वाशिंगटन,13 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिका में एच-1बी वीज़ा को लेकर एक बड़ा कानूनी और राजनीतिक टकराव सामने आया है। देश के 20 राज्यों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के खिलाफ संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया है। इन राज्यों का आरोप है कि एच-1बी वीज़ा के नए आवेदनों पर 1 लाख अमेरिकी डॉलर की भारी-भरकम फीस लगाना न सिर्फ़ अवैध है,बल्कि इससे शिक्षा,स्वास्थ्य और अन्य जरूरी सार्वजनिक सेवाओं पर गंभीर नकारात्मक असर पड़ेगा। यह मुकदमा सीधे तौर पर डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी की उस नीति को चुनौती देता है,जिसके तहत विदेशी कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए नियोक्ताओं पर अचानक असाधारण शुल्क थोप दिया गया है।
इस कानूनी लड़ाई की अगुवाई कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बॉन्टा कर रहे हैं। उनके साथ मैसाचुसेट्स की अटॉर्नी जनरल एंड्रिया जॉय कैंपबेल भी सह-याचिकाकर्ता हैं। इनके अलावा एरिज़ोना,कोलोराडो,कनेक्टिकट,डेलावेयर,हवाई, इलिनोइस,मैरीलैंड,मिशिगन,मिनेसोटा,नेवाडा,नॉर्थ कैरोलिना,न्यू जर्सी,न्यूयॉर्क,ओरेगन,रोड आइलैंड,वर्मोंट,वाशिंगटन और विस्कॉन्सिन जैसे राज्यों के अटॉर्नी जनरल भी इस मुकदमे में शामिल हैं। राज्यों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर यह फैसला लिया है और इसके लिए न तो कांग्रेस की मंजूरी ली गई और न ही प्रशासनिक प्रक्रिया का पालन किया गया।
एच-1बी वीज़ा अमेरिका की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम माना जाता है। इस वीज़ा कार्यक्रम के तहत विदेशी कुशल पेशेवरों को अमेरिकी कंपनियों और संस्थानों में काम करने की अनुमति मिलती है। खास तौर पर तकनीक,स्वास्थ्य,शोध और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में इसकी भूमिका निर्णायक रही है। अस्पतालों,विश्वविद्यालयों और सरकारी स्कूलों में बड़ी संख्या में एच-1बी वीज़ा धारक काम करते हैं,जिनके बिना इन संस्थानों के लिए अपनी सेवाएँ सुचारु रूप से चलाना मुश्किल हो सकता है।
कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बॉन्टा ने इस नीति की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते कैलिफोर्निया भली-भांति जानता है कि वैश्विक प्रतिभा को आकर्षित करने से राज्य और देश दोनों आगे बढ़ते हैं। उनके अनुसार,राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा लगाई गई 1 लाख डॉलर की एच-1बी फीस न सिर्फ़ बेवजह है,बल्कि यह कानून के खिलाफ भी है। बॉन्टा का कहना है कि इतनी भारी फीस से स्कूलों,अस्पतालों और अन्य जरूरी सेवाएँ देने वाले संस्थानों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और पहले से मौजूद कर्मचारियों की कमी और गंभीर हो जाएगी।
ट्रंप प्रशासन ने यह फीस 19 सितंबर 2025 को जारी एक आधिकारिक घोषणा के ज़रिए लागू की थी। इसके तहत 21 सितंबर के बाद दायर किए गए सभी नए एच-1बी वीज़ा आवेदनों पर यह शुल्क लागू कर दिया गया। इस घोषणा में होमलैंड सिक्योरिटी सेक्रेटरी को यह अधिकार भी दिया गया कि वे तय करें कि कौन से आवेदन इस फीस के दायरे में आएँगे और किन मामलों में छूट दी जा सकती है। राज्यों का तर्क है कि इस तरह का व्यापक और आर्थिक रूप से असर डालने वाला फैसला बिना स्पष्ट नियमों और पारदर्शी प्रक्रिया के नहीं लिया जा सकता।
