अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा दावा: रूस-चीन कर रहे परमाणु परीक्षण,पाकिस्तान पर भी लगाया आरोप, कहा—अमेरिका अब चुप नहीं रहेगा

नई दिल्ली,3 नवंबर (युआईटीवी)- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय परमाणु राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने रूस,चीन और पाकिस्तान पर परमाणु हथियारों के परीक्षण का गंभीर आरोप लगाते हुए संकेत दिया कि अमेरिका अब अपने परमाणु परीक्षणों को फिर से शुरू कर सकता है। ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है,जब विश्व समुदाय परमाणु हथियारों की बढ़ती दौड़ और सुरक्षा असंतुलन को लेकर पहले से ही चिंतित है।

अमेरिकी टीवी चैनल सीबीएस न्यूज को दिए गए एक विशेष इंटरव्यू में ट्रंप ने न केवल रूस और चीन के परमाणु कार्यक्रमों को लेकर चिंता जताई,बल्कि पाकिस्तान के भी गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण करने का दावा किया। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, “रूस के पास बहुत सारे परमाणु हथियार हैं,चीन के पास उससे भी अधिक होंगे। मैं यह कह सकता हूँ कि रूस और चीन दोनों अपने हथियारों का परीक्षण कर रहे हैं। उत्तर कोरिया लगातार परीक्षण कर रहा है और अब पाकिस्तान भी ऐसा कर रहा है। हम एकमात्र ऐसा देश हैं,जो परीक्षण नहीं कर रहा,लेकिन अब अमेरिका भी ऐसा नहीं करेगा कि बस चुपचाप बैठा रहे। हम भी परीक्षण करेंगे,जैसे अन्य देश कर रहे हैं।”

उनके इस बयान से अंतर्राष्ट्रीय रणनीतिक समुदाय में हलचल मच गई है,क्योंकि ट्रंप ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि अमेरिका एक बार फिर अपने परमाणु परीक्षण कार्यक्रम को सक्रिय कर सकता है। उन्होंने कहा, “हमारे पास किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक परमाणु हथियार हैं। हमें परमाणु निरस्त्रीकरण के बारे में कुछ करना चाहिए और मैंने इस पर पुतिन और शी जिनपिंग दोनों से चर्चा की है। हमारे पास इतने हथियार हैं कि दुनिया को 150 बार नष्ट कर सकते हैं। इसलिए यह समय है कि सभी देश इस दिशा में गंभीरता से सोचें।”

ट्रंप का यह बयान उस समय आया है,जब कुछ दिनों पहले ही उन्होंने दक्षिण कोरिया की यात्रा के दौरान पेंटागन को निर्देश दिया था कि वह “तुरंत परमाणु हथियार परीक्षण की प्रक्रिया शुरू करे।” यह आदेश अमेरिका की नीति में एक ऐतिहासिक बदलाव माना जा रहा है,क्योंकि पिछले कई दशकों से अमेरिका परमाणु परीक्षणों पर स्वैच्छिक रोक लगाए हुए था।

इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया कि रूस और चीन के नेताओं—व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग में से किससे निपटना अधिक मुश्किल है,तो ट्रंप ने दिलचस्प जवाब दिया। उन्होंने कहा, “दोनों ही बहुत समझदार और मजबूत नेता हैं। ये ऐसे लोग हैं,जिनके साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। इन्हें बहुत गंभीरता से लेना पड़ता है,लेकिन यह भी सच है कि अमेरिका किसी से पीछे नहीं है। हम भी लंबी पारी खेलते हैं। हम उनके लिए खतरा हैं और वे भी हमारे लिए हैं,लेकिन मैं मानता हूँ कि अगर हम मिलकर काम करें,तो हम और भी बड़े,बेहतर और मजबूत बन सकते हैं,बजाय इसके कि हम एक-दूसरे को हराने की कोशिश करें।”

ट्रंप के इस बयान से यह स्पष्ट झलकता है कि वे रूस और चीन के साथ प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ सहयोग की संभावना भी तलाशना चाहते हैं,लेकिन उनके स्वर में यह भी साफ दिखा कि अमेरिका अब वैश्विक शक्ति संतुलन के खेल में किसी भी स्थिति में कमजोर नहीं दिखना चाहता।

