नई दिल्ली,30 अगस्त (युआईटीवी)- केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर डॉ. उर्जित पटेल को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में भारत का कार्यकारी निदेशक नियुक्त करने को मंजूरी दे दी है। यह नियुक्ति तीन वर्षों के लिए की गई है। उनकी तैनाती उस समय हुई है,जब वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है और भारत का आईएमएफ में प्रभावशाली योगदान और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। उर्जित पटेल की नियुक्ति को विशेषज्ञ भारत की आर्थिक कूटनीति और वैश्विक स्तर पर देश की वित्तीय आवाज को मजबूती देने वाला कदम मान रहे हैं।
दरअसल,यह नियुक्ति तब हुई है,जब कृष्णमूर्ति वी. सुब्रमण्यन की सेवा अचानक समाप्त कर दी गई थी। उनका कार्यकाल लगभग छह महीने पहले ही खत्म हो गया था,जिससे इस पद पर भारत का प्रतिनिधित्व खाली पड़ा हुआ था। ऐसे में सरकार का यह कदम न केवल संस्थागत स्थिरता को बहाल करने वाला है,बल्कि यह संकेत भी देता है कि भारत आईएमएफ जैसे वैश्विक वित्तीय संगठनों में अपनी भूमिका को और ज्यादा सशक्त बनाने की दिशा में गंभीर है।
डॉ. उर्जित पटेल का नाम भारतीय आर्थिक प्रशासन और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उन्हें भारत की मौद्रिक नीति में मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण फ्रेमवर्क के एक प्रमुख निर्माता के तौर पर जाना जाता है। इस फ्रेमवर्क ने भारतीय रिजर्व बैंक को एक स्पष्ट लक्ष्य दिया और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभाई।
केन्या में जन्मे पटेल ने अपने करियर की शुरुआत तीन दशक पहले आईएमएफ से ही की थी। उन्होंने वाशिंगटन डीसी से काम करते हुए करीब पाँच वर्ष तक इस संस्था के साथ जुड़कर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मामलों की गहरी समझ विकसित की। इसके बाद 1992 में वह भारत आए और नई दिल्ली में आईएमएफ के उप-स्थानिक प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत रहे। इस अनुभव ने उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था और वैश्विक वित्तीय नीतियों के बीच संतुलन बनाने की व्यावहारिक समझ दी,जो आज उन्हें आईएमएफ में भारत के हितों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में मदद करेगी।
पटेल 2016 में रघुराम राजन के बाद भारतीय रिजर्व बैंक के 24वें गवर्नर बने। हालाँकि,2018 में उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से अचानक इस्तीफा दे दिया,जिससे वे ऐसे पहले आरबीआई गवर्नर बने जिन्होंने कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ा। उनका यह कार्यकाल 1992 के बाद से अब तक का सबसे छोटा माना जाता है। बावजूद इसके,उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपने कार्यकाल में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के ढाँचे को मजबूती दी और भारत में आधुनिक मौद्रिक प्रबंधन के सिद्धांतों की नींव रखी।
आरबीआई गवर्नर बनने से पहले भी पटेल ने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। 1998 से 2001 तक वे वित्त मंत्रालय में सलाहकार रहे और इस दौरान उन्होंने कई प्रमुख नीतिगत निर्णयों में योगदान दिया। इसके अतिरिक्त,उन्होंने सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में कार्य किया। इनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज,आईडीएफसी लिमिटेड,एमसीएक्स लिमिटेड और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन जैसी संस्थाएं शामिल हैं। इस विविध अनुभव ने उन्हें न केवल नीतिगत स्तर पर बल्कि व्यावहारिक कार्यान्वयन के स्तर पर भी गहरी समझ प्रदान की है।
शैक्षणिक पृष्ठभूमि की बात करें तो पटेल ने येल विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की है। इसके अलावा उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमफिल और लंदन विश्वविद्यालय से बीएससी की डिग्री प्राप्त की है। इस मजबूत शैक्षणिक नींव ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय नीतियों और भारतीय आर्थिक परिप्रेक्ष्य के बीच एक सेतु बनाने में सक्षम बनाया है।
उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है,जब आईएमएफ द्वारा पाकिस्तान को दिए जा रहे बेलआउट पैकेज को लेकर भारत ने कड़ा विरोध जताया है। हाल ही में पाकिस्तान के लिए आईएमएफ बोर्ड ने एक मल्टी-ईयर प्रोग्राम के तहत 1 अरब डॉलर की पहली किस्त को मंजूरी दी थी,जिसकी कुल राशि 7 अरब डॉलर होगी। इसके अलावा 1.4 अरब डॉलर का अतिरिक्त फंड जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्वीकृत किया गया। भारत की चिंता यह रही है कि यह फंड कहीं सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में इस्तेमाल न हो। ऐसे में आईएमएफ के मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले कार्यकारी निदेशक की भूमिका बेहद अहम हो जाती है।
इसके समानांतर,भारत की आर्थिक स्थिति भी लगातार मजबूत होती जा रही है। हाल ही में आईएमएफ में भारत के विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) में 4.1 करोड़ डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई है,जबकि देश की आरक्षित स्थिति 1.5 करोड़ डॉलर बढ़कर 4.754 अरब डॉलर हो गई। यह संकेत है कि भारत का फाइनेंशियल बफर बढ़ रहा है और वह वैश्विक आर्थिक झटकों को झेलने की क्षमता विकसित कर रहा है। इस संदर्भ में उर्जित पटेल की विशेषज्ञता भारत की ओर से आईएमएफ में उठाए जाने वाले मुद्दों और नीतियों को मजबूती से प्रस्तुत करने में सहायक होगी।
विशेषज्ञ मानते हैं कि पटेल की नियुक्ति आईएमएफ के भीतर भारत की साख और प्रभाव को और अधिक बढ़ाएगी। उनका अनुभव और दृष्टिकोण न केवल भारत बल्कि विकासशील देशों की आवाज को भी और बुलंद करेगा। साथ ही,वैश्विक आर्थिक असमानताओं,जलवायु वित्त और विकासशील देशों की ऋण समस्याओं पर भारत की स्पष्ट और मजबूत स्थिति दर्ज कराने में भी यह मददगार साबित होगा।
डॉ. उर्जित पटेल की यह नियुक्ति केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं,बल्कि भारत की आर्थिक कूटनीति को और अधिक धार देने वाला कदम है। आईएमएफ जैसे वैश्विक वित्तीय मंच पर उनकी उपस्थिति से भारत न केवल अपने हितों की रक्षा कर सकेगा बल्कि वैश्विक वित्तीय नीतियों के निर्माण में भी निर्णायक भूमिका निभा सकेगा। इस लिहाज से उनकी यह नई जिम्मेदारी भारत के आर्थिक भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
