नई दिल्ली,24 जुलाई (युआईटीवी)- हिंदी क्राइम थ्रिलर फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इस फिल्म के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करते हुए कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। मदनी ने आरोप लगाया है कि यह फिल्म भारतीय मुसलमानों को आतंकवाद के समर्थक के रूप में दर्शाती है,जो देश में सांप्रदायिक सौहार्द को कमजोर कर सकती है और वैमनस्य को बढ़ावा दे सकती है। उनके मुताबिक,फिल्म की कहानी और प्रस्तुतिकरण भारतीय मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करने वाला है,जो सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरनाक हो सकता है।
मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि फिल्म में कथित तौर पर भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान के आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति रखने वाला और उनके इशारे पर काम करने वाला दिखाया गया है। उन्होंने इसे दुर्भावनापूर्ण और एकतरफा चित्रण करार देते हुए कहा कि इस तरह की फिल्मों से न केवल सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है,बल्कि यह समाज में नफरत और अविश्वास का माहौल भी पैदा कर सकती हैं। मदनी ने यह भी दावा किया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फिल्म के प्रति उनकी आपत्तियों का समाधान करने में गंभीरता नहीं दिखाई।
मदनी ने अपने हलफनामे में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से गठित स्क्रीनिंग कमेटी के आदेशों और प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े किए। उनका कहना है कि मंत्रालय ने केवल कमेटी की रिपोर्ट पर भरोसा किया,जबकि कमेटी ने फिल्म में सिर्फ छह मामूली बदलावों का सुझाव दिया। मदनी के मुताबिक,ये बदलाव फिल्म की मूल विचारधारा या उसके प्रभाव को बदलने के लिए बिल्कुल अपर्याप्त हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने सेंसर बोर्ड (सीबीएफसी) के सदस्यों को ही स्क्रीनिंग कमेटी में शामिल कर दिया,जबकि जमीयत ने स्वयं सेंसर बोर्ड द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट को ही चुनौती दी थी। उनके अनुसार,यह स्पष्ट रूप से हितों के टकराव का मामला है और सरकार को ऐसी कमेटी का गठन नहीं करना चाहिए था।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी माँग की है कि फिल्म के निर्माताओं को निर्देश दिया जाए कि वे एक निजी स्क्रीनिंग आयोजित करें। संगठन का तर्क है कि कोर्ट में सुनवाई कर रहे जजों को फिल्म की सामग्री और उसके निहितार्थों को सही तरीके से समझने का अवसर मिलना चाहिए,ताकि वे उचित निर्णय ले सकें। मदनी ने जोर देकर कहा कि यह मामला केवल भारत-पाकिस्तान के मुद्दे पर केंद्रित नहीं है,बल्कि इसमें भारतीय मुसलमानों को जिस तरीके से प्रस्तुत किया गया है,वह गलत और भ्रामक है,जिससे देश में सांप्रदायिक तनाव और बढ़ सकता है।
उधर, ‘उदयपुर फाइल्स’ एक अपकमिंग हिंदी क्राइम थ्रिलर फिल्म है,जिसने रिलीज से पहले ही राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बहस छेड़ दी है। फिल्म 28 जून 2022 को राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल साहू की निर्मम हत्या की वास्तविक घटना से प्रेरित है। इस हत्या ने देशभर में गहरा आक्रोश पैदा किया था। फिल्म का निर्देशन भारत एस. श्रीनाथ और जयंत सिन्हा ने किया है और इसमें विजय राज,रजनीश दुग्गल और प्रीति झांगियानी मुख्य भूमिकाओं में नजर आएँगे।
फिल्म की कहानी कन्हैया लाल की हत्या, इसके बाद की सामाजिक और राजनीतिक चुप्पी और न्याय के लिए लड़ी गई लड़ाई पर आधारित है। मेकर्स का दावा है कि यह फिल्म उन पहलुओं को उजागर करती है,जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया और समाज ने नजरअंदाज किया। हालाँकि,मुस्लिम संगठनों और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि फिल्म में घटनाओं को एकतरफा तरीके से दिखाया गया है और इसका उद्देश्य केवल एक समुदाय के प्रति नफरत फैलाना है।
मौलाना अरशद मदनी ने अपने हलफनामे में स्पष्ट कहा है कि यह फिल्म मुसलमानों को आतंकवाद के समर्थक के रूप में दिखाकर समाज में उनके प्रति नकारात्मक छवि गढ़ने की कोशिश कर रही है। उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय मुसलमानों की वफादारी पर सवाल उठाने वाली ऐसी फिल्में न केवल सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खतरनाक हैं,बल्कि यह देश के लोकतांत्रिक और बहुसांस्कृतिक ढाँचे पर भी आघात करती हैं। उन्होंने इसे दुर्भावनापूर्ण अभियान करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट से फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने या इसकी गहन समीक्षा कराने की अपील की।
फिल्म को लेकर चल रहे इस विवाद ने एक बार फिर फिल्मों और समाज में धार्मिक संवेदनाओं के बीच संतुलन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहाँ एक ओर फिल्म के समर्थक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा मानते हैं और इसे वास्तविक घटनाओं का चित्रण बताते हैं,वहीं विरोधी पक्ष का मानना है कि इस तरह की फिल्मों का इस्तेमाल राजनीतिक और सांप्रदायिक एजेंडा साधने के लिए किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जारी है और उम्मीद की जा रही है कि कोर्ट इस पर जल्द ही कोई बड़ा फैसला लेगा। अदालत को यह तय करना होगा कि क्या फिल्म अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आती है या फिर यह समाज में नफरत और सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने का साधन बन सकती है। उधर,फिल्म के निर्माता अपनी ओर से यह दावा करते रहे हैं कि उनकी फिल्म का मकसद केवल सच्चाई को दिखाना और न्याय की लड़ाई को सामने लाना है।
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। यदि कोर्ट जमीयत उलेमा-ए-हिंद की माँगों को मानता है,तो फिल्म की रिलीज पर असर पड़ सकता है और संभव है कि इसकी सामग्री की समीक्षा की जाए। वहीं,अगर कोर्ट फिल्म को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत सुरक्षित मानता है,तो यह न केवल ‘उदयपुर फाइल्स’ बल्कि भविष्य में ऐसी कई फिल्मों के लिए भी एक मिसाल बन सकती है।
