अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग (तस्वीर क्रेडिट@maliniawasthi)

डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग से अच्छे संबंध होने की बात कही,फिर से मिलने की इच्छा व्यक्त की

वाशिंगटन,26 अगस्त (युआईटीवी)- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका के पूर्व और संभावित भविष्य के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर सुर्खियों में हैं। बीते कुछ दिनों से वह लगातार वैश्विक कूटनीति में सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। 15 अगस्त को उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात कर यूक्रेन युद्ध को समाप्त करवाने की कोशिशों पर चर्चा की थी। अब ट्रंप ने उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग उन से इस साल के अंत तक मुलाकात की उम्मीद जताई है।

चीनी समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार,ट्रंप ने सोमवार को व्हाइट हाउस में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्यांग से मुलाकात की। इस बैठक के दौरान ट्रंप ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन का विशेष रूप से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उनके और किम के रिश्ते काफी अच्छे हैं और वे उनसे पुनः मिलने के इच्छुक हैं। ट्रंप ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “मेरे और उनके बीच बेहद अच्छे संबंध हैं। मुझे लगता है कि उनके देश में अपार संभावनाएँ हैं और अगर सकारात्मक माहौल बने तो उत्तर कोरिया क्षेत्रीय स्थिरता और विकास का केंद्र बन सकता है।”

ट्रंप और किम की पिछली मुलाकातें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमेशा चर्चा का विषय रही हैं। अपने पिछले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान डोनाल्ड ट्रंप तीन बार उत्तर कोरियाई नेता से मिले थे। जून 2018 में सिंगापुर में हुई पहली बैठक ऐतिहासिक मानी गई,क्योंकि यह पहली बार था जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उत्तर कोरियाई नेता से सीधे बातचीत की थी। इसके बाद फरवरी 2019 में वियतनाम की राजधानी हनोई में दोनों नेताओं की दूसरी मुलाकात हुई। हालाँकि,यह वार्ता किसी ठोस समझौते पर समाप्त नहीं हो सकी। तीसरी मुलाकात जून 2019 में अंतर-कोरियाई सीमावर्ती गाँव पनमुनजोम में हुई,जहाँ ट्रंप ने डीएमजेड (निरस्त्रीकृत क्षेत्र) पार करके उत्तर कोरियाई जमीन पर कदम रखा था। यह क्षण कूटनीतिक इतिहास में एक अनोखा उदाहरण बन गया।

व्हाइट हाउस में हुई हालिया मुलाकात के दौरान दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्यांग ने भी ट्रंप की कूटनीति की सराहना की। ली ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि ट्रंप कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनका यह भी कहना था कि अगर ट्रंप राष्ट्रपति पद पर बने रहते,तो संभवतः किम जोंग उन अपनी परमाणु क्षमताओं को आगे नहीं बढ़ा पाते। दक्षिण कोरिया की यह उम्मीद इस तथ्य पर आधारित है कि ट्रंप के कार्यकाल के दौरान,भले ही कोई स्थायी समझौता न हो पाया हो,लेकिन वार्ता की प्रक्रिया ने तनाव को कुछ हद तक कम किया था।

गौरतलब है कि उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच रिश्ते दशकों से तनावपूर्ण रहे हैं। कोरियाई युद्ध (1950-53) के बाद से दोनों देशों के बीच औपचारिक शांति संधि कभी नहीं हुई। इस वजह से तकनीकी रूप से दोनों अब भी युद्ध की स्थिति में माने जाते हैं। दक्षिण कोरिया जहाँ अमेरिका का घनिष्ठ सहयोगी है,वहीं उत्तर कोरिया चीन और रूस के साथ अपने रिश्तों को मजबूत रखता है। ऐसे में ट्रंप जैसे वैश्विक नेता की मध्यस्थता से अगर कोई नई पहल होती है,तो यह न केवल दोनों कोरियाई देशों के लिए बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए शांति और स्थिरता का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

ट्रंप का कूटनीतिक सक्रियता दिखाना केवल कोरियाई प्रायद्वीप तक सीमित नहीं है। बीते 15 अगस्त को उन्होंने अलास्का में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी। इस बैठक में यूक्रेन युद्ध को समाप्त करवाने की संभावनाओं पर चर्चा हुई। ट्रंप ने बार-बार यह दावा किया है कि अगर वे सत्ता में होते,तो रूस और यूक्रेन के बीच इतना बड़ा युद्ध कभी नहीं होता। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वे अमेरिकी नेतृत्व को एक बार फिर वैश्विक शांति के केंद्र में लाना चाहते हैं।

इसी तरह ट्रंप ने कई मौकों पर यह दावा किया है कि उन्होंने इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव को कम करने की दिशा में भी भूमिका निभाई है। उनकी इस कूटनीतिक सक्रियता को लेकर अमेरिकी और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में तरह-तरह की चर्चाएँ चल रही हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप की रणनीति चुनावी राजनीति से भी जुड़ी हो सकती है,क्योंकि आने वाले समय में वे फिर से राष्ट्रपति पद के दावेदार बन सकते हैं।

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्यांग की उम्मीदें भी इस संदर्भ में अहम हैं। उन्होंने व्हाइट हाउस की बैठक में कहा कि यदि ट्रंप और किम जोंग उन के बीच संवाद आगे बढ़ता है,तो परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में ठोस परिणाम निकल सकते हैं। ली ने जोर देकर कहा कि कोरियाई प्रायद्वीप में स्थायी शांति तभी संभव है,जब उत्तर कोरिया अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर रोक लगाए और इसके लिए अमेरिका जैसी बड़ी ताकत की गारंटी जरूरी है।

ट्रंप और किम की संभावित चौथी मुलाकात अगर इस साल के अंत तक होती है,तो यह न केवल एक कूटनीतिक घटना होगी बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति की नई उम्मीद भी बनेगी। अब तक की तीन मुलाकातों ने भले ही निर्णायक परिणाम न दिए हों,लेकिन उन्होंने संवाद का रास्ता खुला रखा है। दुनिया आज जिस तरह यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व संकटों से जूझ रही है,ऐसे समय में अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच बातचीत वैश्विक राजनीति के लिए राहत भरी खबर हो सकती है।

स्पष्ट है कि डोनाल्ड ट्रंप खुद को एक बार फिर विश्व कूटनीति के केंद्र में स्थापित करना चाहते हैं। रूस,उत्तर कोरिया और मध्य पूर्व जैसे जटिल मुद्दों में उनकी सक्रिय भागीदारी यह दर्शाती है कि वह केवल अमेरिकी राजनीति तक सीमित नहीं रहना चाहते,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर शांति निर्माता की छवि गढ़ना चाहते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी यह कोशिशें कितनी सफल होती हैं और क्या वास्तव में वे कोरियाई प्रायद्वीप में स्थायी शांति ला पाने में सक्षम होंगे