नई दिल्ली,4 दिसंबर (युआईटीवी)- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय भारत दौरे पर पहुँचने वाले हैं और उनके आगमन से ठीक पहले दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को और मजबूती देने वाली एक अहम रक्षा डील को मंजूरी मिल गई है। रूसी संसद के निचले सदन ड्यूमा ने 3 दिसंबर को भारत-रूस रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट (आरईएलओएस) समझौते को स्वीकृति दी,जिससे यह संकेत मिल गया है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग नए स्तर पर पहुँचने वाला है। यह समझौता न केवल सैन्य लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में बड़ा कदम है,बल्कि यह भारत-रूस की दशकों पुरानी दोस्ती को आधुनिक रणनीतिक परिदृश्य में और अधिक प्रासंगिक बनाने में मदद करेगा।
भारत और रूस के संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरे रहे हैं। शीत युद्ध के दौर से लेकर आज तक रूस ने भारत के कठिन समय में बार-बार सहयोग किया है। रक्षा,परमाणु ऊर्जा,अंतरिक्ष विज्ञान और व्यापार जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों ने एक-दूसरे के साथ मजबूत साझेदारी दिखाई है। अब जब वैश्विक हालात लगातार बदल रहे हैं,भारत और रूस अपने पारंपरिक रिश्तों को नए युग की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
आरईएलओएस समझौते के तहत भारत और रूस एक-दूसरे के सैन्य अड्डों, बंदरगाहों,एयरफील्ड्स,सप्लाई पॉइंट्स और अन्य सैन्य सुविधाओं का उपयोग कर सकेंगे। इसका उद्देश्य सैन्य अभियानों के दौरान लॉजिस्टिक सपोर्ट को प्रभावी बनाना है। यह बात विशेष रूप से स्पष्ट की गई है कि यह सहयोग किसी सैन्य संघर्ष के लिए नहीं होगा,बल्कि शांति काल में होने वाले लॉजिस्टिक और मानवतावादी अभियानों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इस डील का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि दोनों देशों की सेनाएँ अपनी गतिविधियों के दौरान ईंधन,मरम्मत,मेडिकल सेवाओं और बेस सपोर्ट जैसे संसाधनों का सुचारू रूप से उपयोग कर सकेंगी। इससे न केवल खर्च में कमी आएगी बल्कि ऑपरेशनल दक्षता भी बढ़ेगी।
भारत इससे पहले अमेरिका,फ्रांस,ऑस्ट्रेलिया,जापान,दक्षिण कोरिया,सिंगापुर और वियतनाम जैसे देशों के साथ भी इसी तरह के लॉजिस्टिक समझौते कर चुका है। रूस के साथ यह डील इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत का सबसे बड़ा और अत्यधिक संवेदनशील रक्षा सहयोग रूस के साथ ही है। भारत की 60% से अधिक रक्षा प्रणाली रूसी मूल की है और अतीत में कई बार दोनों देशों ने रक्षा तकनीक साझा करने की मिसालें कायम की हैं।
रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तीन ने पिछले सप्ताह इस समझौते को मंजूरी के लिए ड्यूमा को भेजा था और अब इसे अंतिम स्वीकृति मिल गई है। पुतिन के भारत दौरे से ठीक पहले हुई यह मंजूरी यह दर्शाती है कि मॉस्को और नई दिल्ली के बीच निकटता एक नए चरण में प्रवेश कर रही है। यह साफ संकेत है कि दोनों देश भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच एक-दूसरे के साथ रणनीतिक समन्वय को मजबूत करना चाहते हैं।
इसी बीच,दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में स्पुतनिक न्यूज द्वारा आयोजित एक मीडिया ब्रीफिंग में क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने भी इस दौरे के महत्व पर जोर दिया। पेस्कोव ने कहा कि भारत और रूस के संबंध “आपसी समझ,गहरी मित्रता और नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था की साझा दृष्टि” पर आधारित हैं। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि भारत के विकास के कई महत्वपूर्ण चरणों में रूस ने हमेशा भारत के साथ खड़े रहकर मदद की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि रक्षा और रणनीतिक सहयोग बेहद संवेदनशील क्षेत्र हैं,लेकिन रूस उभरती तकनीकों सहित कई अन्य क्षेत्रों में भी भारत के साथ अपना अनुभव साझा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
ऊर्जा सहयोग भारत-रूस संबंधों का एक और मजबूत स्तंभ रहा है। पेस्कोव ने कहा कि रूस प्रतिस्पर्धी कीमतों पर भारत को ऊर्जा आपूर्ति जारी रखेगा। यूक्रेन युद्ध के बाद जब यूरोपीय देशों ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाया,तब भारत रूस का सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता बनकर उभरा। इससे न केवल भारत को सस्ती ऊर्जा मिली,बल्कि रूस के लिए भी यह एक विश्वसनीय बाजार साबित हुआ। यह संबंध आने वाले वर्षों में और मजबूत होने की संभावना है।
परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच गहरा सहयोग है। भारत के परमाणु उद्योग में रूस की मदद से एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हुआ है। तमिलनाडु में स्थापित कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है,जिसकी अगली इकाइयों पर भी दोनों देशों के बीच काम जारी है। पेस्कोव ने भविष्य में और परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं पर सहयोग की पुष्टि की।
व्यापार का दायरा भी तेजी से बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार 63 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। अब दोनों देशों का लक्ष्य 2030 से पहले इसे 100 अरब डॉलर के आँकड़ें के पार ले जाना है। हालाँकि,व्यापार संतुलन रूस के पक्ष में है,इसलिए रूस अब भारत से आयात बढ़ाने पर जोर दे रहा है। इसमें फार्मास्यूटिकल्स,कृषि उत्पाद,मशीनरी,आईटी सेवाओं और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों पर फोकस है।
हालाँकि,इन सकारात्मक संकेतों के बीच कुछ चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। पेस्कोव ने बिना अमेरिका का नाम लिए यह स्वीकार किया कि कुछ वैश्विक शक्तियाँ भारत-रूस व्यापारिक संबंधों में बाधा डालने की कोशिश कर रही हैं,लेकिन रूस का दावा है कि वह इन चुनौतियों के बावजूद भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत भी वैश्विक बहुध्रुवीय व्यवस्था में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के पक्ष में है और रूस इस नीति का महत्वपूर्ण स्तंभ है।
पुतिन का भारत दौरा आने वाले वर्षों की भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी को नई दिशा देगा। पहले से ही मजबूत रक्षा सहयोग,बढ़ता व्यापारिक संबंध,ऊर्जा और परमाणु साझेदारी और लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौता—ये सभी संकेत बताते हैं कि दोनों देश अपने रिश्तों को नई ऊँचाइयों की ओर ले जाने के लिए तैयार हैं। इस यात्रा के दौरान कई और समझौतों पर मुहर लग सकती है,जो द्विपक्षीय संबंधों को और व्यापक और मजबूत बनाएँगे।

