वाशिंगटन,25 सितंबर (युआईटीवी)- हाल ही में अमेरिकी प्रशासन द्वारा एच-1बी वीज़ा शुल्क में भारी वृद्धि के कदम की अकादमिक और व्यावसायिक हलकों में व्यापक आलोचना हुई है। सबसे मुखर आलोचकों में येल विश्वविद्यालय के एक विद्वान भी शामिल हैं,जिन्होंने तर्क दिया कि इस फैसले से वैश्विक प्रतिभा बाजार में अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मकता पर गंभीर असर पड़ सकता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की प्रतिष्ठा पर प्रकाश डालते हुए,विद्वान ने कहा, “हर देश आईआईटी स्नातकों को पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है।” उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अमेरिका लंबे समय से भारत और अन्य देशों से, खासकर प्रौद्योगिकी,इंजीनियरिंग और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में,कुछ सबसे प्रतिभाशाली प्रतिभाओं को आकर्षित करने से लाभान्वित होता रहा है। इतनी कड़ी वित्तीय बाधाएँ लगाकर,अमेरिका प्रतिभा के इस प्रवाह को हतोत्साहित करने का जोखिम उठा रहा है।
एच-1बी वीज़ा हज़ारों उच्च कुशल पेशेवरों,खासकर भारत से,के लिए अमेरिकी कार्यबल में योगदान करने का एक प्रवेश द्वार रहा है। सिलिकॉन वैली और अन्य प्रौद्योगिकी केंद्र नवाचार को बढ़ावा देने और विकास को बनाए रखने के लिए लगातार इस प्रतिभा पूल पर निर्भर रहे हैं। उद्योग जगत के नेताओं को डर है कि वीज़ा शुल्क में वृद्धि से न केवल आवेदकों पर बोझ पड़ेगा,बल्कि कंपनियाँ विदेशों में कुशल कर्मचारियों को नियुक्त करने से भी बचेंगी।
आलोचकों का तर्क है कि कनाडा,यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश कुशल पेशेवरों के लिए अनुकूल आव्रजन नीतियाँ पेश करके पहले से ही इस अवसर का लाभ उठा रहे हैं। येल विश्वविद्यालय के इस विद्वान ने चेतावनी दी कि अगर नीतियाँ वैश्विक प्रतिभाओं के लिए देश में प्रवेश और फलने-फूलने को और कठिन बनाती रहीं,तो अमेरिका अपनी बढ़त खो सकता है।
भारतीय स्नातकों के लिए,विशेष रूप से आईआईटी जैसे प्रमुख संस्थानों से निकले स्नातकों के लिए। इससे संदेश स्पष्ट है कि विश्व उनका स्वागत करने के लिए तैयार है और वे अवसरों के लिए अमेरिका से आगे की ओर देख सकते हैं।