बांग्लादेश में हिंसक घटना (तस्वीर क्रेडिट@BenefitNews24)

बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा और अराजकता: छात्र संगठनों व पत्रकारों की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से चुनाव और प्रेस स्वतंत्रता बचाने की अपील

ढाका,22 दिसंबर (युआईटीवी)- बांग्लादेश इस समय गंभीर राजनीतिक,सामाजिक और संस्थागत संकट के दौर से गुजर रहा है। देश में बढ़ती हिंसा,भीड़तंत्र,आगजनी, पत्रकारों पर हमले और अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराधों ने न केवल आंतरिक हालात को अस्थिर कर दिया है,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता बढ़ा दी है। इन्हीं परिस्थितियों के बीच अवामी लीग पार्टी की छात्र शाखा बांग्लादेश स्टूडेंट्स लीग (बीएसएल) और देश के वरिष्ठ पत्रकारों व संपादकों ने खुलकर अपनी बात रखी है। छात्रों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वह 12 फरवरी 2026 को प्रस्तावित अगले आम चुनाव को स्वतंत्र,निष्पक्ष और समावेशी बनाने में सक्रिय भूमिका निभाए,वहीं पत्रकारों ने प्रेस की स्वतंत्रता और आलोचनात्मक पत्रकारिता की सुरक्षा की गुहार लगाई है।

बीएसएल ने मौजूदा हालात के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है। छात्र संगठन का आरोप है कि यह सरकार न केवल गैरकानूनी और गैर-संवैधानिक है,बल्कि इसके संरक्षण में देश में भीड़तंत्र को बढ़ावा मिला है। बीएसएल का कहना है कि बांग्लादेश तेजी से अव्यवस्था,अराजकता और चरमपंथ की ओर धकेला जा रहा है,जहाँ कानून-व्यवस्था लगभग खत्म हो चुकी है और आम नागरिकों,छात्रों,पत्रकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा खतरे में है।

अपने बयान में बीएसएल ने कहा कि हाल के महीनों में देशभर में भीड़ हिंसा, आगजनी,संगठित हमले,जबरन गायब किए जाने और बेरहमी से हत्याओं की घटनाओं में खतरनाक वृद्धि हुई है। संगठन ने साफ कहा कि ये घटनाएँ न तो अचानक हुई हैं और न ही अलग-थलग हैं,बल्कि ये जुलाई-अगस्त 2024 के दौरान शुरू हुए उस सुनियोजित अभियान का हिस्सा हैं,जिसके जरिए प्रधानमंत्री शेख हसीना और अवामी लीग के नेतृत्व वाली संवैधानिक और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को सत्ता से हटाया गया।

बीएसएल का आरोप है कि शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद देश में संवैधानिक शासन की जगह व्यवस्थित तरीके से भीड़तंत्र को स्थापित किया गया है। इस भीड़तंत्र में सुनियोजित हिंसा,डर का माहौल और अपराधियों को सजा से छूट मिलना आम बात हो गई है। छात्र संगठन का कहना है कि यह स्थिति किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए बेहद खतरनाक है,क्योंकि इसमें कानून का शासन समाप्त हो जाता है और ताकतवर समूह अपनी मर्जी थोपने लगते हैं।

बीएसएल ने विशेष रूप से मीडिया संस्थानों,सांस्कृतिक संगठनों,अल्पसंख्यक समुदायों,राजनीतिक दलों और ऐतिहासिक राष्ट्रीय प्रतीकों पर हुए हमलों का जिक्र करते हुए कहा कि ये घटनाएँ यह साबित करती हैं कि बांग्लादेश में अब कानून का राज नहीं रह गया है। संगठन के अनुसार देश को जानबूझकर एक “प्रबंधित अराजकता” की स्थिति में धकेला जा रहा है,जहाँ सरकार की नाकामी और डर के जरिए तानाशाही मानसिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है।

छात्र संगठन ने हाल ही में बांग्लादेश के दो प्रमुख अखबारों—प्रोथोम एलो और द डेली स्टार के दफ्तरों पर हुए आगजनी हमलों की कड़ी निंदा की। बीएसएल ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा और फासीवादी हमला करार दिया। खासतौर पर द डेली स्टार की इमारत को जलाने की कोशिश को बेहद गंभीर बताया गया,क्योंकि उस वक्त इमारत के अंदर स्टाफ के सदस्य मौजूद थे। बीएसएल ने कहा कि यह घटना केवल डराने की कोशिश नहीं,बल्कि हत्या की कोशिश जैसी थी। इसके साथ ही न्यू एज के संपादक नूरुल कबीर को परेशान किए जाने की घटना का जिक्र करते हुए संगठन ने कहा कि यह साफ संकेत है कि पत्रकारों और स्वतंत्र आवाजों को सिस्टमैटिक तरीके से निशाना बनाया जा रहा है।

बीएसएल ने जिस घटना को सबसे ज्यादा डरावना बताया,वह मैमनसिंह जिले के भालुका उपजिला में हुई। यहाँ हिंदू युवक दीपू चंद्र दास को कथित रूप से झूठे ईशनिंदा के आरोप में भीड़ ने पकड़ लिया,पेड़ से बाँधकर बेरहमी से पीटा और बाद में उसकी हत्या कर शव जला दिया गया। छात्र संगठन ने कहा कि बिना किसी जाँच, कानूनी प्रक्रिया या न्यायिक हस्तक्षेप के किया गया यह कृत्य सरकार की पूरी नाकामी और मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन को दर्शाता है। बीएसएल का कहना है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ इस तरह की हिंसा बांग्लादेश की बहुलतावादी और धर्मनिरपेक्ष पहचान के लिए गंभीर खतरा है।

