डोनाल्ड ट्रंप

गूगल पर जुर्माना लगाने से भड़के डोनाल्ड ट्रंप,यूरोपीय संघ पर टैरिफ लगाने की दी धमकी

वाशिंगटन,6 सितंबर (युआईटीवी)- अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच व्यापारिक तनातनी एक बार फिर से तेज हो गई है। शुक्रवार को यूरोपीय संघ (ईयू) ने अमेरिकी टेक दिग्गज गूगल पर प्रतिस्पर्धा नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए 2.95 अरब यूरो यानी लगभग 3.47 अरब डॉलर का जुर्माना ठोक दिया। इस कार्रवाई के तुरंत बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कड़ा रुख अपनाते हुए ईयू पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी। ट्रंप ने यूरोपीय संघ पर आरोप लगाया कि वह अमेरिकी कंपनियों को निशाना बना रहा है और यह रवैया न केवल अनुचित है,बल्कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था और रोजगार के अवसरों को भी नुकसान पहुँचा रहा है।

ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर लिखा, “यूरोप ने आज एक और बड़ी अमेरिकी कंपनी गूगल पर 3.5 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया है। यह पैसा वास्तव में अमेरिका में निवेश और नौकरियों पर खर्च हो सकता था,लेकिन अब वह छीन लिया गया है। यह बहुत ही गलत है और अमेरिकी जनता इसे सहन नहीं करेगी। मेरी सरकार ऐसी भेदभावपूर्ण कार्रवाइयों को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेगी। अगर यूरोप इस तरह अमेरिकी कंपनियों पर अनुचित जुर्माने लगाता रहा,तो मैं ‘धारा 301’ के तहत कड़ी कार्रवाई शुरू करने के लिए मजबूर हो जाऊँगा।”

धारा 301 का जिक्र करके ट्रंप ने साफ कर दिया कि वह यूरोपीय संघ के खिलाफ व्यापारिक मोर्चे पर कठोर कदम उठाने से पीछे नहीं हटेंगे। धारा 301 अमेरिकी व्यापार अधिनियम का हिस्सा है,जिसके तहत राष्ट्रपति को किसी भी देश पर अनुचित व्यापार व्यवहार करने के आरोप में शुल्क या टैरिफ लगाने का अधिकार होता है। यह वही प्रावधान है,जिसका इस्तेमाल पहले चीन के खिलाफ किया गया था और जिसके चलते अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध शुरू हुआ था।

यूरोपीय संघ ने गूगल पर लगाया गया जुर्माना इस आधार पर ठोका है कि कंपनी ने अपने विज्ञापन कारोबार में एकाधिकार कायम करते हुए अन्य प्रतिस्पर्धियों को नुकसान पहुँचाया और बाजार में अनुचित लाभ उठाया। यूरोपीय आयोग की प्रमुख प्रतिस्पर्धा नियामक टेरेसा रिबेरा ने कहा, “आज के फैसले से साफ होता है कि गूगल ने विज्ञापन तकनीक के क्षेत्र में अपनी मजबूत स्थिति का गलत इस्तेमाल किया है। इसने प्रकाशकों,विज्ञापनदाताओं और अंततः उपभोक्ताओं को भी नुकसान पहुँचाया है। गूगल को अपनी इन प्रैक्टिस को तुरंत रोकने का आदेश दिया गया है।”

यह पहली बार नहीं है,जब यूरोपीय संघ ने गूगल को प्रतिस्पर्धा कानूनों के उल्लंघन का दोषी ठहराया हो। पिछले दस वर्षों में यह चौथी बार है,जब ब्रुसेल्स ने कंपनी पर अरबों यूरो का जुर्माना लगाया है। इससे पहले भी गूगल को कुल मिलाकर करीब 13 अरब डॉलर के जुर्माने चुकाने पड़े हैं। इस ताज़ा जुर्माने के साथ ही कंपनी पर अब तक का कुल वित्तीय बोझ 16.5 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है।

गूगल ने इस फैसले को चुनौती देने की घोषणा की है। कंपनी का कहना है कि वह यूरोपीय आयोग के फैसले से सहमत नहीं है और कानूनी अपील दायर करेगी। कंपनी ने अपने बयान में कहा, “हम मानते हैं कि हमारा विज्ञापन कारोबार सभी साझेदारों के लिए लाभकारी है और यह उपभोक्ताओं को भी बेहतर सेवाएँ उपलब्ध कराता है। हम इस फैसले की समीक्षा करेंगे और उचित कानूनी रास्ता अपनाएँगे।”

