नई दिल्ली,8 दिसंबर (युआईटीवी)- देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो द्वारा बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द किए जाने और यात्रियों को हो रही भीषण परेशानी के बीच सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका की तत्काल सुनवाई की माँग को अदालत ने ठुकरा दिया। अदालत ने साफ करते हुए कहा कि केंद्र सरकार पहले ही इस मामले का संज्ञान ले चुकी है और ऐसे में न्यायालय का तुरंत हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह सच है कि लाखों यात्री इस स्थिति से प्रभावित हुए हैं,कई लोगों के जरूरी काम रुक गए और उन्हें भारी असुविधा झेलनी पड़ी,लेकिन चूँकि सरकार इस मुद्दे को सक्रिय रूप से देख रही है इसलिए न्यायालय को इसमें तुरंत दखल देने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने टिप्पणी की, “हम एयरलाइन नहीं चला सकते। भारत सरकार कार्रवाई कर रही है,तो उन्हें इसे सँभालने दें।”
इंडिगो का यह संकट लगातार छठे दिन भी जारी रहा,जिसके चलते देशभर के प्रमुख हवाई अड्डों पर अव्यवस्था की स्थिति बनी हुई है। जानकारी के अनुसार,बुधवार को भी एयरलाइन ने 200 से अधिक उड़ानें रद्द कर दीं,जबकि कई उड़ानें घंटों की देरी से संचालित की गईं। दिल्ली,मुंबई,बेंगलुरु,अहमदाबाद,चेन्नई और हैदराबाद सहित अधिकांश बड़े एयरपोर्ट्स पर यात्रियों को लंबी कतारें,भीड़ और व्यवस्थाओं की कमी का सामना करना पड़ा। कई यात्री एयरपोर्ट पर घंटों फँसे रहे,जिससे तनाव और अव्यवस्था की स्थिति और गंभीर होती गई।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकील नरेंद्र मिश्रा ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर स्वतः संज्ञान लेने की अपील की थी। मिश्रा ने अपने पत्र के माध्यम से दायर याचिका में कहा था कि पिछले कुछ दिनों में इंडिगो द्वारा 1,000 से अधिक उड़ानें रद्द किए जाने और गंभीर देरी की वजह से लाखों लोग एयरपोर्ट्स पर फँस गए। उन्होंने इसे एक प्रकार का “मानवीय संकट” बताया और दावा किया कि एयरलाइन यात्रियों को बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराने में भी विफल रही। याचिका में कहा गया कि यह स्थिति यात्रियों के मौलिक अधिकारों,विशेष रूप से अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा के अधिकार) का गंभीर उल्लंघन है।
मिश्रा द्वारा भेजे गए विस्तृत पत्र में बताया गया कि छह मेट्रो शहरों में एयरलाइन का ऑन-टाइम परफॉर्मेंस घटकर मात्र 8.5 प्रतिशत तक पहुँच गया था। इससे हजारों यात्री,जिनमें बुजुर्ग,छोटे बच्चे,दिव्यांग और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोग शामिल थे,घंटों एयरपोर्ट की कंक्रीट फ्लोर पर बैठने या लेटने को मजबूर हो गए। कई यात्रियों को दवाइयों,भोजन और पानी जैसी बुनियादी जरूरतें समय पर उपलब्ध नहीं हुईं। कई शिकायतों में कहा गया कि एयरलाइन के पास न तो पर्याप्त स्टाफ था और न ही ऐसी अप्रत्याशित परिस्थिति से निपटने की कोई ठोस व्यवस्था।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि एयरलाइन ने खुद स्वीकार किया कि अचानक बड़ी संख्या में क्रू सदस्यों के अनुपस्थित होने और तकनीकी कारणों की वजह से संचालन में भारी बाधा उत्पन्न हुई,लेकिन इसके बावजूद यात्रियों को उचित वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध नहीं कराई गई। यहाँ तक कि कई मामलों में आपातकालीन चिकित्सा जरूरतों की भी अनदेखी हुई।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से माँग की गई थी कि वह स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मुद्दे को एक जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करे और इसकी त्वरित सुनवाई के लिए विशेष पीठ गठित करे। साथ ही,इंडिगो को निर्देश देने की भी माँग की गई थी कि वह मनमाने तरीके से उड़ानें रद्द करना बंद करे,सभी सेवाओं को सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से बहाल करे तथा फँसे हुए यात्रियों को मुफ्त वैकल्पिक यात्रा की सुविधा दे।
हालाँकि,मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि अदालत इस स्तर पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि इस मामले में नियामक संस्थाएँ और केंद्र सरकार सक्रिय हैं और स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत से अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह एयरलाइन संचालन के तकनीकी और प्रशासनिक पहलुओं में दखल दे।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है,जब सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों में यात्रियों की शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। बच्चे,बुजुर्ग और विशेष परिस्थितियों में यात्रा कर रहे यात्रियों की परेशानियों से जुड़ी वीडियो और तस्वीरें लगातार वायरल हो रही हैं। कई मामलों में लोगों ने बताया कि वे 12 से 18 घंटे तक एयरपोर्ट पर फँसे रहे,जबकि एयरलाइन की ओर से स्पष्ट जानकारी तक नहीं दी गई।
इंडिगो ने अपनी ओर से जारी बयान में कहा है कि वह स्थिति को सामान्य करने के लिए तेजी से काम कर रही है और अधिकांश उड़ानें अगले कुछ दिनों में पटरी पर आ जाएँगी। एयरलाइन ने यात्रियों से सहयोग और धैर्य की अपील की है,हालाँकि पीड़ित यात्रियों ने इस बयान को अपर्याप्त और देर से आया हुआ बताया।
इस बीच,नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने भी एयरलाइन से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है और यात्रियों की सुरक्षा तथा सुविधा से जुड़े मानकों के अनुपालन को लेकर कठोर निर्देश जारी किए हैं। अब देखना होगा कि केंद्र सरकार की निगरानी और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद इंडिगो कितनी जल्द अपनी सेवाएँ सामान्य कर पाती है और लाखों प्रभावित यात्रियों की समस्याओं का समाधान कितना प्रभावी रूप से होता है।