इसके अलावा बीएसएल ने चटगांव,राजशाही और खुलना में भारतीय राजनयिक मिशनों पर बार-बार होने वाले हमलों पर भी गहरी चिंता जताई। संगठन ने कहा कि ये हमले 1961 के वियना कन्वेंशन का स्पष्ट उल्लंघन हैं और यह दिखाते हैं कि भीड़ की हिंसा को सरकार की विदेश नीति के एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। बीएसएल ने चेतावनी दी कि इस तरह की घटनाएँ न केवल बांग्लादेश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुँचा रही हैं,बल्कि पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंधों को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं।

छात्र संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वह बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति को गंभीरता से ले और 12 फरवरी 2026 को होने वाले आम चुनाव को स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी बनाने के लिए रचनात्मक हस्तक्षेप करे। बीएसएल का कहना है कि केवल एक विश्वसनीय और लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया के जरिए ही देश को अराजकता और हिंसा के इस दौर से बाहर निकाला जा सकता है।

इसी बीच बांग्लादेश के एडिटर्स और पत्रकारों ने भी अपनी चिंताओं को सार्वजनिक रूप से रखा है। उन्होंने प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) से अपील की है कि अगर वह भविष्य में सत्ता में आती है,तो प्रेस की पूरी आजादी और आलोचनात्मक पत्रकारिता की गारंटी दे। पत्रकारों ने बीएनपी से यह भी कहा कि वह आलोचनाओं को सहन करने की संस्कृति विकसित करे और सत्ता में आने पर जवाबदेही सुनिश्चित करे।

दरअसल यह अपील उस कार्यक्रम के दौरान सामने आई,जिसका आयोजन बीएनपी ने अपने एक्टिंग चेयरमैन तारिक रहमान की 18 साल बाद देश वापसी के संदर्भ में किया था। इस कार्यक्रम में द डेली स्टार के संपादक महफूज अनम ने बेहद तीखे और भावनात्मक शब्दों में मौजूदा हालात का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के 53 साल के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी मीडिया संस्थान के दफ्तर पर आगजनी का हमला किया गया हो। प्रोथोम एलो और द डेली स्टार के ऑफिस पर हुए हालिया हमलों को उन्होंने अभूतपूर्व और बेहद खतरनाक बताया।

महफूज अनम ने सवाल उठाया कि आखिर ऐसा क्यों हुआ और मीडिया का क्या अपराध है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश इस समय बहुत बुरी हालत में है,क्योंकि उसके संस्थानों को चुनौती दी जा रही है और उन्हें कमजोर या खत्म किया जा रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि पिछले 53 वर्षों में तमाम राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद मीडिया दफ्तरों को इस तरह हिंसा का सामना नहीं करना पड़ा था।

अनम ने राजनीतिक दलों से अपील की कि वे अच्छे शासन और लोकतंत्र के लिए आलोचनात्मक पत्रकारिता को जरूरी मानें। उन्होंने कहा कि देश में बोलने की आजादी तो है,लेकिन आलोचनात्मक राय जाहिर करने के लिए बहुत कम जगह बची है। उनके अनुसार,बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास से यह स्पष्ट होता है कि किसी भी सरकार ने पूरी तरह से क्रिटिकल जर्नलिज्म को स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि “नए बांग्लादेश” में इस मानसिकता को बदला जाएगा और प्रेस को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाएगा।

वहीं प्रोथोम एलो के संपादक मतिउर रहमान ने भी मीडिया के अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि अवामी लीग के 16 साल के शासनकाल में मीडिया के लिए हालात बेहद मुश्किल रहे। इस दौरान झूठे मुकदमे,गिरफ्तारियाँ,मीडिया संस्थानों के मालिकाना हक में बदलाव और न्यूजरूम पर लगातार दबाव जैसे हालात बने रहे। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि बीएनपी के सत्ता में रहने का पिछला दौर,तुलना में मीडिया के लिए ज्यादा आरामदायक था।

मतिउर रहमान ने कहा कि मौजूदा समय में बीएनपी देश की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभर रही है और ऐसे में प्रेस की आजादी की रक्षा करने की जिम्मेदारी भी उसी पर आती है। उन्होंने माना कि इस वक्त बांग्लादेश में एक तरह का राजनीतिक खालीपन है,जो बेहद खतरनाक स्थिति है। उनके मुताबिक यह हालात बीएनपी के लिए भी आसान नहीं हैं,लेकिन अगर पार्टी सत्ता में लौटती है तो उसे विनम्रता,सहिष्णुता और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ आगे बढ़ना होगा।

बांग्लादेश आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है,जहाँ छात्र संगठन,पत्रकार और नागरिक समाज एक साथ खड़े होकर लोकतंत्र,मानवाधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा की माँग कर रहे हैं। बढ़ती हिंसा,भीड़तंत्र और संस्थागत कमजोरियों ने देश के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आने वाले आम चुनाव न केवल सत्ता परिवर्तन का जरिया होंगे,बल्कि यह तय करेंगे कि बांग्लादेश कानून के शासन,लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की आजादी की राह पर लौटता है या फिर अराजकता और डर के इस दौर में और गहराता चला जाता है।