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का गुस्सा इस जुर्माने के बाद और भड़क गया। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ लगातार अमेरिकी टेक कंपनियों को निशाना बना रहा है। “गूगल,अमेज़न,एप्पल,माइक्रोसॉफ्ट इन सभी कंपनियों को यूरोप ने कभी-न-कभी किसी-न-किसी बहाने से अरबों डॉलर का जुर्माना लगाया है। यह एक सुनियोजित रणनीति है,जिसका मकसद अमेरिकी कंपनियों की सफलता को रोकना और यूरोपीय बाजार में उन्हें कमजोर करना है,लेकिन हम चुप नहीं बैठेंगे। हम अपने हितों की रक्षा करेंगे।”

ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया कि यूरोपीय संघ की ऐसी कार्रवाइयाँ सीधे तौर पर अमेरिका की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं। “ये पैसे हमारे देश में निवेश और रोजगार सृजन के लिए इस्तेमाल हो सकते थे। यूरोप इन धनराशियों को छीन रहा है। अमेरिकी जनता इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेगी।”

गौरतलब है कि हाल ही में अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच एक कठिन और विवादित व्यापार समझौता हुआ था। इस समझौते पर ईयू के 27 सदस्य देशों ने वोट दिया था,लेकिन कई यूरोपीय नेताओं ने इसकी आलोचना की थी। समझौते का उद्देश्य अमेरिका और यूरोप के बीच व्यापारिक संबंधों को नया संतुलन देना था,लेकिन डिजिटल नियमों और बड़ी टेक कंपनियों को लेकर दोनों पक्षों के बीच तनाव लगातार बना हुआ है।

यूरोपीय संघ की तरफ से बार-बार अमेरिकी टेक कंपनियों पर प्रतिस्पर्धा नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता रहा है। गूगल के अलावा,एप्पल और अमेज़न जैसी कंपनियाँ भी पिछले कुछ सालों में भारी जुर्माने का सामना कर चुकी हैं। यूरोपीय संघ का कहना है कि बड़ी टेक कंपनियाँ अपने बाजार वर्चस्व का इस्तेमाल करके छोटे खिलाड़ियों को बाहर कर देती हैं और इससे प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाती है। वहीं,अमेरिकी सरकार का तर्क है कि यह जुर्माना दरअसल यूरोपीय संघ की संरक्षणवादी नीति का हिस्सा है,जिसका मकसद अपनी स्थानीय कंपनियों को फायदा पहुँचाना है।

ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है,जब वैश्विक स्तर पर व्यापारिक समीकरणों में बदलाव देखने को मिल रहा है। चीन और अमेरिका के बीच लंबे समय से चला आ रहा व्यापार युद्ध अभी पूरी तरह सुलझा नहीं है और अब यूरोप के साथ भी मतभेद गहराते दिख रहे हैं। अगर अमेरिका ने वाकई ईयू पर नए टैरिफ लगा दिए,तो इसका असर ट्रांस-अटलांटिक व्यापार पर गंभीर रूप से पड़ सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह विवाद केवल जुर्माने तक सीमित नहीं है,बल्कि डिजिटल अर्थव्यवस्था के नियमों और नियंत्रण पर अमेरिका और यूरोप की अलग-अलग सोच को भी उजागर करता है। यूरोप उपभोक्ताओं और छोटे व्यवसायों की सुरक्षा के लिए सख्त नियम लागू करना चाहता है,जबकि अमेरिका मानता है कि ऐसी पाबंदियाँ नवाचार को रोकती हैं और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बाधा डालती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस विवाद को बड़े पैमाने पर देखा जा रहा है। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह टकराव आने वाले महीनों में और गहरा सकता है,क्योंकि दोनों पक्ष अपने-अपने हितों पर समझौता करने को तैयार नहीं दिख रहे। जहाँ यूरोप डिजिटल बाजार में पारदर्शिता और संतुलन चाहता है,वहीं अमेरिका अपनी कंपनियों की स्वतंत्रता और वैश्विक प्रभुत्व को बनाए रखना चाहता है।

फिलहाल,गूगल पर लगाए गए इस जुर्माने ने अमेरिका-यूरोप संबंधों में एक और नई दरार डाल दी है। राष्ट्रपति ट्रंप का आक्रामक बयान और टैरिफ लगाने की चेतावनी इस बात का संकेत है कि आने वाले दिनों में ट्रांस-अटलांटिक व्यापारिक रिश्ते और अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गूगल की अपील पर यूरोपीय अदालत क्या फैसला सुनाती है और ट्रंप प्रशासन अपने शब्दों को वास्तविक कदमों में कैसे बदलता है।

स्पष्ट है कि गूगल पर जुर्माना केवल एक कंपनी का मामला नहीं है,बल्कि यह अमेरिका और यूरोप के बीच तकनीक,व्यापार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की जटिल लड़ाई का प्रतीक बन चुका है। आने वाले समय में इसका असर न केवल कंपनियों पर,बल्कि दोनों महाद्वीपों की अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक डिजिटल व्यापार व्यवस्था पर भी गहराई से देखने को मिलेगा।