नई दिल्ली,18 दिसंबर (युआईटीवी)- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इथियोपिया की अपनी यात्रा पूरी कर ओमान के लिए प्रस्थान कर लिया है। इथियोपिया दौरे के समापन से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने अपने समकक्ष डॉ.अबी अहमद अली के साथ अदीस अबाबा में पौधारोपण किया और पर्यावरण संरक्षण के साथ भावनात्मक जुड़ाव का संदेश दिया। यह पौधारोपण ‘एक पेड़ माँ के नाम’ पहल के तहत इथियोपियाई प्रतिनिधि सभा परिसर में किया गया,जहाँ दोनों नेताओं ने फीनिक्स डैक्टिलिफेरा यानी खजूर का पौधा लगाया। भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर इसकी तस्वीरें साझा करते हुए इसे भारत–इथियोपिया मैत्री और सतत विकास की साझा प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया।
ओमान रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इथियोपिया के प्रति अपने आत्मीय भाव भी प्रकट किए। उन्होंने कहा कि इथियोपिया आकर उन्हें घर जैसा महसूस हुआ। उन्होंने इथियोपिया को “शेरों की धरती” बताते हुए अपने गृह राज्य गुजरात से इसकी समानता का उल्लेख किया,जो स्वयं भी शेरों की धरती के रूप में जाना जाता है। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य को दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और भावनात्मक निकटता के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
इथियोपिया यात्रा का सबसे अहम पड़ाव प्रधानमंत्री मोदी का इथियोपिया की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधन रहा। इस संबोधन के साथ ही इथियोपिया की संसद दुनिया की 18वीं ऐसी संसद बन गई,जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण दिया है। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने भारत और इथियोपिया के बीच सदियों पुराने संबंधों को रेखांकित करते हुए कहा कि दोनों देश केवल जलवायु ही नहीं,भावना के स्तर पर भी एक-दूसरे से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि लगभग 2000 साल पहले भारत और इथियोपिया के पूर्वजों ने हिंद महासागर के पार व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्क स्थापित किए थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उस दौर में भारतीय व्यापारी मसालों और सोने का व्यापार करते थे,लेकिन यह संबंध केवल वस्तुओं के लेन-देन तक सीमित नहीं था। उन्होंने जोर देकर कहा कि उस समय विचारों,जीवन शैली और सांस्कृतिक मूल्यों का भी आदान-प्रदान हुआ। उन्होंने अदीस और धोलेरा जैसे बंदरगाहों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये केवल व्यापारिक केंद्र नहीं थे,बल्कि सभ्यताओं के बीच सेतु का काम करते थे। प्रधानमंत्री के अनुसार,यही ऐतिहासिक विरासत आज आधुनिक युग में भारत–इथियोपिया संबंधों की मजबूत नींव बनी हुई है।
अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौर का भी उल्लेख किया,जब 1941 में इथियोपिया की मुक्ति के लिए भारतीय सैनिकों ने इथियोपियाई लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने कहा कि यह साझा संघर्ष दोनों देशों के रिश्तों में आपसी सम्मान और विश्वास का प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आज के दौर में भारत और इथियोपिया का संबंध एक नए युग में प्रवेश कर रहा है,जहाँ विकास,तकनीक,व्यापार और वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग को नई गति मिल रही है।
प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन के बाद इथियोपियाई संसद में भावनात्मक दृश्य देखने को मिला। जैसे ही उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया,संसद में मौजूद सांसद खड़े होकर तालियाँ बजाने लगे। यह दृश्य प्रधानमंत्री मोदी के भाषण और भारत के प्रति इथियोपिया के सम्मान का प्रतीक माना जा रहा है। कूटनीतिक जानकारों के अनुसार,किसी विदेशी नेता के लिए संसद में इस तरह का स्वागत दोनों देशों के बीच रिश्तों की गहराई को दर्शाता है।
इससे पहले इथियोपिया के प्रधानमंत्री डॉ.अबी अहमद अली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ग्रेट ऑनर निशान ऑफ इथियोपिया’ से सम्मानित किया था। इस सम्मान को पाने वाले प्रधानमंत्री मोदी पहले वैश्विक नेता बने हैं। सम्मान ग्रहण करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इसे अपने लिए गर्व का विषय बताया और कहा कि यह सम्मान केवल उनका व्यक्तिगत सम्मान नहीं है,बल्कि भारत और 140 करोड़ भारतीयों के प्रति इथियोपिया के स्नेह और सम्मान का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री मोदी की इथियोपिया यात्रा को भारत की अफ्रीका नीति के लिहाज से भी अहम माना जा रहा है। यह दौरा न केवल ऐतिहासिक संबंधों को नए सिरे से रेखांकित करता है,बल्कि भविष्य के सहयोग की दिशा भी तय करता है। पौधारोपण जैसे प्रतीकात्मक कदम से लेकर संसद के संयुक्त सत्र में दिए गए व्यापक दृष्टिकोण वाले भाषण तक,इस यात्रा ने भारत–इथियोपिया साझेदारी को नई ऊर्जा दी है।
अब प्रधानमंत्री मोदी ओमान की यात्रा पर हैं,जहाँ उनसे खाड़ी क्षेत्र में भारत के रणनीतिक,आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करने की उम्मीद की जा रही है। इथियोपिया से ओमान तक यह यात्रा भारत की सक्रिय और बहुआयामी कूटनीति का स्पष्ट उदाहरण मानी जा रही है,जिसमें परंपरा,विकास और वैश्विक सहयोग का संतुलित संदेश निहित है।
