नई दिल्ली,15 सितंबर (युआईटीवी)- भारत के स्मार्टफोन निर्यात ने चालू वित्त वर्ष के पहले पाँच महीनों में ऐतिहासिक रिकॉर्ड कायम करते हुए एक लाख करोड़ रुपए का आँकड़ा पार कर लिया है। यह उपलब्धि देश के इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नोलॉजी सेक्टर की बढ़ती ताकत का स्पष्ट संकेत है। उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, अमेरिकी टैरिफ में वृद्धि और वैश्विक व्यापारिक चुनौतियों के बावजूद भारत ने स्मार्टफोन निर्यात में सालाना आधार पर 55 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। वित्त वर्ष 2024-25 की समान अवधि में यह आँकड़ा 64,500 करोड़ रुपए था,जबकि अब यह बढ़कर एक लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। इस उपलब्धि के पीछे कई कारक काम कर रहे हैं,जिनमें सरकार की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना,वैश्विक कंपनियों का उत्पादन स्थानांतरित करने का निर्णय और घरेलू स्तर पर मजबूत मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम शामिल हैं।
टेक्नोलॉजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी एप्पल का योगदान इस बढ़ोतरी में सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। एप्पल के कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स,जैसे टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स और फॉक्सकॉन ने निर्यात में लगभग 75 प्रतिशत हिस्सेदारी निभाई है। पीएलआई योजना ने एप्पल जैसी अमेरिकी कंपनियों को भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को तेजी से स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। तमिलनाडु और कर्नाटक में एप्पल के उत्पादन हब अब भारत के निर्यात का केंद्र बन चुके हैं। कंपनी ने अपने अधिकांश निर्यात उत्पादन को अमेरिकी बाजार की आपूर्ति के लिए समर्पित कर दिया है। वर्ष 2025 की पहली छमाही में ही घरेलू स्तर पर असेंबल किए गए 78 प्रतिशत आईफोन अमेरिका भेजे गए,जबकि पिछले साल यह आँकड़ा मात्र 53 प्रतिशत था। इस बदलाव से साफ है कि भारत अमेरिका के लिए आईफोन सप्लाई चेन का मुख्य स्तंभ बन चुका है।
अमेरिका के स्मार्टफोन आयात में भारत की हिस्सेदारी में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष जहाँ यह केवल 25 प्रतिशत थी,वहीं इस साल यह बढ़कर 44 प्रतिशत हो गई है। दूसरी ओर,चीन की हिस्सेदारी,जो 2024 के मध्य तक 61 प्रतिशत थी,अब घटकर 25 प्रतिशत रह गई है। यह परिवर्तन न केवल भारत की बढ़ती मैन्युफैक्चरिंग क्षमता का सबूत है,बल्कि यह भी दर्शाता है कि वैश्विक कंपनियाँ अब चीन पर निर्भरता घटाकर भारत को विकल्प के रूप में देख रही हैं। “मेड-इन-इंडिया” स्मार्टफोन की कुल मात्रा में भी सालाना आधार पर 240 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है,जो इस बात का प्रमाण है कि भारत न केवल घरेलू जरूरतें पूरी कर रहा है,बल्कि वैश्विक स्तर पर भी मजबूत स्थिति बना रहा है।
एप्पल के साथ-साथ सैमसंग और मोटोरोला जैसी कंपनियों ने भी भारत से अमेरिका को स्मार्टफोन आपूर्ति में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा दी है। हालाँकि,उनकी प्रगति एप्पल की तुलना में अपेक्षाकृत धीमी रही है। मोटोरोला का मुख्य उत्पादन केंद्र अभी भी चीन में है,जबकि सैमसंग अपने अधिकतर स्मार्टफोन वियतनाम में बनाता है। इसके बावजूद भारत में इन कंपनियों के बढ़ते निवेश और उत्पादन क्षमता में वृद्धि से स्पष्ट है कि आने वाले समय में उनकी उपस्थिति भी मजबूत होगी।
सरकारी आँकड़ों के अनुसार,भारत में अब तक 300 मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स स्थापित हो चुकी हैं। वर्ष 2014 में जहाँ केवल दो यूनिट्स थीं,वहीं आज यह संख्या सैकड़ों में पहुँच चुकी है। इस बदलाव ने न केवल भारत की उत्पादन क्षमता बढ़ाई है,बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया है। वित्त वर्ष 2014 में भारत में बिकने वाले मोबाइल फोनों में से केवल 26 प्रतिशत ही स्थानीय स्तर पर बनाए जाते थे,लेकिन अब यह आँकड़ा बढ़कर 99.2 प्रतिशत हो गया है। इसका अर्थ है कि भारत अब लगभग पूरी तरह से अपने मोबाइल फोन की माँग को घरेलू उत्पादन से पूरा कर रहा है।
भारत की यह सफलता केवल उत्पादन और निर्यात तक सीमित नहीं है। इसका असर देश की अर्थव्यवस्था,वैश्विक व्यापारिक संबंधों और तकनीकी क्षमताओं पर भी गहरा पड़ा है। स्मार्टफोन निर्यात का यह नया रिकॉर्ड भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के वैश्विक मानचित्र पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है। चीन और वियतनाम जैसे देशों के साथ अब भारत भी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कंपनियाँ अपने उत्पादन स्थलों को विविधता देने की कोशिश कर रही हैं,ताकि वे किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भर न रहें। इस संदर्भ में भारत का मजबूत लोकतांत्रिक ढाँचा,विशाल उपभोक्ता बाजार और प्रतिस्पर्धी श्रम लागत उसे और भी आकर्षक विकल्प बना रहे हैं।
इस उपलब्धि से भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलों को भी बड़ा प्रोत्साहन मिला है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत न केवल स्मार्टफोन बल्कि अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन और निर्यात में भी वैश्विक नेता के रूप में उभरेगा। अमेरिका,यूरोप और अन्य विकसित बाजारों में भारतीय स्मार्टफोन की बढ़ती हिस्सेदारी इस संभावना को और मजबूत करती है।
निर्यात में इस ऐतिहासिक वृद्धि ने यह भी साबित किया है कि भारत केवल एक बड़ा उपभोक्ता बाजार नहीं,बल्कि वैश्विक उत्पादन का केंद्र बनने की क्षमता रखता है। सरकार और उद्योग जगत के बीच साझेदारी,नीतिगत समर्थन और वैश्विक कंपनियों का विश्वास मिलकर भारत को आने वाले समय में इलेक्ट्रॉनिक्स हब बनाने की दिशा में अग्रसर कर रहे हैं। भारत का यह नया कीर्तिमान न केवल अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा,बल्कि देश को तकनीकी आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी शीर्ष स्थान पर पहुँचाएगा।
