अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी (तस्वीर क्रेडिट@Surender_10K)

सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में अहम कदम: 18 अगस्त को भारत आएँगे चीन के विदेश मंत्री वांग यी

बीजिंग/नई दिल्ली,14 अगस्त (युआईटीवी)- भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद और कूटनीतिक तनाव के बीच एक नई पहल के तहत चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18 अगस्त को भारत दौरे पर आ रहे हैं। उनका यह दौरा स्पेशल रिप्रजेंटेटिव मैकेनिज्म के तहत होने वाली उच्चस्तरीय वार्ता का हिस्सा है, जिसमें दोनों देशों के अधिकारी सीमा से जुड़े मुद्दों और आपसी सहयोग पर विस्तार से चर्चा करेंगे। यह मुलाकात ऐसे समय हो रही है,जब कुछ ही दिनों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए रवाना होंगे। यह सम्मेलन 31 अगस्त से 1 सितंबर तक आयोजित होगा।

8 अगस्त को चीन ने प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा का सार्वजनिक रूप से स्वागत किया था। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने शुक्रवार को कहा,“चीन प्रधानमंत्री मोदी का एससीओ तियानजिन सम्मेलन में स्वागत करता है। हमें विश्वास है कि सभी सदस्य देशों के सहयोग से यह सम्मेलन एकजुटता,मित्रता और सार्थक परिणामों का आयोजन होगा। एससीओ एक नए चरण में प्रवेश करेगा, जिसमें अधिक समन्वय,ऊर्जा और उत्पादकता होगी।” उन्होंने बताया कि इस बार का सम्मेलन एससीओ के इतिहास का सबसे बड़ा आयोजन होगा,जिसमें 20 से अधिक देशों के नेता और 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख भाग लेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा कई कारणों से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यह 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद पहली बार होगा,जब भारतीय प्रधानमंत्री चीन की धरती पर कदम रखेंगे। गलवान संघर्ष ने भारत-चीन संबंधों में गंभीर दरार डाल दी थी और तब से दोनों देशों के बीच भरोसे का माहौल कमजोर हो गया था। इस पृष्ठभूमि में मोदी का यह दौरा और वांग यी की भारत यात्रा संबंध सुधार की दिशा में बड़े संकेत के रूप में देखी जा रही है।

हाल के दिनों में दोनों देशों ने सीमा पर शांति बहाल करने के प्रयास तेज किए हैं। एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर गश्त के लिए सहमति से एक समझौता हुआ है,जिसे चार साल पुराने गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में पहला ठोस कदम माना जा रहा है। इस समझौते से उम्मीद है कि सीमा पर टकराव की घटनाएँ कम होंगी और द्विपक्षीय संबंधों में विश्वास बहाल होगा।

पिछले कुछ महीनों में भारत-चीन के बीच उच्चस्तरीय कूटनीतिक आदान-प्रदान में भी वृद्धि हुई है। जुलाई 2025 में विदेश मंत्री एस. जयशंकर चीन गए थे,जहाँ उन्होंने एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के साथ-साथ चीन के विदेश मंत्री वांग यी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाकात की थी। उस दौरान दोनों पक्षों ने आर्थिक सहयोग,सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सीमा विवाद के समाधान पर चर्चा की थी।

जून 2025 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी चीन में एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में शामिल हुए थे। हालाँकि,भारत ने उस बैठक के संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए क्योंकि उसमें आतंकवाद को लेकर भारत की चिंताओं का उल्लेख नहीं किया गया था। इसके बावजूद,राजनाथ सिंह ने चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून से मुलाकात कर द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर सकारात्मक बातचीत की थी।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी हाल ही में चीन गए थे,जहाँ उन्होंने एससीओ सुरक्षा परिषद सचिवों की 20वीं बैठक में भाग लिया। इस दौरान आतंकवाद,साइबर सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर विस्तृत चर्चा हुई।

विशेषज्ञ मानते हैं कि वांग यी की भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा से पहले विश्वास बहाली का माहौल तैयार करना है। चूँकि,एससीओ शिखर सम्मेलन में कई अहम मुद्दों पर चर्चा होने वाली है,इसलिए द्विपक्षीय वार्ता से दोनों देशों को एक-दूसरे की प्राथमिकताओं को समझने और मतभेद कम करने का अवसर मिलेगा।

सीमा विवाद के अलावा व्यापार और निवेश भी इस वार्ता का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकते हैं। वर्तमान में भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध बने हुए हैं,लेकिन राजनीतिक तनाव और सुरक्षा चिंताओं के कारण कई क्षेत्रों में सहयोग सीमित हो गया है। कूटनीतिक सूत्रों का मानना है कि दोनों देश परस्पर आर्थिक हितों को देखते हुए कुछ प्रतिबंधों में ढील और व्यापार बढ़ाने की दिशा में भी चर्चा कर सकते हैं।

एससीओ शिखर सम्मेलन में आतंकवाद,ऊर्जा सुरक्षा,क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक सहयोग जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे। भारत के लिए यह मंच न केवल चीन बल्कि रूस,मध्य एशिया और अन्य सदस्य देशों के साथ रणनीतिक संवाद का अवसर प्रदान करेगा। प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि भारत इस संगठन में अपनी सक्रिय भूमिका को बनाए रखना चाहता है,भले ही उसके सदस्य देशों में चीन और पाकिस्तान भी शामिल हों।

वांग यी की यह यात्रा और मोदी का चीन दौरा,दोनों मिलकर यह संदेश दे सकते हैं कि दुनिया की दो सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश अपने मतभेदों को बातचीत के जरिए सुलझाने के लिए तैयार हैं। हालाँकि,सीमा विवाद का स्थायी समाधान अभी दूर है,लेकिन यह दौर इस दिशा में एक सकारात्मक शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।

अब निगाहें 18 अगस्त को होने वाली उन चर्चाओं पर टिकी हैं,जो न केवल भारत-चीन रिश्तों के लिए बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं।