डोनाल्ड ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप का बयान: पुतिन और जेलेंस्की की मुलाकात तेल और सिरका मिलाने जैसी असंभव चुनौती,शांति की उम्मीद धुँधली

वॉशिंगटन,23 अगस्त (युआईटीवी)- रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के बीच किसी भी तरह की शांति वार्ता की संभावना बेहद कमजोर है। ट्रंप ने इस संभावित वार्ता की तुलना “तेल और सिरका मिलाने” से की,यह कहते हुए कि दोनों नेताओं का एक साथ आना और किसी साझा समाधान तक पहुँचना लगभग असंभव है।

ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि पुतिन और जेलेंस्की के बीच समझौता कराना एक बेहद कठिन कार्य है। उन्होंने कहा, “ये थोड़ा तेल और सिरका मिलाने जैसा है। दोनों एक-दूसरे के साथ बिल्कुल नहीं चलते,लेकिन देखते हैं क्या होता है। फिलहाल किसी भी तरह की शांति की उम्मीद नजर नहीं आ रही।” ट्रंप ने यह भी कहा कि वह स्वयं इस वार्ता में शामिल नहीं होना चाहते। उन्होंने स्पष्ट किया,“देखते हैं क्या वे खुद कोई समाधान निकालते हैं। बेहतर होगा कि वे आपस में बात करें और कोई रास्ता ढूँढ़े। मैं इसमें सीधे तौर पर शामिल नहीं होना चाहता।”

ट्रंप ने युद्ध की मानवीय कीमत पर चिंता जताते हुए कहा कि हर हफ्ते लगभग 7,000 लोग इस संघर्ष में अपनी जान गंवा रहे हैं,जिनमें ज्यादातर सैनिक शामिल हैं। उन्होंने इसे “बेहद मूर्खतापूर्ण स्थिति” बताया और कहा कि निर्दोष लोगों की जानें लगातार जा रही हैं। ट्रंप ने जोर दिया कि उनके कार्यकाल में अमेरिका ने सात बड़े युद्धों को होने से रोका था और अब वे चाहते हैं कि यह युद्ध भी जल्द खत्म हो। हालाँकि,उन्होंने स्वीकार किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध शायद सबसे कठिन और जटिल संघर्ष है,जिसका समाधान आसानी से नहीं निकलेगा।

ट्रंप के इस बयान के बाद रूस ने तुरंत किसी भी संभावित वार्ता की संभावना को खारिज कर दिया। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिकी टीवी चैनल एनबीसी से बातचीत में कहा कि “ऐसी कोई बैठक तय नहीं है।” लावरोव ने साफ शब्दों में संकेत दिया कि रूस इस समय किसी भी तरह की वार्ता पर विचार नहीं कर रहा है। यह रूख यह दर्शाता है कि पुतिन प्रशासन फिलहाल सैन्य कार्रवाई जारी रखने के पक्ष में है और कूटनीतिक रास्ते को प्राथमिकता नहीं दे रहा।

गौरतलब है कि हाल ही में ट्रंप ने एक और विवादित बयान दिया था,जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया था कि रूस के खिलाफ यूक्रेन की रक्षा के लिए अमेरिकी सैनिकों को नहीं भेजा जाएगा। उन्होंने यूक्रेन की नाटो सदस्यता को भी असंभव करार दिया था और यह कहा था कि रूस से क्रीमिया प्रायद्वीप वापस लेने की उम्मीदें पूरी नहीं हो सकतीं। ट्रंप के इन बयानों ने पश्चिमी देशों में चिंता पैदा कर दी है,क्योंकि इससे संकेत मिलता है कि यदि वे फिर से सत्ता में लौटते हैं,तो अमेरिका की मौजूदा यूक्रेन नीति में बड़ा बदलाव हो सकता है।

सोमवार को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप,यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की और अन्य यूरोपीय नेताओं के बीच लंबी बैठक भी हुई थी। इस बैठक में युद्ध की मौजूदा स्थिति,पश्चिमी देशों की भूमिका और भविष्य की रणनीतियों पर चर्चा हुई। हालाँकि,बैठक के बाद भी किसी ठोस समाधान की घोषणा नहीं की गई। इस मुलाकात के बावजूद ट्रंप का रुख स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि वे सीधे हस्तक्षेप करने से बचना चाहते हैं और जिम्मेदारी दोनों युद्धरत देशों पर ही डालना चाहते हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप का यह बयान उनके पुराने रुख का ही विस्तार है। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान भी वे यूरोपीय देशों से बार-बार यह कहते रहे थे कि अमेरिका को उनके सुरक्षा संकटों का बोझ अकेले नहीं उठाना चाहिए। अब भी वे उसी नीति को आगे बढ़ाते दिखाई दे रहे हैं। हालाँकि,आलोचकों का मानना है कि यह रुख रूस को और अधिक आक्रामक बना सकता है और यूक्रेन की स्थिति को और कमजोर कर सकता है।

वहीं,यूक्रेन का पक्ष है कि उसे पश्चिमी सहयोग की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है। जेलेंस्की लगातार अमेरिका और यूरोपीय संघ से सैन्य और आर्थिक मदद की माँग करते रहे हैं। ऐसे में ट्रंप का ताजा बयान कीव के लिए झटका साबित हो सकता है। यदि भविष्य में अमेरिका ने अपनी सक्रिय भूमिका घटा दी तो यूक्रेन की रक्षा क्षमता पर बड़ा असर पड़ेगा।

ट्रंप का यह बयान रूस-यूक्रेन युद्ध के भविष्य को लेकर और अधिक अनिश्चितता पैदा करता है। उनकी तुलना “तेल और सिरका” जैसी है,जो यह दिखाती है कि दोनों नेताओं के बीच किसी भी प्रकार की सुलह की संभावना न के बराबर है। रूस की तरफ से वार्ता से इनकार और अमेरिका के भीतर बदलते राजनीतिक संकेत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि यह युद्ध अभी और लंबा खींच सकता है। दुनिया की निगाहें अब इस पर टिकी हैं कि क्या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय किसी साझा मंच पर आकर इस संघर्ष को खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठा पाएगा या यह युद्ध आने वाले महीनों में और भी गहराई लेगा।