मुकदमे में कहा गया है कि यह नीति प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम,संघीय कानून और अमेरिकी संविधान का उल्लंघन करती है। राज्यों के अनुसार,अब तक एच-1बी वीज़ा से जुड़ी फीस सिर्फ़ कार्यक्रम को चलाने और प्रशासनिक खर्चों तक सीमित रही है। अचानक 1 लाख डॉलर जैसी रकम लगाना न केवल असंगत है,बल्कि यह कांग्रेस द्वारा तय की गई सीमाओं को भी तोड़ता है। संघीय कानून के अनुसार,कार्यपालिका को इतनी बड़ी आर्थिक नीति लागू करने का अधिकार नहीं है,खासकर तब जब उसका असर पूरे देश के सार्वजनिक ढांचे पर पड़ता हो।
फिलहाल एच-1बी वीज़ा के लिए नियोक्ताओं को अलग-अलग तरह की फीस देनी होती है,जो कुल मिलाकर लगभग 960 डॉलर से लेकर 7,595 डॉलर तक होती है। इसके अलावा, कानून यह भी अनिवार्य करता है कि नियोक्ता यह प्रमाण दें कि विदेशी कर्मचारी रखने से अमेरिकी कर्मचारियों की सैलरी या काम की परिस्थितियों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। नई नीति इन सभी प्रावधानों से हटकर एक असाधारण आर्थिक बाधा खड़ी करती है।
कांग्रेस ने एच-1बी वीज़ा की संख्या पर भी स्पष्ट सीमा तय की है। अधिकांश निजी क्षेत्र के लिए यह संख्या सालाना 65,000 तक सीमित है,जबकि उच्च डिग्री प्राप्त पेशेवरों के लिए 20,000 अतिरिक्त वीज़ा उपलब्ध कराए जाते हैं। हालाँकि,स्कूलों, विश्वविद्यालयों और अस्पतालों जैसे सरकारी और गैर-लाभकारी संस्थानों को इस सीमा से छूट दी गई है,ताकि वे योग्य और कुशल कर्मचारियों की कमी से जूझ न सकें। राज्यों का कहना है कि नई फीस इन छूटों के उद्देश्य को ही कमजोर कर देगी।
शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र पहले से ही कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। अटॉर्नी जनरल्स का तर्क है कि यदि नियोक्ताओं को हर एच-1बी आवेदन पर 1 लाख डॉलर चुकाने होंगे,तो वे विदेशी प्रतिभा को नियुक्त करने से पीछे हटेंगे। इसका सीधा असर अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों की उपलब्धता,विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों और शोधकर्ताओं की संख्या और स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति पर पड़ेगा। अंततः इसका खामियाजा आम अमेरिकी नागरिकों को भुगतना पड़ेगा।
इस विवाद का अंतर्राष्ट्रीय पहलू भी है। एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम विदेशी पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करने का एक अहम रास्ता माना जाता है। इसके तहत बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर अमेरिका में तकनीक,स्वास्थ्य और शोध के क्षेत्र में योगदान देते हैं। नई फीस से न सिर्फ़ अमेरिकी संस्थानों को झटका लगेगा,बल्कि अमेरिका की वैश्विक छवि और प्रतिभा को आकर्षित करने की क्षमता पर भी सवाल उठेंगे।
अब इस मुकदमे पर सबकी नजरें टिकी हैं। अदालत का फैसला यह तय करेगा कि कार्यपालिका की शक्तियों की सीमा क्या है और क्या सरकार बिना कांग्रेस की मंजूरी के इतनी बड़ी आर्थिक नीति लागू कर सकती है। साथ ही,यह फैसला अमेरिका की आव्रजन नीति,सार्वजनिक सेवाओं और वैश्विक प्रतिभा के भविष्य पर भी दूरगामी असर डाल सकता है।