राष्ट्रपति ट्रंप ने रूस और चीन की राजनीतिक व्यवस्था पर भी तंज कसते हुए कहा,“रूस परीक्षण कर रहा है और चीन परीक्षण कर रहा है,लेकिन वे इसके बारे में बात नहीं करते। हम एक खुला समाज हैं,इसलिए हमें अपने लोगों को सच्चाई बतानी होती है। यही फर्क है लोकतंत्र और तानाशाही में।” उन्होंने कहा कि चीन और रूस में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है,जहाँ पुतिन और जिनपिंग वर्षों से सत्ता पर काबिज हैं,जबकि अमेरिका में सब कुछ पारदर्शी है।

जब उनसे पूछा गया कि क्या चीन द्वारा ताइवान पर संभावित हमले की स्थिति में अमेरिका सैन्य रूप से हस्तक्षेप करेगा,तो ट्रंप ने जवाब देने से परहेज किया। उन्होंने कहा, “यदि ऐसा होता है,तो आपको पता चल जाएगा। दूसरे पक्ष को पता है कि क्या होगा,लेकिन मैं वह व्यक्ति नहीं हूँ,जो सब कुछ बता दे क्योंकि आपने मुझसे पूछा है,लेकिन वे समझते हैं कि अमेरिका क्या करने में सक्षम है।” ट्रंप के इस जवाब ने संकेत दिया कि अमेरिका ताइवान के मुद्दे पर किसी भी परिस्थिति में पीछे हटने को तैयार नहीं है।

ट्रंप का पाकिस्तान को लेकर दिया गया बयान भी बेहद गंभीर माना जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण कर रहा है। हालाँकि, पाकिस्तान सरकार या उसकी सेना की ओर से अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है,लेकिन इस बयान ने दक्षिण एशिया में सुरक्षा समीकरणों को लेकर नई चिंता पैदा कर दी है। अगर ट्रंप का दावा सच साबित होता है,तो यह भारत और अमेरिका दोनों के लिए एक बड़ा रणनीतिक झटका होगा,क्योंकि इससे क्षेत्रीय स्थिरता पर असर पड़ सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक चेतावनी नहीं,बल्कि एक रणनीतिक संदेश है। अमेरिकी सुरक्षा विश्लेषक मानते हैं कि ट्रंप की मंशा रूस और चीन पर दबाव बनाने की है,ताकि वे अमेरिका के साथ किसी नए परमाणु हथियार नियंत्रण समझौते पर राज़ी हो जाएँ।

वहीं दूसरी ओर,कुछ आलोचकों का मानना है कि ट्रंप के बयान से अंतर्राष्ट्रीय परमाणु निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया को नुकसान पहुँच सकता है। यदि अमेरिका फिर से परमाणु परीक्षण शुरू करता है,तो यह अन्य देशों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेगा,जिससे विश्व स्तर पर हथियारों की नई दौड़ शुरू हो सकती है।

ट्रंप प्रशासन के समर्थकों का कहना है कि यह बयान “रणनीतिक मजबूती” का प्रतीक है। उनका तर्क है कि रूस,चीन और उत्तर कोरिया जैसे देश लगातार अपने परमाणु कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रहे हैं,ऐसे में अमेरिका का चुप रहना उसकी वैश्विक स्थिति को कमजोर करेगा।

साल 2020 के बाद से ट्रंप लगातार यह कहते रहे हैं कि दुनिया एक नए परमाणु शीत युद्ध की ओर बढ़ रही है, जहाँ तकनीकी और सामरिक शक्ति ही भविष्य की राजनीति को तय करेगी। उनका यह हालिया बयान उसी सोच का विस्तार माना जा रहा है।

ट्रंप का यह इंटरव्यू न केवल रूस,चीन और पाकिस्तान को लेकर नई भू-राजनीतिक चर्चा का कारण बना है,बल्कि इसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका अब “संयम” की नीति से आगे बढ़कर “रणनीतिक आक्रामकता” की दिशा में कदम रख रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ट्रंप प्रशासन सच में परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करता है या यह केवल अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने की एक रणनीतिक चाल थी,लेकिन एक बात तय है कि इस बयान ने वैश्विक राजनीति में परमाणु असंतुलन और सुरक्षा की बहस को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है।