राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जॉन बोल्टन (तस्वीर क्रेडिट@sadhu_sadh)

पूर्व एनएसए जॉन बोल्टन के घर एफबीआई का छापा,संवेदनशील दस्तावेज़ों से जुड़ी जाँच ने बढ़ाई हलचल

वॉशिंगटन,23 अगस्त (युआईटीवी)- अमेरिका की राजनीति और खुफिया हलकों में शुक्रवार सुबह अचानक हलचल मच गई,जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जॉन बोल्टन के मैरीलैंड स्थित आवास पर संघीय जाँच एजेंसी एफबीआई ने छापा मारा। यह कार्रवाई बेथेस्डा इलाके में सुबह करीब 7 बजे हुई। बताया जा रहा है कि यह छापा संवेदनशील और गोपनीय दस्तावेज़ों से जुड़े पुराने मामले में डाला गया,जिसकी जाँच कई वर्ष पहले शुरू हुई थी। हालाँकि,बाइडेन प्रशासन के आने के बाद इस मामले को राजनीतिक कारणों से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। अब अचानक हुई इस कार्रवाई ने अमेरिकी राजनीति में नई बहस छेड़ दी है।

रिपोर्ट के मुताबिक एफबीआई के निदेशक कश पटेल ने इस छापेमारी का आदेश दिया था। छापे की शुरुआत के साथ ही पटेल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर संक्षिप्त संदेश लिखा, “कानून से ऊपर कोई नहीं…एफबीआई एजेंट मिशन पर हैं।” उनके इस बयान को लेकर अमेरिकी राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएँ शुरू हो गईं। कई लोग इसे न्याय की दिशा में आवश्यक कदम बता रहे हैं,वहीं कुछ आलोचक इसे राजनीतिक प्रतिशोध से जोड़कर देख रहे हैं।

छापेमारी की शुरुआत के दौरान ही सुबह 7 बजकर 32 मिनट पर बोल्टन ने भी ‘एक्स’ पर बयान साझा किया। उन्होंने ट्रंप प्रशासन की रूस-यूक्रेन नीति की आलोचना की और कहा कि मास्को का असली लक्ष्य अब भी यूक्रेन को नए रूसी साम्राज्य में शामिल करना है। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि इस संघर्ष को लेकर होने वाली वार्ताओं से कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने वाला। उनका यह बयान ऐसे समय आया है,जब अमेरिका और यूरोप दोनों ही रूस-यूक्रेन युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के विकल्पों पर चर्चा कर रहे हैं।

जॉन बोल्टन का नाम पहले भी विवादों में रहा है। 2020 में उनकी किताब “द रूम व्हेयर इट हैपन्ड” ने ट्रंप प्रशासन की नीतियों को लेकर खलबली मचा दी थी। इस किताब पर आरोप लगा कि इसमें गोपनीय जानकारी का खुलासा किया गया है। उस समय डोनाल्ड ट्रंप ने इसके प्रकाशन को रोकने की हर संभव कोशिश की थी,लेकिन वे सफल नहीं हो सके। किताब के प्रकाशन के बाद बोल्टन खुले तौर पर ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आलोचना करते रहे।

ट्रंप और बोल्टन के बीच रिश्ते लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही जनवरी माह में एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर पचास से अधिक पूर्व खुफिया अधिकारियों की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी थी,जिनमें जॉन बोल्टन भी शामिल थे। उस फैसले को भी आलोचकों ने राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया था। अब एफबीआई की ताज़ा कार्रवाई को उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है,खासकर इसलिए क्योंकि बोल्टन हाल ही में ट्रंप प्रशासन के भारत पर रूसी तेल आयात को लेकर लगाए गए भारी शुल्क की नीति की आलोचना कर चुके थे।

बोल्टन लंबे समय से अमेरिकी विदेश नीति के कट्टर आलोचक और समर्थक दोनों रूपों में देखे जाते रहे हैं। ट्रंप प्रशासन के दौरान वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे,लेकिन रूस,उत्तर कोरिया और ईरान जैसे मुद्दों पर उनके और ट्रंप के विचारों में अक्सर टकराव होता रहा। विशेष रूप से रूस के साथ संबंधों को लेकर बोल्टन ने हमेशा सख्त रुख अपनाने की वकालत की,जबकि ट्रंप पर रूस के प्रति नरम रहने के आरोप लगते रहे। यही कारण था कि बोल्टन को प्रशासन से बाहर होना पड़ा और तब से वे लगातार ट्रंप की नीतियों पर हमलावर बने हुए हैं।

एफबीआई की इस कार्रवाई ने अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य को और भी ध्रुवीकृत कर दिया है। डेमोक्रेटिक खेमे के नेता इसे कानून का राज कायम करने की दिशा में कदम बता रहे हैं,वहीं रिपब्लिकन खेमे के समर्थक इसे ट्रंप विरोधियों को निशाना बनाने का प्रयास मान रहे हैं। बोल्टन जैसे वरिष्ठ अधिकारी के घर छापेमारी से यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज़ों की सुरक्षा व्यवस्था में गंभीर खामियाँ हैं।

अमेरिकी मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले दिनों में यह मामला और तूल पकड़ सकता है। अगर एफबीआई को छापेमारी में कोई ठोस सबूत हाथ लगता है,तो बोल्टन के खिलाफ औपचारिक कार्रवाई भी हो सकती है। दूसरी ओर,यदि यह कार्रवाई सिर्फ एक औपचारिक प्रक्रिया साबित होती है,तो इसे राजनीतिक हथकंडा कहकर खारिज कर दिया जाएगा।

फिलहाल बोल्टन ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है। उन्होंने कहा है कि वे कानून के प्रति सम्मान रखते हैं और यदि जाँच एजेंसियों को उनकी किसी भी जानकारी की आवश्यकता है,तो वे पूरा सहयोग करेंगे। हालाँकि,उन्होंने यह भी जोड़ा कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों की आलोचना करना उनका लोकतांत्रिक अधिकार है और इसे रोकने के लिए किसी तरह का दबाव स्वीकार नहीं किया जा सकता।

जॉन बोल्टन के घर एफबीआई की छापेमारी अमेरिकी राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति दोनों के लिए गंभीर संकेत देती है। यह मामला केवल संवेदनशील दस्तावेज़ों की जाँच तक सीमित नहीं रहेगा,बल्कि आने वाले महीनों में 2024 के राष्ट्रपति चुनावी माहौल पर भी इसका असर पड़ सकता है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि एफबीआई की जाँच आगे क्या नया मोड़ लेती है और बोल्टन के खिलाफ क्या ठोस कार्रवाई की जाती है।