चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर (तस्वीर क्रेडिट@utkarshc117)

भारत-चीन संबंधों में नई संभावनाओं की तलाश: व्यापारिक चिंताओं के समाधान और सीमा वार्ता पर फोकस

नई दिल्ली,19 अगस्त (युआईटीवी)- नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव का लंबा इतिहास रहा है। कभी सीमा विवाद तो कभी व्यापारिक असंतुलन ने दोनों देशों के रिश्तों को जटिल बनाया है। हालाँकि,ताज़ा घटनाक्रम इस बात की ओर इशारा करता है कि भारत और चीन आपसी मतभेदों को पीछे छोड़कर सहयोग की नई दिशा तलाशने का प्रयास कर रहे हैं। सोमवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी दो दिवसीय आधिकारिक दौरे पर नई दिल्ली पहुँचे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की और भारत की तीन प्रमुख व्यापारिक चिंताओं — रेयर अर्थ,फर्टिलाइज़र और सुरंग खोदने वाली मशीनों का समाधान करने का आश्वासन दिया। यह संकेत न केवल द्विपक्षीय व्यापारिक रिश्तों में सुधार की दिशा में सकारात्मक है,बल्कि एशिया की दो प्रमुख शक्तियों के बीच सहयोग के नए अवसर भी खोल सकता है।

रेयर अर्थ मैग्नेट को लेकर भारत की चिंता जायज है,क्योंकि इसका इस्तेमाल आधुनिक तकनीक आधारित उद्योगों में बड़े पैमाने पर होता है। इलेक्ट्रॉनिक सामानों से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों और भारी औद्योगिक मशीनों तक,रेयर अर्थ तत्व वैश्विक तकनीकी क्रांति की रीढ़ माने जाते हैं। हाल के महीनों में चीन ने अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव के चलते रेयर अर्थ मैग्नेट के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए,जिससे उन देशों पर असर पड़ा जो इस खनिज पर आयात के लिए चीन पर निर्भर हैं। भारत भी उनमें से एक है। चीन की ओर से भारत को आश्वस्त किया जाना इस बात का संकेत है कि बीजिंग नई दिल्ली की चिंताओं को गंभीरता से ले रहा है और द्विपक्षीय संबंधों को संतुलित बनाने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहता है।

इसके अलावा,फर्टिलाइज़र का मुद्दा भी भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। एक कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत की खाद्य सुरक्षा काफी हद तक उर्वरकों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में आई बाधाओं के बीच,भारत ने कई बार उर्वरकों की कमी का सामना किया है। चीन द्वारा इस क्षेत्र में सहयोग का वादा करना भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए राहत की खबर है। वहीं,सुरंग खोदने वाली मशीनों की आपूर्ति भारत की अवसंरचना परियोजनाओं को गति देने में मदद कर सकती है।

वांग यी की इस यात्रा के दौरान केवल व्यापार ही नहीं,बल्कि सुरक्षा और राजनीतिक पहलुओं पर भी जोर दिया गया। उनकी मुलाकात राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से होनी है,जहाँ सीमा मुद्दों पर विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) स्तर की वार्ता आयोजित की जाएगी। यह वार्ता इसलिए अहम है क्योंकि लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में कई बार दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनावपूर्ण स्थिति देखी गई है। भारत लगातार यह रेखांकित करता रहा है कि सीमा पर शांति और स्थिरता दोनों देशों के बीच सामान्य संबंधों की नींव है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पिछले साल हुई बैठक में जिस सहमति पर जोर दिया गया था,वांग यी की यह यात्रा उसी दिशा में आगे बढ़ने का संकेत मानी जा रही है। चीन के विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया है कि यह यात्रा द्विपक्षीय सहमति को लागू करने और संबंधों को स्थिर बनाने में सहायक होगी।

अपने उद्घाटन संबोधन में विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों की बहुआयामी प्रकृति पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों देश पड़ोसी होने के साथ-साथ विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ हैं,ऐसे में व्यापार और निवेश से जुड़े मामलों को प्रतिबंधों और बाधाओं से मुक्त रखना समय की माँग है। जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत एक निष्पक्ष,संतुलित और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थक है,जिसमें एशिया की बहुध्रुवीयता भी शामिल है। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई,वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिरता और सुधारित बहुपक्षवाद को साझा प्राथमिकताओं के रूप में चिन्हित किया।

यह बयान भारत की व्यापक विदेश नीति की झलक देता है। एक ओर भारत अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ अपने रणनीतिक संबंध मजबूत कर रहा है,वहीं दूसरी ओर वह चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी संवाद बनाए रखने का इच्छुक है। मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में जब अमेरिका-चीन संबंधों में तनाव बना हुआ है,तब भारत के लिए यह संतुलन साधना एक कठिन लेकिन आवश्यक कार्य है।

बैठकों के दौरान सीमा पर हालात,द्विपक्षीय व्यापार और उड़ान सेवाओं की बहाली जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की जा सकती है। कोविड महामारी और सीमा विवादों के बाद दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें प्रभावित हुई थीं,जिससे लोगों की आवाजाही और व्यापारिक गतिविधियों पर असर पड़ा। इन सेवाओं की बहाली से दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की प्रक्रिया को गति मिल सकती है।

वांग यी की भारत यात्रा को द्विपक्षीय संबंधों में संभावनाओं की नई शुरुआत के रूप में देखा जा सकता है। हालाँकि,दोनों देशों के बीच मतभेद गहरे हैं और उन्हें रातों-रात दूर नहीं किया जा सकता,लेकिन यह यात्रा इस बात का प्रमाण है कि संवाद और कूटनीति के माध्यम से आगे बढ़ने की कोशिशें जारी हैं। यदि भारत और चीन व्यापारिक असंतुलन को कम करने और सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की दिशा में ठोस कदम उठाते हैं,तो यह न केवल द्विपक्षीय रिश्तों के लिए बल्कि पूरे एशियाई महाद्वीप की स्थिरता और समृद्धि के लिए भी सकारात्मक साबित होगा।

भारत-चीन संबंधों की जटिलता को देखते हुए यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह यात्रा किसी बड़े समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगी,लेकिन यह निश्चित है कि इससे संवाद की राह खुली रहेगी और यही किसी भी जटिल रिश्ते के समाधान की पहली शर्त है।