्लानिंग थी। इसी आधार पर पुलिस ने आरोपी राजेश के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया।
इस पूरे प्रकरण में आरोपी राजेश भाई सकारिया ने अदालत में याचिका दायर कर माँग की थी कि उसे दर्ज एफआईआर की प्रति उपलब्ध कराई जाए। इस पर सुनवाई करते हुए तीस हजारी कोर्ट ने साफ कहा कि यह आरोपी का अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश भी यही कहते हैं। इसलिए आरोपी को एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराना जरूरी है। अदालत ने पुलिस की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए आदेश दिया कि एफआईआर की प्रति आरोपी को दी जाए।
दिल्ली पुलिस ने हालाँकि आरोपी की इस अर्जी का कड़ा विरोध किया। पुलिस का तर्क था कि इस मामले में दर्ज एफआईआर संवेदनशील श्रेणी में रखी गई है और उसकी प्रति साझा करने से जाँच प्रभावित हो सकती है। पुलिस ने कहा कि एफआईआर की सामग्री सार्वजनिक हुई,तो इससे न केवल जाँच पर असर पड़ेगा,बल्कि मामले के अन्य पहलुओं में भी बाधा आ सकती है। पुलिस ने अदालत से आरोपी की याचिका खारिज करने की माँग भी की। हालाँकि,अदालत ने पुलिस की इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया और आरोपी को एफआईआर देने का आदेश सुना दिया।
दिल्ली पुलिस ने एक वैकल्पिक सुझाव भी रखा। उन्होंने अदालत से कहा कि यदि आरोपी यह लिखित आश्वासन देता है कि एफआईआर की प्रति किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के साथ साझा नहीं की जाएगी,तभी इसे उपलब्ध कराया जाए। यह पुलिस की उस चिंता को दर्शाता है कि इस मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए एफआईआर का दुरुपयोग हो सकता है।
यह पूरा मामला न केवल कानून व्यवस्था,बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की सुरक्षा को भी केंद्र में ला देता है। जिस समय यह हमला हुआ,मुख्यमंत्री जनता से सीधे संवाद कर रही थीं। जनता के बीच बैठकर उनकी समस्याओं को सुनना लोकतंत्र की आत्मा का हिस्सा माना जाता है,लेकिन अगर ऐसे मंचों पर मुख्यमंत्री तक सुरक्षित नहीं हैं,तो यह पूरे सुरक्षा तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
विपक्ष ने इस घटना को लेकर सरकार और पुलिस दोनों पर निशाना साधा। विपक्षी नेताओं का कहना था कि यह हमला इस बात का प्रतीक है कि राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। वहीं,मुख्यमंत्री के समर्थकों का कहना है कि यह हमला लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा हमला है और इसके पीछे किसी बड़ी साजिश की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट का यह आदेश आरोपी के अधिकारों और पुलिस की जिम्मेदारी,दोनों को एक साथ रेखांकित करता है। एक ओर अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई और न्याय दिलाना न्यायपालिका की जिम्मेदारी है,वहीं दूसरी ओर यह भी दिखा दिया कि जाँच एजेंसियों को अपनी कार्यवाही संवेदनशीलता के साथ करनी होगी। यह आदेश भारतीय न्याय प्रणाली के उस संतुलन को भी उजागर करता है जिसमें आरोपी के अधिकारों की रक्षा और समाज की सुरक्षा,दोनों को समान महत्व दिया जाता है।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता अब इस हमले से उबर चुकी हैं और उन्होंने जनता से अपील की है कि वे अफवाहों पर ध्यान न दें। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत बनाने के लिए वह अपने कार्यक्रमों को जारी रखेंगी,लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सुरक्षा व्यवस्था को और पुख्ता करने की आवश्यकता है।
यह मामला अभी भी जाँच के अधीन है और आने वाले दिनों में कई और खुलासे हो सकते हैं,लेकिन फिलहाल तीस हजारी कोर्ट का यह आदेश न्यायिक प्रक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया है,जिसने यह संदेश दिया है कि न्याय और निष्पक्षता के लिए आरोपी के अधिकारों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।