नई दिल्ली,6 दिसंबर (युआईटीवी)- रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने दो दिवसीय भारत दौरे के बाद शुक्रवार रात मॉस्को लौट गए। 4–5 दिसंबर तक चली इस यात्रा के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया। यह दौरा न केवल रणनीतिक साझेदारी की मजबूती का प्रतीक रहा,बल्कि परमाणु ऊर्जा,अंतरिक्ष,रक्षा,आर्थिक साझेदारी और टेक्नोलॉजी सहयोग जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त कर गया।
नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित इस महत्वपूर्ण बैठक के दौरान दोनों देशों ने कई अहम द्विपक्षीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। इनमें असैन्य परमाणु सहयोग,अंतरिक्ष विज्ञान,तकनीकी विकास और सैन्य-तकनीकी सहयोग शामिल रहे। भारत और रूस दशकों से एक-दूसरे के विश्वसनीय साझेदार रहे हैं और इस दौरे ने उस भरोसे को और मजबूत किया।
इस यात्रा का सबसे बड़ा फोकस परमाणु ऊर्जा सहयोग में बढ़ोतरी रहा। दोनों देशों ने जीवन-चक्र समर्थन,ईंधन चक्र के विस्तार,कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (केकेएनपीपी) की इकाइयों के निर्माण और गैर-ऊर्जा अनुप्रयोगों में सहयोग को गहरा करने पर सहमति जताई। भारत वर्तमान में 2047 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को 100 गीगावाट तक बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहा है। रूस ने इस दिशा में भारत की हर संभव सहायता करने का आश्वासन दिया।
कुडनकुलम परियोजना,जो भारत की सबसे बड़ी परमाणु ऊर्जा परियोजना है,के शेष रिएक्टरों के निर्माण में हुई प्रगति की भी समीक्षा की गई। दोनों देशों ने उपकरणों और ईंधन की आपूर्ति की समय-सीमा का पालन सुनिश्चित करने पर जोर दिया। इसके साथ ही भारत में एक नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए दूसरे स्थल के औपचारिक आवंटन की प्रक्रिया को जल्द अंतिम रूप दिए जाने पर भी चर्चा हुई।
रूस और भारत ने वीवीईआर रिएक्टरों के संयुक्त विकास,बड़े क्षमता वाले रूसी डिज़ाइन वाले संयंत्रों के लिए उपकरण और ईंधन संयोजनों के स्थानीयकरण पर भी तकनीकी एवं वाणिज्यिक बातचीत तेज करने पर सहमति जताई। यह सहयोग भारत के ‘मेक इन इंडिया’ मिशन को भी मजबूती प्रदान करेगा।
दोनों नेताओं ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में बढ़ते सहयोग को शिखर सम्मेलन का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस के बीच मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम,उपग्रह नेविगेशन,ग्रहों की खोज और रॉकेट इंजन तकनीक में सहयोग को नए स्तर पर ले जाने के लिए सहमति बनी।
गगनयान मिशन पर जारी सहयोग को लेकर भी सकारात्मक संकेत मिले। दोनों पक्षों ने कहा कि रॉकेट इंजन डिजाइन,निर्माण और प्रशिक्षण के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएँ हैं। यह साझेदारी भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को वैश्विक मंच पर और मजबूत करेगी।
रक्षा और सैन्य-तकनीकी सहयोग हमेशा से भारत-रूस संबंधों का केंद्रीय स्तंभ रहा है। इस दौरे में दोनों देशों ने संयुक्त अनुसंधान एवं विकास,सह-विकास और सह-उत्पादन की गति को और बढ़ाने पर सहमति जताई। ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को ध्यान में रखते हुए रूस भारत में रक्षा उपकरणों के निर्माण के लिए कल-पुर्जों,औजारों और अन्य सामग्री के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देगा।
भारत और रूस ने यह भी तय किया कि न केवल भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं के लिए,बल्कि मित्र देशों को निर्यात के लिए भी संयुक्त निर्माण किया जाएगा। यह भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान देगा।
नई दिल्ली में 4 दिसंबर को हुई आईआरआईजीसी-एमएंडएमटीसी (भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग) की बैठक के सकारात्मक निष्कर्षों की भी सराहना की गई। सैन्य अभ्यास ‘इंद्र’ की सफलता को दोनों देशों ने विशेष रूप से रेखांकित किया और भविष्य में इसी गति से सहयोग बनाए रखने का संकल्प व्यक्त किया। इसके अलावा 2025 में किंगदाओ में होने वाली एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक को भी सहयोग के विस्तार का महत्वपूर्ण अवसर माना गया।
भले ही यह यात्रा मुख्य रूप से सुरक्षा,परमाणु और अंतरिक्ष सहयोग पर केंद्रित रही, लेकिन आर्थिक संबंध भी इसमें प्रमुख भूमिका निभाते दिखे। दोनों पक्ष पहले ही 2030 तक 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को तय कर चुके हैं,जिसे प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन दोनों ने समय से पहले ही हासिल करने का विश्वास जताया। ऊर्जा व्यापार,कृषि,फार्मा,आईटी और रिटेल सेक्टर में भी निवेश बढ़ाने पर चर्चा हुई।
राष्ट्रपति पुतिन की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण रही क्योंकि यह ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक राजनीति तेजी से बदल रही है। रूस पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना कर रहा है,वहीं भारत अपनी बहुपक्षीय विदेश नीति के साथ वैश्विक संतुलन बनाए हुए है। पुतिन ने स्वयं स्वीकार किया कि भारत एक स्वतंत्र,संप्रभु और मजबूत नीति पर चल रहा है,जो दुनिया के लिए एक सकारात्मक संदेश है।
दौरे ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत और रूस केवल पारंपरिक सहयोगी नहीं,बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार हैं,जिनकी प्राथमिकताएँ और दृष्टिकोण कई क्षेत्रों में समान हैं। ऊर्जा सुरक्षा,रक्षा सहयोग,विज्ञान एवं तकनीक और अंतरिक्ष अन्वेषण में यह साझेदारी आने वाले वर्षों में और गहरी होने वाली है।
राष्ट्रपति पुतिन के लौटते ही यह दौरा भारत-रूस संबंधों में एक नई शुरुआत का संकेत बन गया—एक ऐसा अध्याय जो आने वाले दशकों में दोनों देशों की रणनीतिक दिशा तय करेगा।

