नई दिल्ली,22 अगस्त (युआईटीवी)- विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 19 से 21 अगस्त तक रूस का दौरा कर भारत-रूस संबंधों में एक नया अध्याय जोड़ा। यह दौरा न केवल दोनों देशों के बीच बढ़ते रणनीतिक और आर्थिक सहयोग का संकेत था,बल्कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत और रूस के साझेदारी को और सुदृढ़ करने की दिशा में भी एक बड़ा कदम साबित हुआ। इस दौरान उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन,विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव सहित कई प्रमुख नेताओं और विद्वानों से मुलाकात की। साथ ही,भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (आईआरआईजीसी-टीईसी) के 26वें सत्र की सह-अध्यक्षता कर उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार,ऊर्जा,तकनीकी और कूटनीतिक सहयोग को नई ऊँचाइयों पर ले जाने की नींव रखी।
19 अगस्त को जयशंकर ने मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भेंट की। इस मुलाकात में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश और अभिवादन पुतिन तक पहुँचाया। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय एजेंडे के साथ-साथ यूक्रेन संकट जैसे वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की। पुतिन और जयशंकर के बीच हुई इस वार्ता में अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य, क्षेत्रीय सुरक्षा और आपसी हितों के मसले प्रमुख रूप से शामिल रहे। भारत ने इस दौरान संवाद और कूटनीति को विवादों के समाधान का सर्वोत्तम मार्ग बताते हुए वैश्विक शांति में योगदान देने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
20 अगस्त को विदेश मंत्री ने रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव के साथ आईआरआईजीसी-टीईसी के 26वें सत्र की सह-अध्यक्षता की। इस बैठक में भारत और रूस के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को और मजबूती देने पर जोर दिया गया। दोनों पक्षों ने टैरिफ और गैर-टैरिफ व्यापार बाधाओं को दूर करने, लॉजिस्टिक नेटवर्क को मजबूत करने,कनेक्टिविटी बढ़ाने और भुगतान प्रणाली को सरल बनाने पर सहमति व्यक्त की। बैठक में यह भी तय हुआ कि 2030 तक दोनों देश मिलकर आर्थिक सहयोग कार्यक्रम को पूरी तरह लागू करेंगे। इस दिशा में भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते को जल्द पूरा करने पर विशेष जोर दिया गया।
भारत और रूस ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए न केवल व्यापारिक संपर्क बढ़ाने की योजना बनी बल्कि व्यवसायियों के बीच नियमित संवाद को भी प्राथमिकता दी गई। बैठक के अंत में दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने एक विस्तृत प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए,जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि लिए गए फैसले प्रभावी रूप से लागू हों।
सत्र के दौरान ऊर्जा सहयोग को गहराई देने पर भी जोर दिया गया। रूस भारत का प्रमुख ऊर्जा साझेदार रहा है और दोनों देशों ने इस क्षेत्र में नई परियोजनाओं और निवेश को बढ़ावा देने का निर्णय लिया। साथ ही,भारतीय कुशल श्रमिकों की गतिशीलता,विशेषकर आईटी,इंजीनियरिंग और निर्माण क्षेत्र में श्रमिकों को बढ़ाने पर भी सहमति बनी। इससे न केवल तकनीकी सहयोग बढ़ेगा बल्कि रोजगार और विशेषज्ञता के अवसर भी व्यापक होंगे।
आईआरआईजीसी-टीईसी सत्र के बाद आयोजित भारत-रूस व्यापार मंच में दोनों देशों के अधिकारी,व्यवसायी और उद्योग प्रतिनिधि शामिल हुए। इस मंच पर विदेश मंत्री जयशंकर और मंटुरोव ने संयुक्त रूप से उद्यमियों को संबोधित किया। उन्होंने व्यापार मंच और आयोग के कार्य समूहों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रस्ताव रखा,ताकि भविष्य के सहयोग को और बेहतर दिशा मिल सके। यह मंच भारत-रूस आर्थिक साझेदारी को व्यवहारिक धरातल पर मजबूत करने की एक बड़ी पहल साबित हुआ।
21 अगस्त को विदेश मंत्री ने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात की। इस बैठक में दोनों नेताओं ने भारत-रूस संबंधों की व्यापक समीक्षा की। रक्षा,व्यापार और सैन्य-तकनीकी सहयोग पर विस्तार से चर्चा हुई। इसके अलावा,कजान और येकातेरिनबर्ग में नए भारतीय वाणिज्य दूतावासों के उद्घाटन को तेज करने पर भी सहमति बनी। वैश्विक मंचों पर सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताते हुए दोनों नेताओं ने जी20,ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में संयुक्त कार्यवाही पर सहमति जताई।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार को लेकर भी भारत और रूस ने एक जैसी सोच का प्रदर्शन किया और बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। दोनों पक्षों ने यूक्रेन,मध्य पूर्व, पश्चिम एशिया और अफगानिस्तान की स्थिति पर भी चर्चा की। जयशंकर ने दोहराया कि संवाद और कूटनीति ही संघर्षों के समाधान का वास्तविक रास्ता है। इसके साथ ही उन्होंने रूसी सेना में काम कर रहे भारतीय नागरिकों के मामलों पर शीघ्र समाधान की उम्मीद जताई।
आतंकवाद के खिलाफ भी दोनों देशों ने मिलकर लड़ने का संकल्प लिया। भारत ने इस दौरान सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ अपनी सख्त नीति को दोहराया और आतंकवाद को किसी भी रूप में स्वीकार न करने का स्पष्ट संदेश दिया।
रूस दौरे के अंत में जयशंकर और लावरोव ने अगले वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारियों पर चर्चा की। जयशंकर ने लावरोव को भारत आने का निमंत्रण भी दिया। इस पूरे दौरे ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत और रूस की साझेदारी केवल पारंपरिक रक्षा सहयोग तक सीमित नहीं है,बल्कि यह ऊर्जा,प्रौद्योगिकी,व्यापार,वैश्विक कूटनीति और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे बहुआयामी क्षेत्रों तक फैल चुकी है।
जयशंकर का यह दौरा भारत-रूस संबंधों को और गहराई देने वाला साबित हुआ। इससे यह संकेत भी मिला कि बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच भारत और रूस अपनी पुरानी दोस्ती को नए युग की जरूरतों के अनुसार ढालने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह यात्रा इस बात का प्रमाण है कि दोनों देश न केवल अपने द्विपक्षीय हितों की रक्षा कर रहे हैं,बल्कि वैश्विक मंच पर भी मिलकर शांति और स्थिरता की दिशा में काम करने के इच्छुक हैं।