चेन्नई,28 जुलाई (युआईटीवी)- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष डॉ. वी. नारायणन ने 30 जुलाई को भारत और अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक महत्वपूर्ण पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजे जाने की जानकारी दी। चेन्नई हवाई अड्डे पर पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने इसरो के आगामी अंतरिक्ष अभियानों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा कीं। उन्होंने बताया कि 30 जुलाई को भारत और अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक महत्वपूर्ण पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इस मिशन के जरिए इसरो और नासा की साझेदारी को एक नई ऊँचाई मिलने जा रही है। यह उपग्रह भारत में निर्मित जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा और 740 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थापित किया जाएगा।
डॉ. नारायणन ने बताया कि यह एक अत्याधुनिक रडार इमेजिंग सैटेलाइट है, जिसकी खासियत यह है कि यह मौसम की किसी भी स्थिति में,चाहे बादल हों या बारिश,पृथ्वी की स्पष्ट तस्वीरें लेने में सक्षम है। इसका उपयोग आपदा प्रबंधन, भूस्खलन की निगरानी और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी गतिविधियों के विश्लेषण में किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह उपग्रह भारत और अमेरिका के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी मानवता के लिए फायदेमंद सिद्ध होगा।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इसरो का अनुसंधान केवल क्षेत्रीय या राज्य-स्तरीय जरूरतों तक सीमित नहीं है,बल्कि यह पूरे देश की वैज्ञानिक और तकनीकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि तमिलनाडु,केरल या उत्तरी राज्यों के लिए इसरो की योजनाएँ अलग नहीं होतीं,बल्कि सभी मिशन भारत के वैज्ञानिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की दिशा में एक साझा प्रयास हैं।
इस अवसर पर डॉ.नारायणन ने इसरो के पहले सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ को लेकर भी अहम जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह उपग्रह 26 जनवरी को लॉन्च किया गया था और इसका वजन मात्र 1.5 किलोग्राम है। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के वायुमंडल का अध्ययन करना है। उन्होंने यह भी बताया कि इसरो को आदित्य एल-1 से सूर्य से जुड़ा शुरुआती डेटा प्राप्त हो चुका है,जिस पर वैज्ञानिक विश्लेषण जारी है। यह मिशन सौर गतिविधियों की बेहतर समझ और पृथ्वी पर उनके प्रभावों को समझने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
मानव मिशन ‘गगनयान’ को लेकर इसरो प्रमुख ने कहा कि इसकी तैयारियाँ जोरों पर हैं। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2025 में एक मानवरहित मिशन लॉन्च किया जाएगा, जो तकनीकी परीक्षण के लिहाज से बेहद अहम होगा। यदि यह मिशन सफल रहता है,तो अगले वर्ष दो और मानवरहित मिशन भेजे जाएँगे। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से घोषित योजना के अनुसार मार्च 2027 में पहला मानवयुक्त मिशन लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन के लिए श्रीहरिकोटा में पहला प्रक्षेपण यान तैयार किया जा रहा है। यह भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी, जब देश का कोई अंतरिक्ष यात्री स्वदेशी तकनीक के जरिए अंतरिक्ष में जाएगा।
चंद्रयान-4 मिशन को लेकर डॉ. नारायणन ने कहा कि यह मिशन बेहद चुनौतीपूर्ण होगा,लेकिन इसरो इसे सफल बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। चंद्रयान-4 का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर उतरकर वहाँ से चंद्र नमूने एकत्रित कर पृथ्वी पर लाना है। यह भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं की दिशा में अगला बड़ा कदम होगा। इस मिशन से भारत उन गिने-चुने देशों की सूची में शामिल हो जाएगा,जिन्होंने चंद्रमा से सैंपल पृथ्वी पर लाने की तकनीकी दक्षता प्राप्त की है।
इसके अलावा,इसरो और जापान का संयुक्त मिशन चंद्रयान-5 भी चर्चा में रहा। यह मिशन लगभग 100 दिनों तक कार्य करेगा और इसमें विशेष रूप से चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों का अध्ययन किया जाएगा। यह मिशन जापान की अंतरिक्ष एजेंसी जैक्सा और इसरो के बीच गहराते तकनीकी और रणनीतिक सहयोग का प्रतीक होगा।
डॉ. नारायणन ने यह भी बताया कि इसरो वर्तमान में 55 सक्रिय उपग्रहों का संचालन कर रहा है और आने वाले चार वर्षों में इन उपग्रहों को तीन हिस्सों में पुनर्वर्गीकृत किया जाएगा। इससे उपग्रहों की कार्यक्षमता बढ़ेगी और विभिन्न क्षेत्रों—जैसे संचार, मौसम पूर्वानुमान,कृषि,रक्षा और पर्यावरण संरक्षण में इनका बेहतर उपयोग किया जा सकेगा।
उन्होंने अंत में कहा कि इन सभी मिशनों के माध्यम से भारत वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में अपनी भूमिका को लगातार मजबूत कर रहा है। यह न केवल वैज्ञानिक उपलब्धि है,बल्कि राष्ट्र की आत्मनिर्भरता,तकनीकी क्षमताओं और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की पहचान भी है। भारत का अंतरिक्ष भविष्य उज्ज्वल है और इसरो इसके केंद्र में खड़ा है।