लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव (तस्वीर क्रेडिट@ChapraZila)

लालू प्रसाद यादव परिवार की मुश्किलें बढ़ीं: लैंड फॉर जॉब केस में राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने आरोप तय करने का फैसला 4 दिसंबर तक टाला

नई दिल्ली,10 नवंबर (युआईटीवी)- बहुचर्चित “लैंड फॉर जॉब” घोटाले में आज दिल्ली की राउज़ एवेन्यू स्थित विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई हुई। हालाँकि,अदालत ने इस मामले में आरोप तय करने के आदेश को फिलहाल टाल दिया है। अब अदालत 4 दिसंबर को यह तय करेगी कि पूर्व रेल मंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव,उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी,बेटे और राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए जाएँ या नहीं। यह फैसला फिलहाल टल जाने से लालू परिवार को अस्थायी राहत जरूर मिली है,लेकिन सीबीआई द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों के चलते उनकी कानूनी मुश्किलें अभी बरकरार हैं।

दरअसल,इस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने 25 अगस्त को आरोप तय करने पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज अदालत को यह आदेश सुनाना था,लेकिन किसी कारणवश जज ने इसे स्थगित करते हुए अगली तारीख 4 दिसंबर निर्धारित कर दी। उस दिन अदालत यह तय करेगी कि क्या लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं या नहीं। अगर अदालत आरोप तय करने का आदेश देती है,तो यह मामला ट्रायल स्टेज में प्रवेश कर जाएगा और लालू परिवार को अदालत में औपचारिक सुनवाई का सामना करना पड़ेगा।

सुनवाई के दौरान लालू यादव,राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव अदालत में मौजूद नहीं थे। उनकी ओर से वकील मनिंदर सिंह ने अदालत में पेश होकर तीनों की व्यक्तिगत पेशी से छूट माँगी,जिसे कोर्ट ने मंजूरी दे दी। लालू यादव पहले से ही इस मामले में सीबीआई की जाँच को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख कर चुके हैं। उन्होंने अपनी याचिका में सीबीआई की एफआईआर को रद्द करने और ट्रायल कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने की माँग की है।

लालू यादव की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि इस मामले में अभियोजन की प्रक्रिया शुरू करने से पहले आवश्यक सरकारी अनुमति नहीं ली गई,जो कि कानूनी तौर पर अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि बिना मंजूरी के की गई जाँच और चार्जशीट पूरी तरह अवैध है और इसे खारिज किया जाना चाहिए। सिब्बल ने अदालत में यह भी कहा कि सीबीआई ने राजनीतिक दबाव में आकर यह जाँच चलाई है और इसका उद्देश्य केवल लालू यादव और उनके परिवार को निशाना बनाना है।

वहीं दूसरी ओर,सीबीआई की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि लालू यादव की ओर से जानबूझकर ट्रायल कोर्ट में आरोप तय करने पर दलीलें पेश नहीं की जा रही हैं,ताकि प्रक्रिया में देरी की जा सके। सीबीआई का यह भी कहना है कि उनके पास पर्याप्त दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य मौजूद हैं,जो यह साबित करते हैं कि रेल मंत्री रहते हुए लालू यादव ने अपने पद का दुरुपयोग किया और भ्रष्टाचार किया।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने 18 जुलाई को यह कहते हुए राहत देने से इनकार किया था कि जाँच एजेंसियों को अपना काम करने दिया जाना चाहिए। इससे यह संकेत मिलता है कि सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता और ट्रायल कोर्ट को स्वतंत्र रूप से कार्यवाही पूरी करने की अनुमति देना चाहता है।

लैंड फॉर जॉब घोटाला उस समय का है,जब लालू प्रसाद यादव 2004 से 2009 के बीच रेल मंत्री थे। सीबीआई का आरोप है कि इस अवधि में लालू यादव ने भारतीय रेल में ग्रुप ‘डी’ पदों पर नौकरी देने के बदले उम्मीदवारों से या उनके परिवार के सदस्यों से पटना में जमीनें अपनी या अपने परिवार के नाम पर लिखवाईं। एजेंसी के अनुसार,यह जमीनें बहुत कम कीमतों पर खरीदी गईं और कई मामलों में इन पर राबड़ी देवी और उनके बच्चों के स्वामित्व वाली कंपनियों का नाम दर्ज किया गया।

सीबीआई ने दावा किया है कि इन नियुक्तियों के लिए कोई विज्ञापन या सार्वजनिक सूचना जारी नहीं की गई थी,जिससे यह साबित होता है कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी। जांच एजेंसी का कहना है कि इन नियुक्तियों के बदले में जो जमीनें ट्रांसफर की गईं,वे सरकारी सेवा के बदले रिश्वत के रूप में ली गईं। एजेंसी के अनुसार,यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं का स्पष्ट उल्लंघन है।

इस मामले में सीबीआई ने 7 अक्टूबर 2022 को लालू यादव,राबड़ी देवी,मीसा भारती समेत कुल 16 आरोपियों के खिलाफ पहली चार्जशीट दाखिल की थी। इसके बाद 25 फरवरी को ट्रायल कोर्ट ने इस चार्जशीट पर संज्ञान लिया था। बाद में 7 जून 2024 को सीबीआई ने इस मामले में अंतिम चार्जशीट दाखिल की,जिसमें कुल 78 लोगों को आरोपी बनाया गया। इनमें से 38 आरोपी वे उम्मीदवार हैं,जिन्हें कथित रूप से नौकरी मिली थी।

लालू यादव और उनके परिवार ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई बताया है। आरजेडी का कहना है कि भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए जाँच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। तेजस्वी यादव ने पहले कहा था कि यह मामला पूरी तरह से मनगढ़ंत है और इसका उद्देश्य केवल उनके परिवार की छवि खराब करना है।

अब सभी की नजरें 4 दिसंबर पर टिकी हैं,जब विशेष सीबीआई न्यायाधीश यह फैसला सुनाएँगे कि क्या लालू परिवार और अन्य आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं या नहीं। अगर अदालत आरोप तय करती है,तो लालू परिवार को लंबे ट्रायल का सामना करना पड़ सकता है,जो उनके लिए राजनीतिक और कानूनी दोनों मोर्चों पर चुनौतीपूर्ण साबित होगा।

यह मामला न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में राजनीतिक रूप से संवेदनशील माना जा रहा है,क्योंकि लालू प्रसाद यादव का नाम भारतीय राजनीति में लंबे समय से प्रभावशाली नेताओं की श्रेणी में रहा है। उनकी पार्टी आरजेडी आज भी बिहार की राजनीति में एक बड़ा आधार रखती है और इस मुकदमे का परिणाम न केवल लालू परिवार के भविष्य पर बल्कि राज्य की सियासी दिशा पर भी असर डाल सकता है।

राउज़ एवेन्यू कोर्ट की अगली सुनवाई अब इस मामले में अगला निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है। अगर आरोप तय होते हैं,तो यह स्पष्ट होगा कि सीबीआई के पास इतने ठोस सबूत हैं कि मामला मुकदमे की प्रक्रिया में आगे बढ़ सके। वहीं अगर आरोप तय नहीं होते,तो लालू परिवार इसे अपनी राजनीतिक जीत के तौर पर पेश करेगा। फिलहाल,सभी पक्ष 4 दिसंबर के आदेश का इंतजार कर रहे हैं,जो लैंड फॉर जॉब घोटाले की दिशा और लालू परिवार की राजनीतिक किस्मत दोनों तय कर सकता है।