नई दिल्ली,19 जून (युआईटीवी)- गुरुवार को अमेरिकी फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) ने फेडरल फंड्स रेट को 4.25-4.5% के दायरे में स्थिर बनाए रखने का निर्णय लिया,जो मौजूदा वैश्विक आर्थिक माहौल और भू-राजनीतिक अस्थिरता के बीच एक संतुलित और रणनीतिक कदम माना जा रहा है। इस निर्णय की सराहना न केवल अर्थशास्त्रियों,बल्कि वैश्विक उद्योग विशेषज्ञों ने भी की है,जिन्होंने इसे अमेरिका की आर्थिक स्थिरता और रोजगार सृजन के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत बताया है।
अमेरिका में फिलहाल आर्थिक गतिविधियों में तेजी देखी जा रही है। बेरोजगारी दर न्यूनतम स्तर पर बनी हुई है,जो कि श्रम बाजार की मजबूती को दर्शाती है। इन संकेतकों के बावजूद,अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया है,जिससे यह स्पष्ट होता है कि फेड दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की रणनीति पर चल रहा है।
पीएच.डी.चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) के अध्यक्ष हेमंत जैन ने इस निर्णय की सराहना करते हुए कहा कि, “हालाँकि आर्थिक अनिश्चितता अब थोड़ी कम हुई है,लेकिन यह पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। फेड का यह निर्णय अधिकतम रोजगार को समर्थन देने और मुद्रास्फीति को 2% के लक्ष्य पर लाने के उद्देश्य से किया गया है,जो एक विवेकपूर्ण और नीतिगत रूप से उचित रुख है।”
एफओएमसी बैठक के दौरान फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने टैरिफ आधारित मुद्रास्फीति को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आखिरकार टैरिफ की लागत का बोझ उपभोक्ताओं तक पहुँचता है,जिससे सामानों की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। हालाँकि,उन्होंने यह भी कहा कि फेड अभी अर्थव्यवस्था में कोई कमजोर संकेत नहीं देख रहा है और वह टैरिफ के पूर्ण प्रभाव को जानने के लिए प्रतीक्षा की स्थिति में है।
एमके ग्लोबल की एक रिपोर्ट के अनुसार,फेड अगले किसी भी मौद्रिक हस्तक्षेप से पहले श्रम बाजार में कमजोरी के स्पष्ट संकेतों की प्रतीक्षा करेगा। इसके साथ ही, टैरिफ से उत्पन्न होने वाली अस्थायी कीमतों में वृद्धि (वन-टाइम इफेक्ट) पर भी नजर रखी जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर में ब्याज दरों में कटौती की संभावना अधिक है,जबकि जुलाई में इसकी संभावना बेहद कम (सिर्फ 10%) है। मार्केट प्राइसिंग भी इसी दिशा की ओर संकेत करता है। सितंबर के लिए 63% की संभावना बताई गई है।
फेड ने 2025 के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाकर 1.4% कर दिया है,जो पहले की तुलना में 30 बेसिस पॉइंट कम है। वहीं,कोर सीपीआई (मुद्रास्फीति) का अनुमान बढ़ाकर 3.1% कर दिया गया है,जो 30 बीपीएस ऊपर है। यह दोनों बदलाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए आने वाले समय में मंदी और मूल्य दबावों की दोहरी चुनौती को दर्शाते हैं।
एंजेल वन के विश्लेषक वकार जावेद खान का मानना है कि अमेरिकी फेड के निर्णय का असर केवल अमेरिकी इक्विटी बाजारों तक सीमित नहीं रहेगा,बल्कि यह वैश्विक स्तर पर लिक्विडिटी और पूँजी प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा, “शॉर्ट-टर्म ट्रेजरी यील्ड्स में अस्थिरता देखने को मिली,लेकिन समग्र अमेरिकी स्टॉक इंडेक्स अपेक्षाकृत स्थिर रहे। अगर 2025 में 50 बेसिस पॉइंट की संभावित दर में कटौती होती है,तो यह वैश्विक लिक्विडिटी को सहारा दे सकती है और भारतीय शेयर बाजारों को भी लाभ मिल सकता है।”
हालाँकि,उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि मध्य पूर्व में बढ़ते सैन्य तनाव,व्यापारिक शुल्क और टैरिफ नीतियाँ आगे चलकर जोखिम उत्पन्न कर सकती हैं,जिससे बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
अर्थशास्त्रियों और नीति-निर्माताओं का मानना है कि फेड अब आने वाले महीनों में आर्थिक आँकड़ों पर करीब से नजर रखेगा। वह नई आर्थिक सूचनाओं के आधार पर मौद्रिक नीति को लचीले ढंग से समायोजित करने के लिए तैयार रहेगा। इसका मतलब यह है कि यदि आर्थिक गतिविधियों में कमजोरी,बेरोजगारी दर में वृद्धि या मुद्रास्फीति में असामान्य तेजी देखी गई,तो फेड अपनी मौद्रिक नीति में आवश्यकतानुसार बदलाव करने से पीछे नहीं हटेगा।
एफओएमसी द्वारा ब्याज दरों को यथावत रखने का निर्णय एक संतुलित और रणनीतिक कदम है,जो मौजूदा वैश्विक हालातों और अमेरिका की घरेलू आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर लिया गया है। जहाँ एक ओर यह निर्णय श्रम बाजार को समर्थन देता है,वहीं दूसरी ओर यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की दिशा में भी कारगर है।
व्यापारिक अनिश्चितता,टैरिफ प्रभाव और भू-राजनीतिक तनाव जैसे कारकों के बीच फेड का संयमित रुख यह दर्शाता है कि अमेरिका की मौद्रिक नीति अब प्रतिक्रियात्मक नहीं,बल्कि विश्लेषणात्मक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से संचालित हो रही है। इससे न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिलेगी,बल्कि वैश्विक निवेशकों और साझेदारों में भी विश्वास बढ़ेगा।
भारतीय बाजार और निवेशकों के लिए यह एक संकेत है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में किसी भी हलचल का सीधा असर उनके निवेश और पोर्टफोलियो पर पड़ सकता है। इसीलिए,आने वाले महीनों में फेड की नीतियों और वैश्विक आर्थिक घटनाओं पर लगातार नजर रखना आवश्यक होगा।
