अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन (तस्वीर क्रेडिट@mohsenreyhani01)

नॉर्डिक देशों में ड्रोन की दहशत,कोपेनहेगन एयरपोर्ट बंद,पीएम ने रूस का नाम लिया,मास्को ने आरोप को निराधार बताया

नई दिल्ली,24 सितंबर (युआईटीवी)- नॉर्डिक देशों में सुरक्षा का संकट उस समय गहराया,जब सोमवार को तीन अलग-अलग राजधानियों के आसमान में संदिग्ध ड्रोन देखे गए। इस घटना के बाद डेनमार्क,नॉर्वे और स्वीडन ने सुरक्षा अलर्ट जारी कर दिया। सबसे बड़ी हलचल डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में हुई,जहाँ उत्तरी यूरोप के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक कस्ट्रुप को सुरक्षा कारणों से कई घंटों तक बंद करना पड़ा। अचानक हुई इस गड़बड़ी से न केवल यात्रियों को भारी दिक्कतें झेलनी पड़ीं,बल्कि 35 से ज्यादा उड़ानों का मार्ग बदलना पड़ा। हवाई अड्डे की बंदी के दौरान पुलिस ने बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया और पूरे इलाके को उच्च सुरक्षा घेरे में ले लिया।

इस अप्रत्याशित स्थिति के बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि आखिर इन ड्रोन गतिविधियों के पीछे कौन है। डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने साफ कहा कि इस मामले में रूस की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने इस घटना को नाटो सहयोगी देशों के महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे पर एक “गंभीर हमला” करार दिया। फ्रेडरिक्सन ने यह भी उल्लेख किया कि हाल ही में यूरोप के कई हिस्सों में इसी तरह की घटनाएँ सामने आई हैं। उन्होंने विशेष रूप से नॉर्वे के ओस्लो एयरपोर्ट पर हुई ड्रोन गतिविधि और पोलैंड,एस्टोनिया तथा रोमानिया के हवाई क्षेत्र में रूसी उल्लंघनों की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसे एक बड़े पैटर्न का हिस्सा मानकर देखा जाना चाहिए।

हालाँकि,रूस ने इन आरोपों का कड़ा खंडन किया है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने एक दैनिक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि यह आरोप पूरी तरह निराधार हैं और पश्चिमी देशों को बार-बार इस तरह की बयानबाज़ी से बचना चाहिए। पेसकोव ने इसे “गंभीरता की कमी” बताते हुए कहा कि डेनमार्क और उसके सहयोगियों को बिना सबूत के रूस को दोषी ठहराने की बजाय जाँच पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। रूस की यह प्रतिक्रिया इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिमी देश पिछले कुछ महीनों से रूस पर साइबर हमलों,हवाई क्षेत्र में घुसपैठ और ऊर्जा संरचनाओं को नुकसान पहुँचाने जैसी गतिविधियों के आरोप लगाते रहे हैं।

डेनिश मीडिया हाउस डीआर ने रिपोर्ट किया कि ड्रोन गतिविधि कोपेनहेगन हवाई अड्डे के पास लगातार कई घंटों तक दर्ज की गई। इसकी वजह से एयरपोर्ट अथॉरिटी को हवाई यातायात को पूरी तरह रोकना पड़ा। यात्रियों के लिए यह बेहद कठिन स्थिति थी क्योंकि कई अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें प्रभावित हुईं। अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा कारणों से उन्हें तत्काल कदम उठाना पड़ा और सभी उड़ानों की दिशा बदलनी पड़ी। पुलिस अब भी इन ड्रोन की उत्पत्ति और संचालन करने वालों का पता लगाने की कोशिश कर रही है।

इस घटना ने यूरोप में सुरक्षा बहस को और तेज कर दिया है। नाटो सहयोगियों को आशंका है कि यह केवल ड्रोन की तकनीकी गड़बड़ी या किसी शौकिया प्रयास का मामला नहीं है,बल्कि इसके पीछे एक संगठित रणनीति हो सकती है। डेनमार्क की प्रधानमंत्री ने इसे यूरोप की समग्र सुरक्षा से जोड़ते हुए कहा कि मौजूदा हालात में हर घटना को व्यापक संदर्भ में देखा जाना जरूरी है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ड्रोन का इस्तेमाल आधुनिक युद्ध और खुफिया गतिविधियों में तेजी से बढ़ा है। ड्रोन की पहुँच और क्षमताएँ इतनी बढ़ गई हैं कि वे अब हवाई अड्डों जैसे संवेदनशील स्थलों की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन गए हैं। नॉर्डिक देशों में हाल ही में रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर यह घटना और भी गंभीर मानी जा रही है। खासतौर पर इसलिए कि ये देश नाटो सदस्य हैं और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पहले से ही सुरक्षा सतर्कता की स्थिति में हैं।

हालाँकि,अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि ड्रोन कहाँ से आए और किसने उन्हें उड़ाया,लेकिन इतना साफ है कि इस घटना ने नॉर्डिक देशों को गहराई से झकझोर दिया है। कोपेनहेगन हवाई अड्डे की बंदी से अंतर्राष्ट्रीय हवाई यातायात प्रभावित हुआ और यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ा। वहीं,राजनीतिक स्तर पर यह मामला यूरोप और रूस के बीच बढ़ते अविश्वास को और गहरा कर सकता है।

फिलहाल डेनमार्क पुलिस और खुफिया एजेंसियाँ मामले की गहन जाँच कर रही हैं। वहीं सरकार ने आश्वासन दिया है कि देश की सुरक्षा को खतरे में नहीं पड़ने दिया जाएगा। इस बीच रूस और डेनमार्क के बीच बयानबाजी तेज हो गई है। जहाँ एक ओर डेनमार्क शक की उंगली रूस पर उठा रहा है,वहीं रूस लगातार इसे बेबुनियाद आरोप बता रहा है।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आधुनिक समय में ड्रोन तकनीक किस हद तक सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से इसे कैसे रोका जा सकता है। नॉर्डिक देशों के आसमान में मंडराते इन रहस्यमयी ड्रोन ने न केवल सुरक्षा एजेंसियों को बल्कि पूरे यूरोप को सतर्क कर दिया है।