मुंबई,17 दिसंबर (युआईटीवी)- ईशान खट्टर,जाह्नवी कपूर और विशाल जेठवा स्टारर फिल्म ‘होमबाउंड’ ने भारतीय सिनेमा के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर ली है। यह फिल्म ऑस्कर की शॉर्टलिस्ट में शामिल हो गई है और दुनिया भर की 15 बेहतरीन फिल्मों में अपनी जगह बनाने में सफल रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फिल्म को जबरदस्त सराहना मिल रही है और कई प्रतिष्ठित इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसकी स्पेशल स्क्रीनिंग हो चुकी है,लेकिन ‘होमबाउंड’ की सबसे बड़ी ताकत इसकी कहानी है,जो कल्पना नहीं बल्कि कोरोना महामारी के दौरान घटित एक सच्ची और बेहद मार्मिक घटना से प्रेरित है।
‘होमबाउंड’ की कहानी लॉकडाउन के दौर में सूरत में फँसे दो युवा प्रवासी मजदूरों अमृत और सैय्यूब के इर्द-गिर्द घूमती है। यह वह समय था,जब पूरा देश भय,अनिश्चितता और अकेलेपन से गुजर रहा था। लाखों मजदूर अपने काम-धंधे छूटने के बाद पैदल,साइकिल या किसी तरह के साधन से अपने गाँव लौटने को मजबूर थे। इसी कठिन दौर में उत्तर प्रदेश के देवरी गाँव के रहने वाले सैय्यूब मोहम्मद और अमृत प्रसाद की दोस्ती ने इंसानियत और भाईचारे की एक ऐसी मिसाल पेश की,जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
कोरोना महामारी के दौरान दोनों दोस्त गुजरात से अपने गाँव लौट रहे थे। सफर लंबा,थकाने वाला और खतरों से भरा था। इसी बीच अमृत की तबीयत अचानक बिगड़ गई। हालात इतने खराब हो गए कि जिस ट्रक से वे यात्रा कर रहे थे,उसके ड्राइवर ने बीच रास्ते में दोनों को नीचे उतार दिया। सुनसान सड़क,आसपास कोई मदद नहीं और जान पर बनी स्थिति—ऐसे में कई लोग हार मान लेते,लेकिन सैय्यूब ने अपने दोस्त को अकेला नहीं छोड़ा। उसने किसी तरह एंबुलेंस की व्यवस्था की और बीहड़ रास्तों से होते हुए अमृत को अस्पताल पहुँचाया। तमाम कोशिशों के बावजूद इलाज के दौरान अमृत की मौत हो गई।
इस घटना की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई,जिसमें सैय्यूब सड़क किनारे बैठकर अपने दोस्त अमृत का सिर गोद में लिए हुए नजर आ रहा था। उसकी आँखों में दर्द,बेबसी और टूटे हुए सपनों की झलक साफ दिखाई देती थी। यह तस्वीर सिर्फ एक फोटो नहीं थी,बल्कि उस दौर की सच्चाई का आईना बन गई,जहाँ गरीब,मजदूर और हाशिए पर खड़े लोग सबसे ज्यादा त्रासदी झेल रहे थे।
इस तस्वीर ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान खींचा। न्यूयॉर्क टाइम्स में काम कर रहे भारतीय कश्मीरी पत्रकार बशारत पीर ने इस घटना पर एक मार्मिक लेख लिखा,जिसका शीर्षक था ‘ए फ्रेंडशिप,ए पैंडेमिक एंड ए डेथ बिसाइड द हाइवे’। यह लेख दुनिया भर में पढ़ा गया और सैय्यूब व अमृत की दोस्ती को संघर्ष,त्याग और अटूट मानवीय संबंधों का प्रतीक बताया गया। इसी लेख और इस सच्ची घटना से प्रेरणा लेकर फिल्म ‘होमबाउंड’ का जन्म हुआ।
फिल्म का निर्देशन नीरज घायवान ने किया है,जो इससे पहले ‘मसान’ जैसी संवेदनशील और सराही गई फिल्म बना चुके हैं। ‘होमबाउंड’ में नीरज घायवान ने सिर्फ एक दोस्ती की कहानी नहीं कही,बल्कि भारतीय समाज की कई कड़वी सच्चाइयों को भी सामने रखा है। फिल्म में गरीबी,जातिप्रथा,प्रशासनिक उदासीनता और व्यवस्था की खामियों को बेहद सधे हुए और संवेदनशील तरीके से दिखाया गया है।
फिल्म की कहानी में अमृत और सैय्यूब को पुलिस की सरकारी नौकरी की तैयारी करते हुए दिखाया गया है। दोनों का सपना एक सुरक्षित भविष्य और सम्मानजनक जीवन का है,लेकिन इस रास्ते में उन्हें सामाजिक भेदभाव और जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है। खासतौर पर छोटी जाति से आने के कारण उन्हें बार-बार अपमान और अन्याय झेलना पड़ता है। फिल्म इन अनुभवों को सिर्फ संवादों के जरिए नहीं,बल्कि किरदारों की खामोशी,उनकी आँखों और उनके संघर्ष के जरिए बयां करती है।
ईशान खट्टर,जाह्नवी कपूर और विशाल जेठवा ने अपने-अपने किरदारों में गहरी छाप छोड़ी है। उनकी अभिनय क्षमता ने कहानी को और भी प्रभावशाली बना दिया है। यही वजह है कि ‘होमबाउंड’ सिर्फ एक भारतीय फिल्म नहीं रह जाती,बल्कि एक वैश्विक मानवीय कहानी बन जाती है,जिससे हर देश और हर समाज का दर्शक खुद को जोड़ सकता है।
ऑस्कर की शॉर्टलिस्ट में जगह बनाना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है,लेकिन उससे भी बड़ा यह संदेश है कि भारतीय सिनेमा अब सिर्फ मनोरंजन नहीं,बल्कि सच्ची कहानियों और सामाजिक सरोकारों के जरिए दुनिया से संवाद कर रहा है। ‘होमबाउंड’ उन लाखों आवाजों का प्रतिनिधित्व करती है,जो महामारी के शोर में दब गई थीं। यही वजह है कि यह फिल्म आज भारत ही नहीं,बल्कि पूरी दुनिया के लिए उम्मीद,संवेदना और इंसानियत की मिसाल बनकर उभरी है।
