एस. जयशंकर और काजा कालास (तस्वीर क्रेडिट@BoleBharatHindi)

विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने दिया स्पष्ट संदेश,कहा- यह भारत और पाकिस्तान के बीच का संघर्ष नहीं,यह भारत बनाम ‘आतंकिस्तान’ है

ब्रुसेल्स,11 जून (युआईटीवी)- भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने एक बार फिर से स्पष्ट और आक्रामक भाषा में भारत की विदेश नीति का रुख वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया है। यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ ब्रुसेल्स में आयोजित पहली रणनीतिक वार्ता के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने दो टूक कहा कि भारत न तो आतंकवाद को बर्दाश्त करेगा और न ही किसी प्रकार की परमाणु धमकी के आगे झुकेगा।

अपने बयानों में जयशंकर ने यह स्पष्ट किया कि भारत के सामने केवल एक पड़ोसी देश का मुद्दा नहीं है,बल्कि यह एक वैश्विक सुरक्षा चुनौती बन चुका है। उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा, “यह केवल दो देशों के बीच संघर्ष नहीं है। यह वास्तव में एक ख़तरे और आतंकवाद की संस्कृति के विरुद्ध प्रतिक्रिया है। कृपया इसे भारत-पाकिस्तान के संघर्ष की तरह न देखें,इसे भारत और आतंकिस्तान के बीच के संघर्ष की तरह देखें।”

यह बयान केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं,बल्कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की दृढ़ नीति का प्रतीक है। जयशंकर का यह शब्द “आतंकिस्तान” वैश्विक समुदाय को यह स्पष्ट करने के लिए था कि पाकिस्तान एक राज्य के रूप में नहीं,बल्कि एक आतंकी विचारधारा के अड्डे के रूप में कार्य कर रहा है।

विदेश मंत्री ने साफ किया कि भारत आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर चलता है और वह आतंकवाद के किसी भी रूप को स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि आतंकवाद अब केवल क्षेत्रीय मुद्दा नहीं रहा,बल्कि यह एक ऐसी चुनौती बन चुका है,जिससे वैश्विक सहयोग के बिना नहीं निपटा जा सकता।

उन्होंने कहा कि,“आतंकवाद एक साझा और परस्पर जुड़ी वैश्विक चुनौती है। इस पर नियंत्रण के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठोस सहयोग और समझ जरूरी है।”

जयशंकर ने परमाणु हथियारों के डर के माध्यम से धमकाने की रणनीति को भी सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा कि भारत किसी भी तरह के परमाणु ब्लैकमेल के सामने नहीं झुकेगा। यह सीधा संदेश उन देशों के लिए है,जो बार-बार परमाणु हमले की धमकी देकर क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करते हैं।

जयशंकर की यह यात्रा केवल पाकिस्तान या आतंकवाद पर बयान देने तक सीमित नहीं रही,बल्कि भारत और यूरोपीय संघ के बढ़ते संबंधों की गहराई को भी दर्शाती है। उन्होंने कहा कि भारत और ईयू अब बहुध्रुवीयता और रणनीतिक स्वायत्तता के युग में प्रवेश कर चुके हैं और यह दोनों पक्षों को और अधिक नजदीक ला रहा है।

ब्रसेल्स में ईयू के उच्च प्रतिनिधि और यूरोपीय आयोग की उपाध्यक्ष काजा कालास के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में जयशंकर ने कहा,“आज की बैठक खुली और उपयोगी रही। हमने समुद्री सुरक्षा,साइबर डिफेंस,स्पेस सेक्टर जैसे क्षेत्रों में सहयोग की दिशा में गहन बातचीत की।”

भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) पर भी चर्चा हुई। जयशंकर ने बताया कि भारत का लक्ष्य है कि वर्ष के अंत तक इस महत्वाकांक्षी समझौते को अंतिम रूप दिया जाए। उन्होंने कहा कि भारत और ईयू के बीच मजबूत आर्थिक रिश्तों की बहुत संभावनाएँ हैं और एफटीए इसके लिए एक निर्णायक कड़ी साबित हो सकता है। हमारे दृष्टिकोण हर बार पूरी तरह से मेल नहीं खा सकते हैं और यह स्वाभाविक है,लेकिन ज़रूरी यह है कि हम विश्वास और साझा समझ का विस्तार करें।

जयशंकर ने बताया कि बैठक में यूरोप की स्थिति,यूक्रेन संघर्ष,मध्य पूर्व, हिंद-प्रशांत क्षेत्र और भारतीय उपमहाद्वीप की मौजूदा परिस्थितियों पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ। उन्होंने कहा कि यह बैठक ऐसे समय हो रही है,जब पूरी दुनिया में भू-राजनीतिक अस्थिरता और शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है।

उन्होंने यह भी जोड़ा कि, “आज की वैश्विक व्यवस्था गहन परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। ये परिवर्तन केवल राजनीतिक ही नहीं,बल्कि रणनीतिक और तकनीकी मोर्चों पर भी देखे जा सकते हैं। इस नई व्यवस्था में भारत और यूरोपीय संघ दो प्रमुख साझेदार हैं।”

यूरोपीय संघ की उपाध्यक्ष काजा कालास ने भी भारत के रुख का समर्थन करते हुए कहा कि परमाणु धमकियों से कुछ हासिल नहीं होता। उन्होंने कहा,“यह साझा चिंता का विषय है कि दुनिया में कई देश परमाणु हथियारों की धमकी का दुरुपयोग कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमें और अधिक साझेदारों की आवश्यकता है और इसलिए हम भारत के साथ सुरक्षा और रक्षा में सहयोग को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

विदेश मंत्री जयशंकर की इस यात्रा और उनके बयान से भारत की विदेश नीति का स्पष्ट संदेश सामने आता है कि भारत न तो आतंकवाद के आगे झुकेगा,न ही किसी परमाणु दबाव में आएगा। भारत अब वैश्विक मंच पर केवल प्रतिक्रियाशील राष्ट्र नहीं, बल्कि रणनीतिक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर रहा है।

इस यात्रा ने न केवल भारत-ईयू संबंधों को नई गति दी है,बल्कि यह भी साबित किया है कि भारत साझा वैश्विक चुनौतियों के समाधान में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। भारत का रुख अब सक्रिय,स्पष्ट और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आत्मविश्वास से भरा हुआ है,एक ऐसा भारत जो न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करता है,बल्कि वैश्विक स्थिरता में भी योगदान देने के लिए तैयार है।