नई दिल्ली,11 दिसंबर (युआईटीवी)- संसद का शीतकालीन सत्र जारी है और गुरुवार को राज्यसभा में चुनाव सुधारों पर बहस की शुरुआत के साथ ही सदन का माहौल एक बार फिर गर्म हो गया। बुधवार को लोकसभा में इस विषय पर हुई चर्चा की प्रतिध्वनि गुरुवार को उच्च सदन में भी सुनाई दी,जहाँ पक्ष और विपक्ष के सांसदों के बीच तीखी बहस देखने को मिली। चर्चा के दौरान कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के मुद्दे को प्रमुखता से उठाने की तैयारी की है,जबकि सत्ता पक्ष के सांसद विपक्ष पर भ्रामक प्रचार का आरोप लगाने के लिए तत्पर दिखाई दे रहे हैं।
राज्यसभा में कांग्रेस की ओर से अजय माकन,दिग्विजय सिंह और रणदीप सिंह सुरजेवाला अपनी बात रखेंगे। विपक्ष का रुख साफ है कि एसआईआर प्रक्रिया को लेकर कई गंभीर प्रश्न हैं,जिन पर सरकार को जवाब देना चाहिए। विपक्ष यह तर्क दे रहा है कि मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही अनिवार्य है,क्योंकि यही प्रक्रिया देश के लोकतांत्रिक ढाँचे के मूल स्तंभ—मतदाता अधिकार से जुड़ी हुई है। कांग्रेस का आरोप है कि हाल के महीनों में एसआईआर के नाम पर भ्रम फैलाया गया है और मतदाता सूची की शुद्धता को लेकर कई राज्यों में गंभीर अव्यवस्थाएँ सामने आई हैं।
दूसरी ओर,सत्ता पक्ष ने इस मुद्दे पर विपक्ष की आलोचना को निराधार बताते हुए सदन में सरकार की ओर से चार प्रमुख सांसद—सुधांशु त्रिवेदी,उज्ज्वल निकम,हर्ष शृंगला और कविता पाटीदार को जवाब देने की जिम्मेदारी दी है। ये सांसद विपक्ष द्वारा उठाए गए प्रश्नों और आरोपों का तथ्यात्मक जवाब देंगे। भाजपा का कहना है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्र प्रक्रिया में राजनीतिक दखलंदाजी की माँग करके विपक्ष लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अविश्वास पैदा कर रहा है,जो उचित नहीं है।
राज्यसभा में यह चर्चा ऐसे समय में हो रही है,जब पिछले दिन लोकसभा में भी चुनाव सुधारों पर लंबी बहस हुई थी। उस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर देश की जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर सत्र की शुरुआत में दो दिनों तक गतिरोध रहा,जबकि यह मुद्दा चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है और सदन के भीतर इस पर विस्तृत चर्चा की कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है। शाह का कहना था कि विपक्ष जनता के बीच यह गलत धारणा फैलाने की कोशिश कर रहा है कि सरकार चर्चा से बच रही है,जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा और एनडीए दल चर्चा से कभी नहीं भागते,लेकिन चर्चा संसद के नियमों और अधिकारों के अंतर्गत ही हो सकती है।
अमित शाह ने यह भी स्पष्ट किया था कि चुनाव आयोग सरकार के अंतर्गत नहीं आता,इसलिए एसआईआर जैसी प्रक्रियाओं से जुड़े प्रश्नों का सीधा उत्तर सरकार नहीं दे सकती। उनका कहना था कि सदन में चुनाव सुधारों पर चर्चा की सहमति बनी थी,लेकिन विपक्ष ने इसका दायरा बदलकर लगभग पूरी बहस को एसआईआर पर केंद्रित कर दिया। उन्होंने विपक्ष पर यह आरोप भी लगाया कि पिछले चार महीनों से एकतरफा तरीके से एसआईआर को लेकर भ्रम फैलाया गया है,जिससे जनता के मन में गलत धारणा बनी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि चुनाव सुधारों पर खुली और पारदर्शी चर्चा के लिए सरकार पूरी तरह तैयार है,लेकिन विपक्ष को भी सदन की प्रक्रियाओं और सीमाओं का सम्मान करना चाहिए।
शीतकालीन सत्र की कुल अवधि 19 दिसंबर तक निर्धारित है और यह पहले से ही स्पष्ट हो गया है कि आने वाले दिनों में सरकार और विपक्ष के बीच कई विषयों पर तीखी नोकझोंक देखने को मिलेगी। चुनाव सुधारों का मुद्दा,जो सीधे देश की चुनावी प्रणाली और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जुड़ा है,स्वाभाविक रूप से बहस का केंद्र बिंदु बना हुआ है। विपक्ष इसे लोकतंत्र की पारदर्शिता का मामला बता रहा है,जबकि सरकार इसे संवैधानिक प्रक्रिया और संस्थागत स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत कर रही है।
राज्यसभा में गुरुवार की चर्चा इस बात का संकेत है कि आगे भी सत्र के दौरान कई अहम विषयों पर इसी तरह की टकरावपूर्ण स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं। दोनों पक्षों के तेवर देखते हुए यह भी स्पष्ट है कि चुनाव सुधारों के बहाने राजनीतिक ध्रुवीकरण एक बार फिर गहराएगा। संसद के इस सत्र से आम जनता की अपेक्षा है कि बहसें महज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित न रहें,बल्कि देश की चुनाव प्रक्रिया को और बेहतर बनाने वाली ठोस नीतियों और सुधारों पर भी सार्थक संवाद हो।
