अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (तस्वीर क्रेडिट@sengarlive)

भारत-अमेरिका अंतरिम व्यापार समझौता,नए युग की संभावनाएँ और टैरिफ युद्ध की कगार पर कूटनीति

नई दिल्ली/वाशिंगटन,3 जुलाई (युआईटीवी)- भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ उस समय आया है,जब रेसिप्रोकल टैरिफ की समयसीमा तेजी से नजदीक आ रही है। दोनों देशों के शीर्ष अधिकारी इन दिनों वाशिंगटन डीसी में एक अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की दिशा में गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं। यह समझौता सिर्फ व्यापारिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि वैश्विक भू-राजनीतिक संदर्भ में भी काफी अहमियत रखता है। इस रिपोर्ट में हम इस पूरी कवायद के निहितार्थ,चुनौतियों और संभावनाओं का विश्लेषण करेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के दौरान लगाए गए अतिरिक्त टैरिफों ने भारत के श्रम-प्रधान उत्पादों पर काफी प्रभाव डाला था। अमेरिका ने भारतीय उत्पादों—विशेष रूप से स्टील,एल्यूमीनियम,वस्त्र,जूते और चमड़े के सामान पर आयात शुल्क बढ़ा दिया था। अब जब राष्ट्रपति ट्रंप ने 90 दिनों की छूट दी है,भारत और अमेरिका के पास 9 जुलाई 2025 तक एक अस्थायी समझौता करने का मौका है।

भारत की मुख्य चिंता अपने श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिए अमेरिकी बाजार में बेहतर पहुँच सुनिश्चित करना है। इन क्षेत्रों में वस्त्र,जूते और चमड़े के सामान शामिल हैं,जो भारत के रोजगार-उन्मुख निर्यात क्षेत्र माने जाते हैं। वहीं अमेरिका की प्राथमिकता अपने कृषि उत्पादों, दुग्ध उत्पादों और अन्य दैनिक उपभोग की वस्तुओं के लिए भारत से टैरिफ में छूट है।

समझौते की रणनीति और वाशिंगटन में भारतीय वार्ताकारों की भूमिका
भारत की तरफ से विशेष सचिव राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय वार्ता टीम इस समय वाशिंगटन डीसी में डेरा डाले हुए है। यह टीम अमेरिकी अधिकारियों के साथ बातचीत में लगी है,ताकि समयसीमा से पहले समझौते को अंतिम रूप दिया जा सके।

भारतीय वार्ताकारों ने अमेरिका में अपने प्रवास को बढ़ा दिया है,जो इस बात का संकेत है कि दोनों पक्षों के बीच कुछ मुद्दों पर अब भी मतभेद बने हुए हैं। खासकर अमेरिकी कृषि उत्पादों पर शुल्क रियायत देना भारत के लिए राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से एक संवेदनशील मुद्दा है,जबकि भारत के श्रम-प्रधान क्षेत्रों को अमेरिका से बाजार पहुँच दिलाना एक प्राथमिकता बनी हुई है।

भारत ने अमेरिका से अपने व्यापार अधिशेष को संतुलित करने की दिशा में पहले ही कई कदम उठाए हैं। भारत ने अमेरिकी कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की खरीद में बढ़ोतरी की है। इससे न केवल अमेरिका की ऊर्जा निर्यात नीति को बल मिला है, बल्कि भारत ने यह भी दिखाया है कि वह व्यापार संबंधों को संतुलित रूप में आगे ले जाने के लिए गंभीर है।

इसका संकेत यह भी है कि भारत अमेरिका के साथ सिर्फ टैरिफ पर नहीं,बल्कि ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में भी रणनीतिक साझेदारी विकसित करना चाहता है।

भारत की माँग है कि उच्च-रोजगार सृजन वाले उत्पादों पर अमेरिका व्यापक टैरिफ कटौती करे। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना कर $500 बिलियन तक ले जाया जाए। यह तभी संभव है,जब भारत के वस्त्र,जूते,समुद्री उत्पाद,मसाले,कॉफी और रबर जैसे उत्पाद अमेरिकी बाजार में आसानी से पहुँच सकें।

भारत विशेष रूप से झींगा,मछली और मसालों जैसे उत्पादों के लिए बेहतर अमेरिकी बाजार पहुँच की माँग कर रहा है,क्योंकि ये वे क्षेत्र हैं,जहाँ भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पहले से ही मजबूत है,लेकिन अमेरिका में ऊँचे टैरिफ के कारण पिछड़ रहा है।

फिलहाल यह अंतरिम व्यापार समझौता मुख्य रूप से रेसिप्रोकल टैरिफ कटौती या हटाने पर केंद्रित है। यानी दोनों देश एक-दूसरे के उत्पादों पर लगाए गए आयात शुल्कों को या तो खत्म करेंगे या कम करेंगे। यह समझौता एक तरह से विश्वास निर्माण की प्रक्रिया भी है,ताकि आने वाले महीनों में एक व्यापक व्यापार समझौते की नींव रखी जा सके।

सितंबर या अक्टूबर 2025 में एक पूर्ण व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। इस दिशा में दोनों देशों के बीच लगातार बातचीत जारी रहेगी। अंतरिम समझौता उस दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है।

भारत और अमेरिका के बीच चल रहा यह व्यापारिक वार्ता दौर न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है,बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक सशक्त संकेत देता है। भारत जहाँ विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है,वहीं अमेरिका सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। इन दोनों का तालमेल वैश्विक व्यापार पर दूरगामी असर डाल सकता है।

यदि यह समझौता समय रहते पूरा होता है,तो यह न केवल भारत-अमेरिका व्यापार को नई ऊँचाई देगा,बल्कि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की भूमिका को और भी सुदृढ़ बनाएगा। अब निगाहें 9 जुलाई की समयसीमा पर टिकी हैं,जहाँ यह तय होगा कि दोनों देश सहयोग की ओर बढ़ते हैं या प्रतिस्पर्धा की दिशा में।