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अमेरिका के टैरिफ के जवाब में भारत ने बोइंग पी-8आई विमान डील स्थगित की,रूस से तेल व्यापार बना तनाव का कारण

नई दिल्ली,8 अगस्त (युआईटीवी)- भारत और अमेरिका के बीच हालिया तनाव ने एक बार फिर वैश्विक कूटनीति और व्यापार समीकरणों को प्रभावित किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है। यह फैसला भारत द्वारा रूस से लगातार जारी तेल व्यापार को लेकर लिया गया है। अमेरिका का मानना है कि रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भारत द्वारा तेल आयात करना वैश्विक दबाव नीति के खिलाफ है। इस पर भारत ने कड़ा जवाब देने की तैयारी करते हुए अमेरिका के साथ एक प्रमुख सैन्य सौदे को फिलहाल रोक दिया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार,भारत सरकार ने 3 अगस्त को यह निर्णय लिया कि अमेरिकी रक्षा कंपनी बोइंग से छह पी-8आई पोसेडन समुद्री निगरानी विमानों की खरीद को फिलहाल स्थगित किया जाएगा। यह विमान भारतीय नौसेना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं,क्योंकि ये समुद्री सीमाओं की निगरानी,पनडुब्बियों की पहचान और खुफिया जानकारी जुटाने जैसे कार्यों में प्रयोग किए जाते हैं। चीन की हिंद महासागर में बढ़ती सैन्य गतिविधियों के बीच इन विमानों की उपयोगिता और भी अधिक हो जाती है।

बोइंग से भारतीय नौसेना को पहले भी पी-8आई के 12 विमान मिल चुके हैं। भारत ने पहली बार 2009 में अमेरिका से इन विमानों की खरीद की थी और वह इन विमानों को अमेरिका से खरीदने वाला पहला विदेशी देश बना था। उस समय लगभग 19 हजार करोड़ रुपये की लागत से 8 विमान खरीदे गए थे। इसके बाद 2016 में 4 और विमान जोड़े गए जिनकी कीमत करीब 8,500 करोड़ रुपये थी। भारतीय नौसेना ने इन विमानों की उच्च तकनीकी क्षमताओं की प्रशंसा करते हुए 2021 में 6 और विमान खरीदने की योजना बनाई थी। इस सौदे को अमेरिका की ओर से मंजूरी भी मिल गई थी,लेकिन तब इसकी लागत लगभग 21 हजार करोड़ रुपये आँकी गई थी। अब यह सौदा 2025 तक आते-आते लगभग 31,500 करोड़ रुपये तक पहुँच गया था।

हालाँकि,अब भारत सरकार ने इस डील को टाल दिया है। इसके पीछे मुख्य कारण अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारत के खिलाफ उठाया गया टैरिफ का कदम है। भारत ने अमेरिका के इस निर्णय को न केवल अनुचित,बल्कि दोहरे मापदंड वाला बताया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ खुद रूस के साथ व्यापार करते हैं,फिर भी भारत पर अनैतिक और अतार्किक टैरिफ थोपना अन्यायपूर्ण है। मंत्रालय के अनुसार,यूरोपीय संघ का रूस से व्यापार भारत की तुलना में कहीं अधिक है और अमेरिका भी मास्को से तेल और अन्य उत्पादों का व्यापार करता है। ऐसे में भारत के खिलाफ आर्थिक दंडात्मक कार्रवाई करना पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है।

भारत सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह अपनी संप्रभुता और रणनीतिक स्वायत्तता से कोई समझौता नहीं करेगी। रूस से तेल खरीदना भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति का हिस्सा है,जो वैश्विक ऊर्जा कीमतों में स्थिरता और घरेलू जरूरतों की पूर्ति के उद्देश्य से की जाती है। भारत पहले ही कई बार स्पष्ट कर चुका है कि वह किसी एक पक्ष के साथ खड़ा नहीं है,बल्कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है। अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ को लेकर भारत ने यह भी इशारा किया है कि भविष्य में और भी रक्षा और तकनीकी समझौतों की समीक्षा की जा सकती है।

भारत और अमेरिका के बीच पिछले एक दशक में रक्षा सहयोग काफी बढ़ा है। दोनों देशों ने सामरिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण करार किए हैं। पी-8आई जैसे उन्नत विमान इस सहयोग का अहम हिस्सा रहे हैं,लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट हो गया है कि जब तक अमेरिका अपनी टैरिफ नीति पर पुनर्विचार नहीं करता,तब तक भारत इस सौदे को आगे नहीं बढ़ाएगा।

इस घटनाक्रम से यह भी साफ हो गया है कि भारत वैश्विक मंच पर अब केवल “रणनीतिक साझेदार” कहलाना नहीं चाहता,बल्कि समान अधिकारों के साथ व्यवहार की अपेक्षा रखता है। भारत के लिए यह केवल एक आर्थिक या सैन्य मुद्दा नहीं है,बल्कि उसकी वैश्विक स्थिति,नीति और सम्मान से जुड़ा मसला है। यदि अमेरिका इस दिशा में कोई नरमी नहीं दिखाता,तो भारत अपने रक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार कर सकता है,जिसमें रूस,फ्रांस और इजरायल प्रमुख हो सकते हैं।

फिलहाल,दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी है,लेकिन जिस तरह से भारत ने अमेरिका के टैरिफ का जवाब सैन्य सौदे को रोककर दिया है,उससे यह संकेत भी गया है कि नई दिल्ली अब किसी भी अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे झुकने के मूड में नहीं है। अमेरिका और भारत के रिश्तों की दिशा अब आने वाले हफ्तों में और अधिक स्पष्ट होगी,खासकर तब जब अन्य व्यापारिक और रणनीतिक मसलों पर बातचीत आगे बढ़ेगी।