नई दिल्ली,23 दिसंबर (युआईटीवी)- भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़े और ऐतिहासिक बदलाव की दिशा में उठाए गए कदम का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वागत किया जा रहा है। भारत में स्थित अमेरिकी दूतावास ने शांति बिल के पारित होने को भारत-अमेरिका ऊर्जा साझेदारी के लिए एक अहम और दूरगामी कदम बताया है। अमेरिकी दूतावास ने इसे न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने वाला कानून करार दिया,बल्कि शांतिपूर्ण परमाणु सहयोग को नई दिशा देने वाला फैसला भी बताया।
अमेरिकी दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा किए गए अपने बयान में कहा कि भारत का नया शांति बिल ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देगा। दूतावास ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका ऊर्जा क्षेत्र में भारत के साथ संयुक्त नवाचार,अनुसंधान और विकास के लिए मिलकर काम करने को तैयार है। इस प्रतिक्रिया को भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी के और गहराने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है,खासकर ऐसे समय में जब स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा वैश्विक प्राथमिकता बन चुकी है।
शांति बिल को हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पारित किया गया है,जिसके बाद यह कानून का रूप ले चुका है। इस बिल का मुख्य उद्देश्य भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना और वर्ष 2047 तक स्वच्छ ऊर्जा से जुड़े राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करना है। सरकार का मानना है कि बढ़ती आबादी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के चलते भारत की ऊर्जा जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं,ऐसे में परमाणु ऊर्जा एक भरोसेमंद और दीर्घकालिक समाधान के रूप में उभर सकती है।
यह कानून स्वच्छ,टिकाऊ और भरोसेमंद ऊर्जा के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार करने की दिशा में अहम माना जा रहा है। साथ ही यह भारत की उस प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है,जिसके तहत देश परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए करता रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत लंबे समय से जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में अपनी छवि को मजबूत करने की कोशिश करता रहा है और शांति बिल को उसी दिशा में एक और ठोस कदम माना जा रहा है।
शांति बिल वैश्विक परमाणु प्रशासन में भारत की अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। इस कानून के तहत परमाणु क्षेत्र में संसाधनों की कमी को दूर करने,परियोजनाओं के क्रियान्वयन में लगने वाले समय को कम करने और 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता के राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल करने के लिए निजी और संयुक्त उद्यमों की भागीदारी की अनुमति दी गई है। सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि इस प्रक्रिया में राष्ट्रीय सुरक्षा और जनहित से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा।
इस कानून को भारत के परमाणु क्षेत्र में निजी भागीदारी के लिए एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है। इससे पहले अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों को प्रवेश की अनुमति दी गई थी,जिसके बाद इस सेक्टर में उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिली। सरकार को उम्मीद है कि उसी तरह परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भी निजी निवेश और तकनीकी सहयोग से नई क्षमताओं का विकास होगा और परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया जा सकेगा।
हालाँकि,शांति बिल में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कुछ संवेदनशील और रणनीतिक क्षेत्रों पर सरकार का नियंत्रण पूरी तरह बना रहेगा। यूरेनियम खनन एक निश्चित सीमा से आगे पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में रहेगा। इसके अलावा इस्तेमाल किए गए परमाणु ईंधन का प्रबंधन और उसका दीर्घकालिक भंडारण केवल सरकार की निगरानी में ही किया जाएगा। फिसाइल मैटीरियल,हेवी वाटर और अन्य स्रोत सामग्री जैसे रणनीतिक तत्वों पर भी सरकार का सख्त नियंत्रण जारी रहेगा,ताकि सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों से कोई समझौता न हो।
इस कानून में परमाणु नुकसान की परिभाषा को भी व्यापक बनाया गया है। अब इसमें केवल भौतिक नुकसान ही नहीं,बल्कि पर्यावरणीय और आर्थिक क्षति को भी शामिल किया गया है। यह प्रावधान परमाणु परियोजनाओं से जुड़े जोखिमों को लेकर सरकार की गंभीरता को दर्शाता है और प्रभावित लोगों तथा पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
शांति बिल का एक अहम पहलू स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों पर जोर देना भी है। इन रिएक्टरों को भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के लिए अधिक सुरक्षित,किफायती और लचीला विकल्प माना जा रहा है। अनुसंधान और नवाचार में निवेश के जरिए यह कानून स्वच्छ और भरोसेमंद ऊर्जा के लिए एक मजबूत आधार तैयार करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत को नई तकनीकों तक पहुँच मिलेगी और वह वैश्विक परमाणु नवाचार में एक अहम भूमिका निभा सकेगा।
परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल बिजली उत्पादन तक सीमित नहीं रहेगा। शांति बिल के तहत इसके अनुप्रयोगों को कैंसर उपचार,कृषि,चिकित्सा और औद्योगिक क्षेत्रों में भी बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इससे न सिर्फ ऊर्जा क्षेत्र को मजबूती मिलेगी,बल्कि स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा जैसे अहम क्षेत्रों में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। बढ़ती ऊर्जा माँग को पूरा करने के साथ-साथ यह कानून भारत की समग्र विकास रणनीति का भी हिस्सा माना जा रहा है।
अमेरिका द्वारा शांति बिल का समर्थन इस बात का संकेत है कि भारत की परमाणु ऊर्जा नीति को वैश्विक स्तर पर भरोसे और स्वीकार्यता मिल रही है। आने वाले समय में भारत-अमेरिका के बीच तकनीकी सहयोग,निवेश और संयुक्त अनुसंधान के नए अवसर खुलने की संभावना है। शांति बिल को लेकर सरकार और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों की सकारात्मक प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि भारत स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में एक निर्णायक और आत्मविश्वासी कदम बढ़ा चुका है।
