नई दिल्ली,29 मार्च (युआईटीवी)- मद्रास हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खिलाफ की गई टिप्पणी के बाद मुसीबत में फँसे स्टैंडअप कमीडियन कुणाल कामरा को अंतरिम अग्रिम जमानत दे दी। कामरा को अदालत ने शर्तों के साथ 7 अप्रैल तक अंतरिम अग्रिम जमानत देने का आदेश दिया है। इसके साथ ही कामरा ने अपनी याचिका में तमिलनाडु में अपने निवास का हवाला देते हुए अंतर-राज्यीय जमानत की माँग की थी। कामरा का कहना था कि वह फरवरी 2021 से तमिलनाडु से मुंबई चले गए थे,लेकिन तमिलनाडु के निवासी होने के कारण उन्हें सुरक्षा संबंधी चिंताएँ थीं। उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें हाल ही में मुंबई में प्रदर्शन करने के बाद धमकियाँ मिल रही हैं और उन्हें डर था कि मुंबई पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर सकती है।
इससे पहले गुरुवार को कमीडियन कुणाल कामरा के खिलाफ गैर-संज्ञेय अपराध का मामला दर्ज किया गया था। पुलिस सूत्रों के अनुसार,यह शिकायत महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर किए गए व्यंग्यपूर्ण गाने को लेकर दर्ज की गई थी। युवा सेना के सदस्य रूपेश मिश्रा ने यह शिकायत दर्ज कराई थी,जिसमें आरोप लगाया गया था कि कामरा ने शिंदे पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की थीं। शिकायत के बाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 356(2) (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया था। इसके बावजूद,कुणाल कामरा ने पुलिस द्वारा भेजे गए समन का जवाब नहीं दिया और वे बयान देने के लिए पेश नहीं हुए।
मामला तब गंभीर हुआ जब 24 मार्च को शिवसेना विधायक मंगेश कुडलकर ने कामरा के खिलाफ कुर्ला नेहरूनगर थाने में शिकायत दर्ज कराई। उनका आरोप था कि कुणाल कामरा ने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को ‘गद्दार’ करार दिया था। मंगेश कुडलकर ने पुलिस से कामरा के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया। इसी बीच,23 मार्च की रात शिवसेना कार्यकर्ताओं ने मुंबई के हैबिटेट स्टूडियो में तोड़फोड़ की, जहाँ कमीडियन का शो रिकॉर्ड किया जा रहा था। खार पुलिस ने युवा सेना के महासचिव राहुल कनाल पर विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया। उन्होंने 20 शिवसेना कार्यकर्ताओं को भी हिरासत में लिया।
पुलिस उपायुक्त दीक्षित गेदम ने इस घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए कहा कि खार थाने में दो अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं। एक मामला तोड़फोड़ करने वाले शिवसेना कार्यकर्ताओं के खिलाफ है,जबकि दूसरा मामला कामरा द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणियों के खिलाफ दर्ज किया गया है। दोनों मामलों में जाँच जारी है।
शिवसेना ने कामरा के खिलाफ अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है,विशेष रूप से उनके उस हालिया प्रदर्शन को लेकर,जिसमें उन्होंने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का मजाक उड़ाया था। शिवसेना ने एक बयान में कहा, “उपमुख्यमंत्री शिंदे का मजाक उड़ाना एक सुनियोजित हमले जैसा है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने का उदाहरण है, जहाँ कॉमेडी का इस्तेमाल राजनीतिक रूप से प्रेरित गलत सूचना फैलाने और लोगों को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है।” शिवसेना ने यह भी कहा कि वह महाराष्ट्र के लोगों के लिए काम करने वाले नेतृत्व का अपमान या बदनाम करने के किसी भी प्रयास को बर्दाश्त नहीं करेगी और कामरा से माफी की माँग की है।
कामरा का यह मामला राजनीति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच की संवेदनशील सीमाओं को लेकर कई सवाल खड़ा करता है। एक तरफ जहाँ कामरा का कहना है कि उनका उद्देश्य केवल हँसी मजाक था,वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक नेताओं द्वारा इसे गंभीर रूप से लिया गया है। इस मामले ने इस बात को और स्पष्ट कर दिया है कि स्टैंडअप कॉमेडी और राजनीति में अक्सर टकराव होते हैं,खासकर जब कमीडियन किसी राजनीतिक नेता या पार्टी के खिलाफ व्यंग्य करते हैं।
कुणाल कामरा ने इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अपनी चिंता जताते हुए कहा कि उनके खिलाफ बढ़ रही प्रतिक्रिया और धमकियाँ उनकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी कला को लेकर जो विवाद हो रहा है, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। उनका मानना है कि उन्हें अपनी राय व्यक्त करने का पूरा अधिकार है,चाहे वह किसी भी राजनीतिक पार्टी या नेता के खिलाफ हो।
कामरा ने अपनी याचिका में अदालत से यह भी अपील की थी कि उन्हें अंतर-राज्यीय जमानत दी जाए,क्योंकि वह तमिलनाडु में निवास करते हैं और उनके खिलाफ मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए हैं। उनकी इस माँग को मद्रास हाई कोर्ट ने स्वीकार किया और उन्हें 7 अप्रैल तक अंतरिम अग्रिम जमानत दी। हालाँकि,कोर्ट ने इस पर शर्तें भी लगाई हैं,जिससे कामरा को कुछ कानूनी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा।
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह केवल एक व्यक्तिगत विवाद नहीं है,बल्कि एक बड़ा सवाल है कि क्या किसी व्यक्ति को अपने व्यंग्य या कला के माध्यम से राजनीतिक नेताओं की आलोचना करने का अधिकार है या नहीं। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है,लेकिन यह अधिकार भी कुछ सीमाओं के भीतर होता है,खासकर तब जब किसी की टिप्पणी से किसी अन्य व्यक्ति या समूह की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
कुणाल कामरा के इस विवाद ने यह भी दिखाया कि भारतीय राजनीति में हास्य और व्यंग्य को लेकर कितनी संवेदनशीलता है। राजनीति और कॉमेडी का यह टकराव आगे चलकर कई कानूनी और सामाजिक बहसों का कारण बन सकता है।
