प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (तस्वीर क्रेडिट@SonOfBharat7)

सिडनी के बोंडी बीच पर फायरिंग से दहला ऑस्ट्रेलिया,16 की मौत के बीच नेतन्याहू ने पीएम अल्बनीज पर लगाए गंभीर आरोप

नई दिल्ली,15 दिसंबर (युआईटीवी)- ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में रविवार को बोंडी बीच पर हुई भीषण फायरिंग की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस दर्दनाक हमले में मरने वालों की संख्या बढ़कर 16 हो गई है,जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल बताए जा रहे हैं। यह इलाका आमतौर पर पर्यटकों और स्थानीय लोगों की भीड़ से भरा रहता है,लेकिन फायरिंग के बाद वहाँ चीख-पुकार,अफरा-तफरी और दहशत का माहौल फैल गया। घटना के चश्मदीदों ने बताया कि गोलियों की आवाज सुनते ही लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे,कई लोग जमीन पर लेट गए और कुछ समुद्र की ओर दौड़ पड़े। बोंडी बीच,जो ऑस्ट्रेलिया की पहचान मानी जाती है,कुछ ही पलों में खौफ और खून से सना हुआ नजर आने लगा।

घटना के बाद ऑस्ट्रेलियाई सुरक्षा एजेंसियों ने पूरे इलाके को सील कर दिया और बड़े पैमाने पर जाँच शुरू की। पुलिस का कहना है कि हमलावरों की पहचान और उनके मकसद को लेकर जाँच जारी है। इस बीच,देशभर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है और सार्वजनिक स्थानों पर पुलिस की मौजूदगी बढ़ा दी गई है। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने घटना पर गहरा शोक जताते हुए कहा कि यह देश के लिए एक काला दिन है और निर्दोष लोगों की हत्या किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जा सकती।

हालाँकि,इस हमले ने अब अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक विवाद का रूप भी ले लिया है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस फायरिंग को लेकर सीधे तौर पर ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज को निशाने पर लिया है। नेतन्याहू ने आरोप लगाया है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार की नीतियों और रुख ने देश में यहूदी-विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया है,जिसका नतीजा इस तरह की हिंसक घटनाओं के रूप में सामने आया है।

इजरायली प्रधानमंत्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि उन्होंने करीब चार महीने पहले,17 अगस्त को,ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखकर आगाह किया था। उस चिट्ठी में नेतन्याहू ने अल्बनीज को चेतावनी दी थी कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार की नीतियाँ यहूदी-विरोधी भावनाओं को हवा दे रही हैं। नेतन्याहू के अनुसार,फिलिस्तीनी देश के समर्थन में ऑस्ट्रेलिया की माँग ने यहूदी विरोधी आग में घी डालने का काम किया है। उन्होंने कहा कि इससे न केवल हमास जैसे आतंकी संगठनों को नैतिक समर्थन मिलता है,बल्कि ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले यहूदियों के खिलाफ नफरत और धमकियों को भी बढ़ावा मिलता है।

नेतन्याहू ने अपने बयान में कहा कि यहूदी विरोध एक कैंसर की तरह है,जो तब फैलता है,जब नेता चुप रहते हैं और तब कमजोर पड़ता है,जब नेतृत्व मजबूत कदम उठाता है। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री पर कमजोरी और तुष्टीकरण की नीति अपनाने का आरोप लगाया। इजरायली प्रधानमंत्री के शब्दों में, “आपने कमजोरी को ताकत से नहीं,बल्कि और ज्यादा कमजोरी से बदला है। आपने तुष्टीकरण को खत्म करने के बजाय और बढ़ावा दिया है।”

नेतन्याहू ने आरोप लगाया कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने देश के भीतर यहूदी-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। उनके मुताबिक,सरकार ने बढ़ती नफरत को रोकने के बजाय उसे पनपने दिया,जिसका परिणाम अब खुलेआम हिंसा और हमलों के रूप में सामने आ रहा है। उन्होंने कहा कि यहूदियों के खिलाफ बढ़ती नफरत को एक “बीमारी” बताते हुए आरोप लगाया कि सरकार ने समय रहते इसका इलाज नहीं किया और अब इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

