मुंबई,2 सितंबर (युआईटीवी)- मुंबई के आजाद मैदान में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर जारी आंदोलन मंगलवार को और गंभीर मोड़ पर पहुंच गया। आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल ने देवेंद्र फडणवीस सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए स्पष्ट कर दिया कि वे किसी भी हाल में मुंबई से नहीं हटेंगे। उनके इस ऐलान के बाद आंदोलन और भी व्यापक रूप से सुर्खियों में आ गया है।
मनोज जरांगे पाटिल ने कहा कि उनका आंदोलन पिछले दो वर्षों से पूरी तरह शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से चल रहा है। उन्होंने सरकार पर गरीबों की पीड़ा को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया और चेतावनी दी कि यदि सरकार गरीबों की आवाज़ नहीं सुनेगी,तो उसका सामाजिक और राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पाटिल ने जोर देकर कहा कि उनके आंदोलन का उद्देश्य सिर्फ आरक्षण की माँग को लेकर न्याय दिलाना है और इसमें कोई हिंसा या असभ्यता नहीं है।
जरांगे पाटिल ने बताया कि आंदोलन के दौरान सभी नियमों का पालन किया गया है। उन्होंने कहा कि “कोर्ट के आदेश पर हमने सारी गाड़ियाँ हटा दीं,फिर भी सरकार हमारे खिलाफ जा रही है। अब तक 58 लाख लोगों का पंजीकरण हो चुका है,लेकिन ‘कुनबी’ प्रमाणपत्र जारी नहीं किए गए हैं। हम मुंबई से तब तक नहीं जाएँगे,जब तक ये प्रमाणपत्र नहीं मिलते। अगर आजाद मैदान के बाहर लड़कों पर लाठीचार्ज किया गया, तो यह सरकार की छवि को धूमिल करेगा। मैं यहाँ से हटने वाला नहीं हूँ। जब मैं चला जाऊँ,तब भी आप शांत रहें। यह लड़ाई शांतिपूर्वक लड़नी है। मैं मरते दम तक मुंबई नहीं छोड़ूँगा।”
उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर कोर्ट में झूठे सबूत पेश करने का आरोप भी लगाया और चेतावनी दी कि इसके परिणाम उन्हें भुगतने होंगे। मनोज जरांगे ने कहा कि आंदोलन के पहले दिन से ही वे सरकार के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं,लेकिन समाधान निकले बिना वे पीछे नहीं हटेंगे। उनकी बातों से स्पष्ट है कि आंदोलन का स्वरूप पूरी तरह से न्यायपूर्ण और दबाव डालने वाला है,जो सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
इस बीच,मुंबई पुलिस ने आंदोलन के दौरान नियमों के उल्लंघन के आरोप में मनोज जरांगे पाटिल को नोटिस भेजा है। पुलिस ने नोटिस में स्पष्ट किया कि आंदोलन स्थल पर कुछ नियमों का पालन नहीं किया गया और संबंधित मामलों पर संज्ञान लिया जा रहा है। नोटिस मिलने के बाद मनोज जरांगे की लीगल टीम ने उनसे मुलाकात की। उनकी वकील टीम में शामिल एडवोकेट आशीष गायकवाड़ ने कहा कि वे कोर्ट में यह साबित करेंगे कि नियमों का उल्लंघन हुआ है या नहीं। उन्होंने बताया कि जरांगे की तबीयत पिछले दो दिनों से थोड़ी खराब थी और उनकी टीम आज उनकी स्वास्थ्य स्थिति और आंदोलन की कानूनी स्थिति को समझने के लिए वहाँ मौजूद थी।
आशीष गायकवाड़ ने आगे कहा कि लोग जरांगे का समर्थन कर रहे हैं और सड़कें तथा आंदोलन स्थल 95 फीसदी खाली हैं। उनकी टीम जरांगे का पक्ष कोर्ट में पेश करने के लिए तैयार है। गायकवाड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि जो कुछ भी हुआ,चाहे अच्छा हो या बुरा,वे दोनों पक्षों को कोर्ट के सामने रखेंगे। इस बयान से यह संकेत मिलता है कि आंदोलन कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से जारी रहेगा और इसके दौरान किसी भी तरह की हिंसा या अराजकता की संभावना कम है।
मराठा आरक्षण की माँग को लेकर यह आंदोलन मुंबई में पिछले शुक्रवार से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के रूप में जारी है। हजारों समर्थक मनोज जरांगे पाटिल के साथ आंदोलन स्थल पर मौजूद हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि यह उनकी पहचान और अधिकारों की लड़ाई है,जिसे वे किसी भी हालत में छोड़ने वाले नहीं हैं। आंदोलन स्थल पर भारी भीड़ और सपोर्टिव माहौल ने इसे और भी प्रभावशाली बना दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस आंदोलन का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र सरकार के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है,क्योंकि आंदोलनकारियों ने साफ कर दिया है कि वे बिना समाधान के पीछे नहीं हटेंगे। वहीं, कोर्ट और पुलिस प्रशासन के लिए भी यह आवश्यक हो गया है कि किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए उचित कदम उठाए जाएं।
मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल के आक्रामक रुख और सरकार पर आरोपों के बाद राजनीतिक हलकों में भी हलचल बढ़ गई है। विपक्ष और अन्य सामाजिक संगठनों ने इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त करनी शुरू कर दी है। हालाँकि,जरांगे पाटिल ने बार-बार जोर दिया है कि उनका आंदोलन शांतिपूर्ण है और वे हिंसा का समर्थन नहीं करते। उनके इस रवैये से यह स्पष्ट होता है कि आंदोलन का केंद्र सिर्फ न्याय और आरक्षण की माँग है,न कि किसी तरह की राजनीतिक उथल-पुथल।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच यह स्पष्ट हो गया है कि मराठा आरक्षण का मुद्दा महाराष्ट्र सरकार के लिए संवेदनशील और चुनौतीपूर्ण बन गया है। मनोज जरांगे पाटिल की दृढ़ता और आंदोलन के विशाल समर्थन ने यह संदेश दिया है कि आंदोलनकारियों की माँगें अनदेखी नहीं की जा सकतीं। आने वाले दिनों में सरकार और आंदोलनकारियों के बीच वार्ता और कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से इस विवाद का समाधान तलाशा जाएगा।
मुंबई के आजाद मैदान में जारी यह आंदोलन केवल आरक्षण की माँग तक ही सीमित नहीं है,बल्कि यह समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों और न्याय की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में यह आंदोलन महाराष्ट्र के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को प्रभावित करने वाला साबित होगा और इसके परिणाम आने वाले समय में स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे।
इसलिए,मराठा आंदोलन अब सिर्फ एक स्थानीय मुद्दा नहीं रह गया है,बल्कि यह न्याय,लोकतंत्र और समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों के संरक्षण की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। मुंबई और महाराष्ट्र की राजनीति इस आंदोलन की दिशा और परिणामों को ध्यान में रखते हुए आगे की रणनीति तय करेगी।