नई दिल्ली,10 जून (युआईटीवी)- कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा हाल ही में भारतीय चुनाव आयोग पर लगाए गए आरोपों के बाद देश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए उनके आरोपों को “बेबुनियाद” करार दिया है। आयोग का कहना है कि राहुल गांधी न तो कोई औपचारिक शिकायत लेकर सामने आए हैं और न ही आयोग से मिलने का समय माँगा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह एक राजनीतिक रणनीति है या वाकई में कांग्रेस को चुनावी प्रक्रिया को लेकर गंभीर आशंकाएँ हैं?
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि कांग्रेस नेता द्वारा दो दिन पूर्व सार्वजनिक रूप से सवाल उठाने के बावजूद अब तक कोई औपचारिक पत्र या शिकायत आयोग को प्राप्त नहीं हुई है। आयोग का यह भी कहना है कि अगर कांग्रेस को किसी तरह की आपत्ति या संदेह है,तो वह नियमों के तहत मिलकर उसे दर्ज करा सकती है,लेकिन राहुल गांधी या उनकी पार्टी द्वारा ऐसा कोई प्रयास अब तक नहीं किया गया।
आयोग ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि अगर किसी पार्टी या उसके नेता को वाकई में मतदाता सूची या चुनावी प्रक्रिया को लेकर आपत्ति है,तो वह आयोग से सीधा संपर्क क्यों नहीं करते? सिर्फ मीडिया में आरोप लगाने से कोई समाधान नहीं निकलता।
चुनाव आयोग ने एक और महत्वपूर्ण तथ्य को रेखांकित करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी को 24 दिसंबर 2024 को आयोग की ओर से आधिकारिक उत्तर भेजा जा चुका है। यह जवाब आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है,जिसे कोई भी देख सकता है। यह दर्शाता है कि आयोग अपनी पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर पूरी तरह सतर्क है।
चुनाव आयोग ने कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं,विशेष रूप से जिला अध्यक्षों को सलाह दी है कि वे अपने क्षेत्रों में बूथ लेवल एजेंट्स (बीएलए) की तैनाती सुनिश्चित करें। मतदाता सूची के अद्यतन की प्रक्रिया हर साल नियमित रूप से होती है और इसमें बीएलए की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। आयोग का कहना है कि यदि कांग्रेस इस प्रक्रिया में पूरी तरह भाग नहीं लेती,तो इसके लिए आयोग को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है।
इस संबंध में आयोग ने यह भी बताया कि बीएलए के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम पहले से ही आयोग के प्रशिक्षण संस्थानों में चल रहे हैं,जिनमें सभी राजनीतिक दलों को भाग लेने का अवसर मिलता है।
चुनाव आयोग ने यह भी दोहराया कि बूथ लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) जो चुनाव पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) द्वारा आर.पी. अधिनियम 1950 की धारा 13B(2) के अंतर्गत नियुक्त किए जाते हैं,पूरी निष्पक्षता से कार्य करते हैं। यदि कांग्रेस को इनकी निष्पक्षता पर संदेह है,तो उन्हें औपचारिक प्रक्रिया के तहत शिकायत करनी चाहिए,न कि सार्वजनिक मंचों पर भ्रम फैलाना चाहिए।
आयोग ने यह स्पष्ट किया कि मतदाता सूची का निर्माण,मतदान और मतगणना ये सभी कार्य अनुच्छेद 324 के अंतर्गत चुनाव आयोग के निर्देशन में होते हैं और इनकी जिम्मेदारी क्रमशः ईआरओ,पीआरओ और आरओ पर होती है। ये सभी अधिकारी पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करते हैं।
चुनाव आयोग ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव परिणामों को लेकर पहले से मन में शंका पालता है और जन समर्थन जुटाने के बजाय आयोग पर आरोप मढ़ता है,तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने की दिशा में एक गलत प्रयास है। आयोग ने कहा कि भारत के मतदाता बेहद समझदार हैं और वे यह भली-भांति समझते हैं कि चुनाव के नतीजे किसके पक्ष में क्यों आते हैं।
चुनाव आयोग ने इस धारणा को भी खारिज किया कि कांग्रेस “रेफरी” से लड़ रही है। आयोग ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव एक स्वतंत्र प्रक्रिया है और इसमें भाग लेने वाले राजनीतिक दलों का दायित्व होता है कि वे जनादेश के लिए जनता से संवाद करें,न कि प्रक्रिया पर संदेह करें।
राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए आरोप और उस पर आयोग की तीखी प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि चुनावी प्रक्रिया के हर पहलू को लेकर राजनीतिक विमर्श बढ़ रहा है। हालाँकि,लोकतंत्र में सवाल पूछना एक अधिकार है,लेकिन जब बात संवैधानिक संस्थाओं की हो,तो इस प्रक्रिया को नियमों और साक्ष्यों के आधार पर आगे बढ़ाना जरूरी होता है।
चुनाव आयोग की पारदर्शिता और जवाबदेही के दावे को कांग्रेस अगर चुनौती देना चाहती है,तो उसे स्पष्ट दस्तावेजों और औपचारिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अपनी आपत्तियाँ दर्ज करनी चाहिए। मात्र मीडिया के माध्यम से आरोप लगाकर जनभावना को भटकाना न केवल संस्थाओं की विश्वसनीयता पर असर डालता है,बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी कमजोर करता है।
इस विवाद ने एक बार फिर से यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में निष्पक्ष चुनाव सिर्फ आयोग की जिम्मेदारी नहीं,बल्कि सभी राजनीतिक दलों की साझा जवाबदेही है।