इजरायली प्रधानमंत्री ने इस घटना के दौरान एक व्यक्ति की बहादुरी का भी जिक्र किया,जिसने कथित तौर पर एक हमलावर को और लोगों को नुकसान पहुँचाने से रोका। नेतन्याहू ने कहा कि वह व्यक्ति एक मुस्लिम था और उसकी बहादुरी की सराहना की जानी चाहिए। हालाँकि,उन्होंने जोर देकर कहा कि व्यक्तिगत बहादुरी के बजाय सरकारों की जिम्मेदारी होती है कि वे अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। नेतन्याहू के अनुसार,अगर सरकारें कमजोर पड़ती हैं,तो आतंक और नफरत को खुला मैदान मिल जाता है।

इस पूरे घटनाक्रम को नेतन्याहू ने पश्चिमी देशों के लिए एक चेतावनी के रूप में भी पेश किया। उन्होंने कहा कि यहूदी विरोध केवल यहूदियों के खिलाफ नहीं है,बल्कि यह पश्चिमी मूल्यों,संस्कृति और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला है। उन्होंने दावा किया कि जो ताकतें यहूदियों को निशाना बनाती हैं,वे अंततः पूरे पश्चिम को अपना लक्ष्य बनाती हैं।

अपने बयान में नेतन्याहू ने हाल ही में सीरिया में मारे गए अमेरिकी सैनिकों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सीरिया में दो अमेरिकी सैनिकों और एक अमेरिकी दुभाषिए की हत्या इस बात का सबूत है कि आतंकवादी ताकतें साझा पश्चिमी मूल्यों के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं। नेतन्याहू ने अमेरिकी रक्षा सचिव के बयान का हवाला देते हुए कहा कि अमेरिका की नीति स्पष्ट है कि जो भी अमेरिकियों को निशाना बनाएगा,उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने कहा कि इजरायल की नीति भी बिल्कुल यही है।

इजरायली प्रधानमंत्री ने बेहद सख्त शब्दों में चेतावनी दी कि दुनिया के किसी भी कोने में अगर कोई यहूदियों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेगा,तो इजरायल चुप नहीं बैठेगा। उन्होंने कहा कि हत्यारे अपनी बाकी की जिंदगी डर और चिंता में बिताएँगे,यह जानते हुए कि इजरायल उन्हें ढूँढेगा और बेरहमी से खत्म करेगा। नेतन्याहू के इस बयान को कई देशों में बेहद आक्रामक और तीखा माना जा रहा है।

दूसरी ओर,ऑस्ट्रेलिया में इस घटना को लेकर शोक और आक्रोश का माहौल है। बोंडी बीच पर मारे गए लोगों की याद में श्रद्धांजलि सभाएँ आयोजित की जा रही हैं और लोगों ने सरकार से सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने की माँग की है। यहूदी समुदाय के लोगों में भी भय और चिंता का माहौल है। कई संगठनों ने सरकार से यहूदी-विरोधी नफरत के खिलाफ सख्त कानून और कार्रवाई की माँग की है।

ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अभी तक नेतन्याहू के आरोपों पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है,लेकिन प्रधानमंत्री अल्बनीज पहले ही साफ कर चुके हैं कि ऑस्ट्रेलिया में किसी भी तरह की नफरत,नस्लवाद या धार्मिक हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार ने भरोसा दिलाया है कि दोषियों को जल्द-से-जल्द कानून के कटघरे में लाया जाएगा।

विश्लेषकों का मानना है कि बोंडी बीच फायरिंग की घटना अब केवल एक आपराधिक मामला नहीं रह गई है,बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति,पश्चिम एशिया संकट और यहूदी-विरोधी बहस से भी जुड़ गई है। इजरायल और ऑस्ट्रेलिया के बीच इस मुद्दे पर बयानबाजी से कूटनीतिक तनाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। वहीं,आम लोगों के लिए यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि आधुनिक और सुरक्षित माने जाने वाले देशों में भी आम नागरिक कितने सुरक्षित हैं।

फिलहाल,सिडनी की सड़कों पर सन्नाटा है,लेकिन लोगों के मन में डर और सवाल दोनों मौजूद हैं। बोंडी बीच पर हुई यह फायरिंग न केवल 16 जिंदगियों को लील गई,बल्कि इसने वैश्विक राजनीति और सुरक्षा को लेकर एक नई बहस भी छेड़ दी है, जिसका असर आने वाले दिनों में अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर साफ तौर पर देखने को मिल सकता है।