नई दिल्ली,16 अगस्त (युआईटीवी)- भारत इस समय अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है और देशभर में उत्साह का माहौल है। लाल किले से लेकर गाँव-गाँव तक तिरंगे की शान लहराई जा रही है। इस खास अवसर पर देश-विदेश के नेताओं ने भारत को शुभकामनाएँ दी हैं। इसी क्रम में अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी भारत के लोगों को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देते हुए दोनों देशों के बीच गहरे और ऐतिहासिक संबंधों का उल्लेख किया। यह संदेश ऐसे समय में आया है,जब भारत और अमेरिका के रिश्तों में हाल के दिनों में टैरिफ मुद्दे को लेकर तल्खी देखने को मिली है। इसलिए रुबियो का यह बयान केवल औपचारिक शुभकामना नहीं माना जा रहा,बल्कि इसे रिश्तों को सहज बनाने की एक कूटनीतिक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
अमेरिका के विदेश मंत्री रुबियो ने अपने संदेश में कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से,मैं भारत के लोगों को 15 अगस्त के इस विशेष अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई देता हूँ।” उन्होंने आगे कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे पुराने लोकतंत्र के बीच ऐतिहासिक संबंध केवल दो देशों के बीच की साझेदारी तक सीमित नहीं हैं,बल्कि यह वैश्विक परिदृश्य में स्थिरता और संतुलन की गारंटी भी है।
रुबियो ने अपने संदेश में दोनों देशों के बीच बहुआयामी सहयोग की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका न केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के साझा दृष्टिकोण से जुड़े हैं,बल्कि विज्ञान,प्रौद्योगिकी,नवाचार और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में भी साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उनके अनुसार,“हमारी साझेदारी उद्योगों को नई ऊँचाई देती है,उभरती प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देती है और आधुनिक चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती है। मुझे विश्वास है कि भारत और अमेरिका मिलकर अपने नागरिकों के लिए एक उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करेंगे।”
यह संदेश ऐसे समय में आया है,जब ट्रंप के दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और अमेरिका के रिश्ते पहले जितने सहज नहीं रह गए हैं। ट्रंप प्रशासन ने बार-बार भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश की,यहाँ तक कि ट्रंप ने सार्वजनिक तौर पर दावा किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने में उनकी भूमिका रही है। हालाँकि,भारत ने इस दावे को कई बार खारिज किया और साफ कहा कि पड़ोसी देशों के बीच के मसले द्विपक्षीय हैं और इनमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं हो सकती।
इसी दौरान टैरिफ और व्यापार से जुड़े मुद्दों ने भी दोनों देशों के बीच रिश्तों को कसौटी पर ला खड़ा किया। अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारत से आयातित कुछ वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाने और भारत द्वारा इसके जवाब में अपने टैरिफ बढ़ाने के कारण दोनों देशों के बीच खटास पैदा हो गई। यही वजह रही कि हालिया हफ्तों में भारत और अमेरिका के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक संवाद कुछ ठंडे दिखाई दिए।
ऐसे परिदृश्य में जब अमेरिका के विदेश मंत्री स्वतंत्रता दिवस पर भारत को शुभकामना देते हैं और दोनों देशों की साझेदारी की ऐतिहासिक मजबूती पर जोर देते हैं,तो यह संदेश केवल औपचारिकता से अधिक मायने रखता है। यह इस बात का संकेत भी है कि वॉशिंगटन नई दिल्ली के साथ रिश्तों को खराब स्थिति तक नहीं पहुँचाना चाहता और संवाद की डोर को मजबूती से थामे रखना चाहता है।
विश्लेषकों का मानना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों और वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों ने अमेरिका और भारत दोनों को यह एहसास दिलाया है कि परस्पर सहयोग ही दोनों देशों के हित में है। अमेरिका को भारत की एक बड़ी आर्थिक शक्ति और रणनीतिक साझेदार के रूप में जरूरत है,वहीं भारत को भी तकनीकी,सुरक्षा और वैश्विक समर्थन के लिए अमेरिका के सहयोग की अहमियत समझ आती है।
स्वतंत्रता दिवस जैसे मौकों पर संदेश और शुभकामनाएँ अक्सर प्रतीकात्मक मानी जाती हैं,लेकिन इस बार का अमेरिकी संदेश कुछ अलग है। यह न केवल भारत की उपलब्धियों और लोकतांत्रिक परंपरा की सराहना करता है,बल्कि आने वाले दिनों में द्विपक्षीय रिश्तों में सहयोग और भरोसे को नए सिरे से स्थापित करने का इशारा भी देता है।
भारत ने भी हमेशा यह कहा है कि अमेरिका के साथ उसके रिश्ते किसी एक सरकार या नेता पर निर्भर नहीं करते,बल्कि यह एक दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी है। यही कारण है कि बीते वर्षों में तनाव और मतभेदों के बावजूद दोनों देशों ने रक्षा,प्रौद्योगिकी,ऊर्जा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बनाए रखा है।
अंततः यह कहा जा सकता है कि भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो का संदेश दोनों देशों के रिश्तों में एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जाएगा। यह संकेत देता है कि मतभेदों और असहमति के बावजूद भारत और अमेरिका साझेदारी की बुनियाद को मजबूत रखना चाहते हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह कूटनीतिक गर्मजोशी व्यापार और रणनीतिक मामलों में भी वास्तविक सहयोग में बदल पाती है या नहीं।