तियानजिन,1 सितंबर (युआईटीवी)- चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन ने सोमवार को एक मजबूत और एकजुट संदेश दिया। सदस्य देशों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की और स्पष्ट किया कि आतंकवाद,अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई में अब किसी भी प्रकार की ढिलाई या दोहरे मापदंड स्वीकार नहीं किए जाएंगे।
घोषणापत्र में कहा गया कि सदस्य देश मृतकों और घायलों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे हमलों के दोषियों,आयोजकों और प्रायोजकों को किसी भी हाल में न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए। यह बयान केवल संवेदना प्रकट करने तक सीमित नहीं रहा,बल्कि आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक प्रतिबद्धता का भी पुनः स्मरण कराता है।
सदस्य देशों ने इस अवसर पर आतंकवाद,अलगाववाद और उग्रवाद को “तीन बुराइयाँ” बताते हुए कहा कि इनका निजी या स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल पूरी तरह अस्वीकार्य है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि आतंकवाद से निपटने के लिए संप्रभु राष्ट्रों और उनकी सक्षम संस्थाओं की अग्रणी भूमिका को मान्यता दी जानी चाहिए। इसका सीधा संकेत यह है कि बाहरी हस्तक्षेप या राजनीतिक दबाव की बजाय हर देश को अपनी क्षमता और संस्थागत ढाँचे के अनुसार इन चुनौतियों से लड़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
बैठक में यह भी दोहराया गया कि सदस्य देश सभी प्रकार के आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मापदंडों के लिए कोई स्थान नहीं है। दरअसल,वैश्विक परिदृश्य में कई बार यह आरोप लगता रहा है कि कुछ देश आतंकवाद के मामले में चयनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं। एससीओ देशों का यह रुख इस प्रकार के व्यवहार को सिरे से खारिज करता है।
घोषणापत्र में यह भी अपील की गई कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होकर काम करे। इसमें न केवल आतंकी घटनाओं से निपटने की बात कही गई,बल्कि सीमापार आतंकियों की आवाजाही को रोकने पर भी विशेष बल दिया गया। भारत लंबे समय से इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा है और तियानजिन में हुई बैठक ने इस दिशा में उसकी चिंताओं को मान्यता दी।
इस सम्मेलन का एक और अहम पहलू भारत की पहलों को मिली मान्यता रहा। घोषणापत्र में ‘एक पृथ्वी,एक परिवार,एक भविष्य’ की थीम को समर्थन दिया गया। यह थीम भारत ने वैश्विक स्तर पर जी20 अध्यक्षता के दौरान भी प्रस्तुत की थी और अब एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंच पर इसे स्वीकार किया जाना भारत की कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है।
इसके अलावा सदस्य देशों ने 3 से 5 अप्रैल 2025 को नई दिल्ली में आयोजित हुए 5वें एससीओ स्टार्टअप फोरम के परिणामों का स्वागत किया। यह मंच विज्ञान,तकनीकी उपलब्धियों और नवाचार के क्षेत्र में सहयोग को गहराई देने में अहम साबित हुआ है। स्टार्टअप्स आज विश्व अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुके हैं और इस मंच ने एससीओ देशों को एक साझा नेटवर्क बनाने का अवसर दिया है। इससे न केवल रोजगार और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा,बल्कि सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
घोषणापत्र में मई 2025 में नई दिल्ली में आयोजित 20वें एससीओ थिंक टैंक फोरम की भी सराहना की गई। इस आयोजन में नीति निर्माण और रणनीतिक सहयोग के नए आयामों पर विचार-विमर्श हुआ था। थिंक टैंक फोरम को एक ऐसा मंच माना जा रहा है,जिसने सदस्य देशों के बीच आपसी समझ और सहयोग को गहराई देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इसके अतिरिक्त भारतीय विश्व मामलों की परिषद (आईसीडब्ल्यूए) में स्थापित एससीओ अध्ययन केंद्र को भी विशेष मान्यता दी गई। यह केंद्र सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। सांस्कृतिक और मानवीय संवाद को कूटनीति का पूरक माना जाता है और भारत इस दिशा में लगातार अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
तियानजिन में आयोजित इस शिखर सम्मेलन ने जहाँ एक ओर आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक स्तर पर एक मजबूत संदेश दिया,वहीं दूसरी ओर यह भी स्पष्ट किया कि भारत की पहलों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती स्वीकृति मिल रही है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एससीओ का यह रुख भारत की उस नीति के अनुरूप है,जिसमें वह बिना किसी अपवाद के आतंकवाद के सभी रूपों को अस्वीकार्य मानता है।
एससीओ शिखर सम्मेलन का यह सत्र बहुआयामी रहा। एक ओर जहाँ पहलगाम हमले की निंदा कर आतंकवाद के खिलाफ साझा संकल्प दिखाया गया,वहीं भारत के नेतृत्व और पहल को सराहते हुए उसे संगठन में एक प्रमुख भूमिका निभाने का अवसर भी दिया गया। यह सम्मेलन इस बात का प्रतीक है कि एशियाई और यूरेशियाई देशों का यह संगठन अब केवल सुरक्षा मामलों तक सीमित नहीं है,बल्कि विज्ञान,तकनीक,संस्कृति और मानवीय सहयोग तक अपनी भूमिका का विस्तार कर रहा है। भारत के लिए यह अवसर न केवल अपनी कूटनीति को और प्रभावी बनाने का है,बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को और सुदृढ़ करने का भी है।