26/11 मुंबई हमले का आरोपी तहव्वुर राणा (तस्वीर क्रेडिट@udaykumarroy)

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर राणा को लगा झटका,प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मॉंग वाली याचिका खारिज

नई दिल्ली,7 मार्च (युआईटीवी)- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई आतंकवादी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की मॉंग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। मुंबई आतंकवादी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा ने भारत को प्रत्यर्पण पर रोक लगाने के लिए अपनी याचिका शीर्ष अदालत से खारिज किए जाने के बाद एक नई अर्जी अमेरिका के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स के समक्ष दायर की है। पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा वर्तमान में लॉस एंजिल्स के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद है। उसकी उम्र 64 साल है और वह मुंबई हमले के सिलसिले में भारत को प्रत्यर्पित किए जाने का विरोध कर रहा है।

राणा ने अपनी याचिका में यह दावा किया था कि यदि उसे भारत प्रत्यर्पित किया गया तो उसके साथ अमानवीय बर्ताव किया जा सकता है और उसे यातना का सामना करना पड़ सकता है। राणा का कहना है कि उसकी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हैं और अगर उसे भारत भेजा जाता है,तो यह उसकी मौत की सजा जैसा होगा। इसके अलावा,उसने यह भी तर्क दिया है कि भारत में उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रियाओं में उचित न्याय की गारंटी नहीं है और इसलिए उसका प्रत्यर्पण संयुक्त राष्ट्र की यातना विरोधी कन्वेंशन का उल्लंघन होगा।

राणा ने 27 फरवरी को अमेरिका की उच्चतम न्यायालय के एसोसिएट जस्टिस और नौवें सर्किट की सर्किट जस्टिस एलेना कागन के समक्ष अपनी याचिका पेश की थी। इसमें उसने माँग की थी कि उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लंबित मुकदमे पर रोक लगाई जाए,ताकि उसकी प्रत्यर्पण प्रक्रिया पर कोई असर न पड़े। हालाँकि, न्यायमूर्ति कागन ने इस याचिका को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद राणा के वकीलों ने एक नई अर्जी दायर की,जिसमें उन्होंने यह अनुरोध किया कि उनकी याचिका को मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स के समक्ष पेश किया जाए।

राणा के वकील यह तर्क दे रहे हैं कि भारत को प्रत्यर्पित करना अमेरिकी कानून और अंतर्राष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन होगा। उनके अनुसार,राणा को भारत में गंभीर यातना और दुर्व्यवहार का सामना हो सकता है,क्योंकि वह एक पाकिस्तानी मूल का मुस्लिम है और मुंबई हमले का आरोपी है। इस कारण राणा के वकील यह चाहते हैं कि उसकी प्रत्यर्पण प्रक्रिया को रोका जाए,ताकि उसे भारतीय हिरासत में न भेजा जाए। राणा की याचिका में यह भी कहा गया है कि भारतीय जेलों में उसकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ सकती है और उसे उपयुक्त इलाज नहीं मिल सकता। इस मामले में, राणा का दावा है कि उसे भारत भेजना उसके लिए एक तरह की मौत की सजा हो सकती है।

राणा की यह याचिका अमेरिकी अदालत में उस समय दायर की गई थी,जब जनवरी 2025 में अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने उसकी याचिका खारिज करते हुए उसके प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी थी। अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि राणा को भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है,लेकिन राणा और उसके वकील इसके खिलाफ लड़ाई जारी रखे हुए हैं।

राणा पर आरोप है कि वह 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों में शामिल था, जिसमें 170 से अधिक लोग मारे गए थे। उसके खिलाफ भारतीय अधिकारियों द्वारा आपराधिक मामले दायर किए गए हैं और वह भारतीय न्यायालय में अपने अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने का सामना कर रहा है। राणा के खिलाफ अमेरिकी अदालत में भी आतंकवाद से जुड़े आरोप लगे हैं और वह तब से हिरासत में है।

इस मुद्दे पर एक ओर अहम पहलू यह है कि भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण संधि है,जिसके तहत आरोपी को एक देश से दूसरे देश को प्रत्यर्पित किया जा सकता है। हालाँकि,राणा का दावा है कि उसकी विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसे अमेरिका में ही रखा जाना चाहिए और प्रत्यर्पित नहीं किया जाना चाहिए।

राणा की याचिका के संदर्भ में यह सवाल भी उठता है कि क्या एक व्यक्ति के मानवाधिकार और न्याय की सुरक्षा को अन्य देशों के न्यायिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से संतुलित किया जा सकता है। अमेरिका में ऐसे मामलों में अक्सर अंतर्राष्ट्रीय क़ानून,विशेषकर मानवाधिकारों के सिद्धांतों का पालन करने की आवश्यकता होती है। राणा की याचिका में जो तर्क दिए गए हैं,वे न केवल उसके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए हैं,बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि किस तरह से एक अभियुक्त को विभिन्न न्यायिक प्रणालियों के बीच संतुलन और सुरक्षा की आवश्यकता होती है।

यह मामला सिर्फ राणा के लिए ही नहीं,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय न्याय व्यवस्था, मानवाधिकारों और प्रत्यर्पण संधियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है। अमेरिकी न्यायालयों का यह निर्णय,चाहे वह राणा के पक्ष में हो या न हो,यह साफ करेगा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में न्याय और मानवीय अधिकारों को किस तरह से प्राथमिकता दी जाती है।