बीजिंग,19 दिसंबर (युआईटीवी)- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते रणनीतिक तनाव के बीच चीन ने जापान,अमेरिका और वेनेजुएला से जुड़े अलग-अलग लेकिन आपस में जुड़ते घटनाक्रमों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता क्वो च्याखुन ने ओकिनावा और मियाको द्वीप के बीच जलक्षेत्र में जापान द्वारा मोबाइल रडार उपकरण तैनात करने की योजना,ताइवान को अमेरिकी हथियार बिक्री और वेनेजुएला के खिलाफ अमेरिकी रुख पर चीन की आधिकारिक स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि ये सभी कदम क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गंभीर चुनौतियाँ पैदा कर रहे हैं।
जापान के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में यह योजना बनाई है कि ओकिनावा के सबसे पूर्वी द्वीप पर एक मोबाइल रडार उपकरण तैनात किया जाए,ताकि ओकिनावा और मियाको द्वीप के बीच के जलक्षेत्र में चीनी विमानवाहक पोतों और विमानों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए क्वो च्याखुन ने कहा कि असली सवाल यह है कि क्या जापान जानबूझकर परेशानी पैदा कर रहा है और चीन को नजदीक से उकसा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि जापान इस तरह के कदमों का इस्तेमाल अपने सैन्य विस्तार और समुद्री तैनाती के लिए एक आवरण और बहाने के रूप में कर रहा है।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जापान पर यह भी आरोप लगाया कि वह दक्षिणपंथी ताकतों की योजना का अनुसरण कर रहा है और धीरे-धीरे सैन्यवाद के उसी दुष्ट और गतिरोध वाले रास्ते पर लौट रहा है,जिसने अतीत में एशिया को भारी नुकसान पहुँचाया था। क्वो च्याखुन ने कहा कि क्षेत्र के देशों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को जापान के इन कदमों पर सतर्क नजर रखनी चाहिए,क्योंकि ऐसे फैसले न केवल चीन-जापान संबंधों को प्रभावित करते हैं,बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की शांति और स्थिरता को भी खतरे में डालते हैं।
इसी प्रेस ब्रीफिंग में ताइवान को लेकर अमेरिका के हालिया फैसले पर भी चीन ने कड़ा विरोध जताया। अमेरिका ने चीन के ताइवान क्षेत्र को करीब 11 अरब डॉलर के हथियार बेचने की घोषणा की है,जिसे बीजिंग ने अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता में सीधा हस्तक्षेप बताया। क्वो च्याखुन ने कहा कि चीन इस कदम का कड़ा विरोध करता है और इसकी कड़ी निंदा करता है। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि ताइवान की स्वतंत्रता ताकतों के समर्थन में बल प्रयोग करने का अमेरिकी प्रयास अंततः उल्टा पड़ेगा।
चीनी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि अमेरिका का ताइवान का इस्तेमाल करके चीन को नियंत्रित करने का प्रयास कभी सफल नहीं होगा। उनके अनुसार,ताइवान मुद्दा चीन का आंतरिक मामला है और किसी भी बाहरी ताकत को इसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। चीन बार-बार यह स्पष्ट कर चुका है कि वह शांतिपूर्ण एकीकरण के पक्ष में है,लेकिन अगर उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती दी गई,तो वह अपने हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।
क्वो च्याखुन के बयान ऐसे समय में आए हैं,जब ताइवान जलडमरूमध्य में पहले से ही तनाव बना हुआ है और अमेरिका तथा उसके सहयोगी देशों की गतिविधियों पर चीन लगातार आपत्ति जताता रहा है। बीजिंग का मानना है कि हथियारों की आपूर्ति ताइवान में अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देती है और इससे क्षेत्रीय शांति को गंभीर खतरा पैदा होता है।
इसके अलावा,वेनेजुएला से जुड़े घटनाक्रम पर भी चीन ने अपना रुख स्पष्ट किया। खबरों के अनुसार,वेनेजुएला के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को एक पत्र भेजकर वेनेजुएला के खिलाफ अमेरिका की निरंतर आक्रामकता पर चर्चा के लिए एक बैठक बुलाने का अनुरोध किया है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए क्वो च्याखुन ने कहा कि चीन वेनेजुएला का समर्थन करता है और उसका मानना है कि किसी भी देश के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के खिलाफ है।
चीनी विदेश मंत्रालय के अनुसार,वेनेजुएला के खिलाफ अमेरिका के कदम उसकी संप्रभुता और विकास के अधिकार को नुकसान पहुँचाते हैं। चीन ने हमेशा से यह रुख अपनाया है कि अंतर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान बातचीत और कूटनीति के जरिए होना चाहिए,न कि दबाव,प्रतिबंध या धमकियों के माध्यम से।
इन तीनों मुद्दों पर चीन की प्रतिक्रियाएँ यह संकेत देती हैं कि बीजिंग वैश्विक और क्षेत्रीय मंचों पर अपने हितों की रक्षा को लेकर पहले से ज्यादा मुखर और सख्त रुख अपनाने के लिए तैयार है। जापान की सैन्य तैयारियों,ताइवान पर अमेरिकी नीतियों और लैटिन अमेरिका में अमेरिकी प्रभाव को लेकर चीन की चिंताएँ एक व्यापक रणनीतिक तस्वीर का हिस्सा हैं,जिसमें वह एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की बात करता है।
चीन का यह रुख बताता है कि आने वाले समय में एशिया-प्रशांत क्षेत्र और वैश्विक कूटनीति में तनाव और बहस दोनों बढ़ सकती हैं। जापान,अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती बयानबाजी न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करेगी,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की दिशा पर भी गहरा असर डाल सकती है।
