मुंबई,18 दिसंबर (युआईटीवी)- भारत में डिजिटल लेनदेन अब केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बनता जा रहा है। खासकर दुकानों,ढाबों,किराना स्टोर्स,दवा दुकानों और यात्रा सेवाओं में यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) का इस्तेमाल जिस रफ्तार से बढ़ा है,उसने देश की भुगतान संस्कृति को पूरी तरह बदल दिया है। जुलाई से सितंबर की तिमाही के आँकड़ें इस बदलाव की स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं,जहाँ यूपीआई के जरिए हुए लेन-देन ने न केवल संख्या में रिकॉर्ड बनाया,बल्कि डिजिटल अर्थव्यवस्था की गहराई को भी दर्शाया।
जुलाई से सितंबर के बीच यूपीआई के माध्यम से कुल 59.33 अरब ट्रांजैक्शन किए गए। यह आँकड़ा पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 33.5 प्रतिशत ज्यादा है। इतने बड़े पैमाने पर लेन-देन यह दिखाता है कि अब डिजिटल भुगतान केवल शहरी इलाकों तक सीमित नहीं रह गया है,बल्कि कस्बों और गाँवों तक भी तेजी से पहुँच रहा है। इस अवधि में कुल 74.84 लाख करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ,जो साल-दर-साल आधार पर 21 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है। लेन-देन की संख्या और रकम दोनों में यह बढ़ोतरी भारत में डिजिटल पेमेंट्स के प्रति बढ़ते भरोसे का संकेत मानी जा रही है।
वर्ल्डलाइन इंडिया की ताजा रिपोर्ट के अनुसार,देश में सक्रिय यूपीआई क्यूआर कोड्स की संख्या अब 70.9 करोड़ तक पहुँच चुकी है। जुलाई 2024 से अब तक इसमें 21 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यूपीआई क्यूआर कोड अब केवल बड़े रिटेल स्टोर्स या मॉल तक सीमित नहीं हैं। किराना दुकानों, डिकल स्टोर्स,सब्जी मंडियों,बस और रेलवे स्टेशनों से लेकर छोटे गाँवों तक इनका इस्तेमाल आम हो चुका है। डिजिटल भुगतान की यह व्यापक पहुँच बताती है कि भारत में टेक्नोलॉजी किस तरह आम लोगों की जिंदगी को आसान बना रही है।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि यूपीआई का इस्तेमाल अब खास तौर पर दुकानों पर भुगतान यानी पर्सन टू मर्चेंट (पी2एम) ट्रांजैक्शन के लिए ज्यादा हो रहा है। दुकानों पर होने वाले यूपीआई लेन-देन में 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है और इनकी संख्या बढ़कर 37.46 अरब ट्रांजैक्शन तक पहुँच गई है। यह बदलाव इस बात का संकेत है कि उपभोक्ता अब कैश या कार्ड की जगह सीधे मोबाइल फोन से भुगतान को प्राथमिकता दे रहे हैं। वहीं,लोगों के बीच होने वाले लेन-देन यानी पर्सन टू पर्सन (पी2पी) ट्रांजैक्शन में भी 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इनकी संख्या 21.65 अरब तक पहुँच गई है।
दिलचस्प बात यह है कि जहाँ लेन-देन की संख्या तेजी से बढ़ रही है,वहीं प्रति ट्रांजैक्शन औसत रकम में कमी आई है। औसतन एक यूपीआई ट्रांजैक्शन की राशि घटकर 1,262 रुपये रह गई है,जबकि पहले यह 1,363 रुपये थी। यह गिरावट इस बात की ओर इशारा करती है कि लोग अब यूपीआई का इस्तेमाल बड़ी रकम के साथ-साथ छोटी-छोटी खरीदारी के लिए भी बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। चाय,नाश्ता,ऑटो या टैक्सी का किराया,दवाइयाँ,किराना सामान और रोजमर्रा की अन्य जरूरतें अब ज्यादातर यूपीआई के जरिए ही चुकाई जा रही हैं।
डिजिटल भुगतान के इस बढ़ते चलन के साथ-साथ भारत में पॉइंट ऑफ सेल यानी पीओएस मशीनों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक,पीओएस मशीनों की संख्या 35 प्रतिशत बढ़कर 12.12 मिलियन तक पहुँच गई है। हालाँकि,भारत क्यूआर की संख्या में हल्की गिरावट दर्ज की गई है। इसकी मुख्य वजह यह मानी जा रही है कि व्यापारी और ग्राहक अब अलग-अलग भुगतान माध्यमों के बजाय यूपीआई क्यूआर कोड को ज्यादा सुविधाजनक और सार्वभौमिक विकल्प के रूप में अपना रहे हैं।
क्रेडिट और डेबिट कार्ड के इस्तेमाल में भी इस दौरान दिलचस्प बदलाव देखने को मिला है। क्रेडिट कार्ड से होने वाले लेन-देन में 26 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है,जो यह दर्शाता है कि बड़े खर्च और ईएमआई आधारित खरीदारी के लिए क्रेडिट कार्ड अब भी प्रासंगिक बने हुए हैं। वहीं,डेबिट कार्ड से होने वाले लेन-देन में 22 प्रतिशत की कमी आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह यह है कि छोटी रकम के भुगतान के लिए लोग अब एटीएम से नकदी निकालने या डेबिट कार्ड स्वाइप करने के बजाय सीधे यूपीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं।
मोबाइल और टैप आधारित पेमेंट्स भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। खासकर शहरी इलाकों में,मेट्रो शहरों,टैक्सी सेवाओं,मेट्रो रेल और फूड डिलीवरी जैसी सेवाओं में लोग बिना कार्ड स्वाइप किए मोबाइल फोन से भुगतान करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। एनएफसी और टैप-टू-पे तकनीक ने भुगतान को और भी तेज और सहज बना दिया है,जिससे उपभोक्ताओं का अनुभव बेहतर हुआ है।
डिजिटल भुगतान के इस बढ़ते दायरे का असर केवल उपभोक्ताओं तक सीमित नहीं है,बल्कि छोटे व्यापारियों और दुकानदारों को भी इसका बड़ा फायदा मिल रहा है। यूपीआई क्यूआर कोड के जरिए बिना किसी महँगे उपकरण के भुगतान स्वीकार करना संभव हो गया है। इससे छोटे व्यापारियों की औपचारिक अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ी है और लेन-देन में पारदर्शिता आई है।
आने वाले समय में यूपीआई का इस्तेमाल और भी व्यापक होने की संभावना जताई जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के अंत और 2026 की शुरुआत में इंटरऑपरेबल क्यूआर कोड को आम इस्तेमाल में लाया जाएगा। इसके लागू होने के बाद पेट्रोल पंप,अस्पताल,सार्वजनिक सेवाएँ,टोल प्लाजा और यात्रा से जुड़े स्थानों पर एक ही क्यूआर कोड से भुगतान संभव हो सकेगा। इससे उपभोक्ताओं और व्यापारियों दोनों के लिए भुगतान प्रक्रिया और सरल हो जाएगी।
जुलाई से सितंबर की तिमाही के आँकड़े यह साफ संकेत देते हैं कि भारत तेजी से कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। यूपीआई ने न केवल भुगतान को आसान बनाया है,बल्कि डिजिटल समावेशन को भी नई गति दी है। छोटे भुगतानों से लेकर बड़े लेन-देन तक यूपीआई की बढ़ती पकड़ यह साबित करती है कि भारत में डिजिटल क्रांति अब सिर्फ एक नीति नहीं,बल्कि आम जनजीवन की सच्चाई बन चुकी है।
