सुप्रीम कोर्ट

स्थानीय निकाय चुनावों के बीच केरल सरकार पहुँची सुप्रीम कोर्ट,निर्वाचन आयोग की एसआईआर प्रक्रिया रोकने की माँग की

तिरुवनंतपुरम,18 नवंबर (युआईटीवी)- केरल सरकार ने निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू की गई विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया पर रोक लगाने की माँग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सरकार की याचिका में आग्रह किया गया है कि जब तक राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न नहीं हो जाते,तब तक एसआईआर प्रक्रिया को स्थगित कर दिया जाए। इस बीच,इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने भी इसी सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर तत्काल स्थगन की माँग की है। दोनों ही याचिकाओं में प्रमुख तर्क यह है कि एसआईआर की प्रक्रिया और स्थानीय निकाय चुनावों का एक साथ संचालन न तो व्यावहारिक है और न ही प्रशासनिक रूप से संभव।

राज्य सरकार ने अपनी याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की है,जिसमें कहा गया है कि केरल में कुल 1,200 स्थानीय स्वशासन संस्थाएँ (एलएसजीआई) हैं। इनमें 941 ग्राम पंचायतें,152 ब्लॉक पंचायत,14 जिला पंचायत,87 नगर पालिकाएँ और 6 निगम शामिल हैं। इन स्थानीय निकायों के लिए कुल 23,612 वार्डों में चुनाव दो चरणों में 9 और 11 दिसंबर को प्रस्तावित हैं,वहीं मतगणना की तारीख 13 दिसंबर तय की गई है। सरकार का तर्क है कि इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने के लिए प्रशासनिक ढाँचा पहले से ही अत्यधिक दबाव में होगा।

याचिका के अनुसार,स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए लगभग 1,76,000 कर्मियों की आवश्यकता होगी। इसके अतिरिक्त सुरक्षा बलों की संख्या 68,000 से अधिक होगी,जबकि एसआईआर प्रक्रिया संचालित करने के लिए और 25,668 अतिरिक्त कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी। सरकार का कहना है कि एक तरफ चुनाव की तैयारी और दूसरी तरफ एसआईआर जैसी व्यापक प्रक्रिया का संचालन राज्य की प्रशासनिक मशीनरी को ठप कर देगा। इससे आम शासन व्यवस्था प्रभावित होगी और प्रशासन पर असामान्य दबाव पैदा होगा।

राज्य सरकार ने अपने तर्क में यह भी स्पष्ट किया है कि स्थानीय निकाय चुनावों का समय पर सम्पन्न होना एक संवैधानिक बाध्यता है। संविधान के अनुच्छेद 243-ई और 243-यू के अनुसार,स्थानीय निकायों के चुनाव उनके मौजूदा परिषदों की पहली बैठक से पाँच वर्ष के भीतर अनिवार्य रूप से कराए जाने चाहिए। इसके विपरीत,एसआईआर प्रक्रिया के लिए ऐसा कोई संवैधानिक अनिवार्य प्रावधान मौजूद नहीं है,यानी इसे स्थगित करने से किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं होगा।

सरकार का कहना है कि एसआईआर एक प्रशासनिक प्रक्रिया है,जिसे चुनाव में बाधा उत्पन्न किए बिना किसी भी उपयुक्त समय पर संचालित किया जा सकता है। इसलिए इसे स्थानीय निकाय चुनावों के तुरंत पहले और दौरान लागू करना तार्किक रूप से उचित नहीं है। सरकार ने यह भी आग्रह किया है कि निर्वाचन आयोग चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने तक एसआईआर को रोक कर रखे,क्योंकि इससे न तो मतदाताओं के अधिकार प्रभावित होंगे और न ही कोई संवैधानिक समस्या खड़ी होगी।

याचिका में ड्राफ्ट मतदाता सूची की समयसीमा को भी मुद्दा बनाया गया है। आयोग ने 4 नवंबर से एसआईआर प्रक्रिया शुरू की है और इसके तहत ड्राफ्ट मतदाता सूची 4 दिसंबर को प्रकाशित की जानी है,यानी यह पूरी प्रक्रिया चुनाव के ठीक बीचोंबीच होगी। याचिका में कहा गया है कि इससे मतदाता सूची से संबंधित शिकायतों के निस्तारण,पुनरीक्षण और संशोधन की प्रक्रिया भी असंभव हो जाएगी,जबकि मतदाता सूची का सटीक होना चुनावों की पारदर्शिता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह फिलहाल एसआईआर की वैधता को चुनौती नहीं दे रही है,बल्कि केवल चुनावों के सुचारु संचालन को ध्यान में रखते हुए अस्थायी स्थगन की माँग कर रही है। राज्य का कहना है कि एसआईआर प्रक्रिया पर विस्तृत आपत्तियाँ बाद में उचित समय पर अलग याचिका के रूप में पेश की जा सकती हैं,लेकिन वर्तमान स्थिति में यह जरूरी है कि निर्वाचन आयोग इस प्रक्रिया को चुनावों के पूरा होने तक टाल दे।

आईयूएमएल की याचिका में भी यही कहा गया है कि एसआईआर प्रक्रिया मतदाताओं के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है,क्योंकि एक ही समय में दो बड़ी चुनावी प्रक्रियाओं को संभालना प्रशासन के लिए लगभग असंभव होगा। पार्टी ने यह भी तर्क दिया है कि इससे मतदाता सूची में अव्यवस्था फैल सकती है और संशोधन प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाएगी।

अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर कब सुनवाई करेगा,इसकी घोषणा का इंतजार है। यह मामला महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि यह प्रशासनिक क्षमता, चुनावी पारदर्शिता और संवैधानिक बाध्यताओं—तीनों के संतुलन से जुड़ा हुआ है। केरल सरकार और आईयूएमएल की याचिकाओं के बाद अब न्यायालय के फैसले पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।