मनीष तिवारी

लोकसभा में चुनाव सुधार पर व्यापक मंथन: ईवीएम,वोटर लिस्ट और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठे सवाल

नई दिल्ली,9 दिसंबर (युआईटीवी)- संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार का दिन चुनाव सुधारों पर गंभीर और संवेदनशील चर्चा के नाम रहा। लोकसभा में चुनाव सुधार से जुड़े अनेक मुद्दों—वोटर लिस्ट पुनरीक्षण (एसआईआर),इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता और राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे—पर विस्तृत बहस हुई। चर्चा की शुरुआत कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने की। इससे पहले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सभी सदस्यों से आग्रह किया कि बहस के दौरान आरोप-प्रत्यारोप से बचते हुए विषय की गंभीरता को ध्यान में रखकर रचनात्मक सुझाव दें,ताकि चुनाव सुधारों की दिशा में सार्थक प्रगति हो सके।

चर्चा के दौरान मनीष तिवारी ने लोकतंत्र की मूल आत्मा को रेखांकित करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाता और राजनीतिक दल सबसे महत्वपूर्ण भागीदार हैं। उन्होंने कहा कि चुनावों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु एक ऐसे तटस्थ,स्वतंत्र और सक्षम संस्थान की आवश्यकता महसूस की गई थी,जिसके चलते आजाद भारत में चुनाव आयोग का गठन हुआ। तिवारी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि देश में बड़े स्तर पर चुनाव सुधारों का इतिहास देखा जाए तो राजीव गांधी सरकार का योगदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाएगा,क्योंकि उसी सरकार ने 18 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों को वोट देने का अधिकार देकर भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे को व्यापक दिशा दी थी।

हालाँकि,तिवारी ने चुनाव आयोग की वर्तमान निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न उठाए। उनका कहना था कि आज चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया और उसके अधिकार क्षेत्र पर बहस होना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि चुनाव सुधार की पहली और प्रमुख आवश्यकता 2023 में बने उस कानून में संशोधन की है,जिसके तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति होती है। उनके अनुसार इस कानून के तहत बनी समिति में बदलाव होना चाहिए और उसमें सरकार तथा विपक्ष के दो-दो प्रतिनिधि शामिल किए जाने चाहिए। इसके अलावा उन्होंने इस समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को शामिल करने की भी माँग की,ताकि नियुक्ति प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता बढ़ सके।

वोटर लिस्ट पुनरीक्षण—जिसे एसआईआर कहा जाता है—पर चर्चा करते हुए तिवारी ने कहा कि देश के कई राज्यों में एसआईआर की प्रक्रिया जारी है,लेकिन चुनाव आयोग के पास इसे कराने का कानूनी अधिकार है या नहीं,इस पर स्पष्टता ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि आयोग ने संविधान के सेक्शन 21 का हवाला देते हुए एसआईआर को वैध बताया है,लेकिन पूरे सेक्शन को पढ़ने पर इसमें ऐसा कोई प्रावधान दिखाई नहीं देता। उन्होंने दोहराया कि न तो संविधान में और न ही कानून में एसआईआर की स्पष्ट अनुमति लिखी गई है।

उन्होंने यह भी कहा कि वोटर लिस्ट से जुड़े सुधारों और खामियों को ठीक करने के लिए चुनाव आयोग को एक हथियार के रूप में एसआईआर दिया गया,जबकि कानूनी रूप से इसकी भूमिका संदेह के घेरे में है। उन्होंने कहा कि यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र की वोटर लिस्ट में त्रुटि है,तो उसे ठीक करने के लिए आयोग को लिखित कारण बताना चाहिए और फिर उसके आधार पर ही पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए,लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि किन-किन निर्वाचन क्षेत्रों में कैसी समस्याएँ थीं और किस कारण यह पुनरीक्षण आवश्यक समझा गया।

तिवारी ने माँग की कि सरकार सदन के पटल पर यह जानकारी रखे कि किन क्षेत्रों में एसआईआर कराया गया,उसमें क्या खामियाँ पाई गईं और पुनरीक्षण का निर्णय किन तथ्यों के आधार पर लिया गया। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि चुनाव सुधार की प्रक्रिया केवल औपचारिकता न बने,बल्कि उसमें पारदर्शिता,जवाबदेही और विश्वास कायम रहे।

ईवीएम की विश्वसनीयता पर भी चर्चा के दौरान कई सवाल उठे। हालाँकि,तिवारी का मुख्य फोकस नियुक्ति प्रक्रिया और एसआईआर पर रहा,लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव में पारदर्शिता के लिए तकनीक पर निर्भरता बढ़ाना एक सकारात्मक कदम है,परंतु इसके साथ-साथ उसकी विश्वसनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार और आयोग की जिम्मेदारी है।

लोकसभा में चल रही इस चर्चा को लोकसभा अध्यक्ष ने भी अत्यंत महत्वपूर्ण बताया,क्योंकि देश की चुनाव प्रणाली में किसी भी सुधार का प्रभाव सीधे लोकतंत्र की नींव पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह सदन लाखों-करोड़ों मतदाताओं की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए चुनाव सुधारों पर चर्चा निर्भीक,निष्पक्ष और व्यापक होनी चाहिए।

बहस के दौरान सदन का वातावरण अपेक्षाकृत शांत और केंद्रित रहा,जो यह दर्शाता है कि सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हैं। कई अन्य सदस्यों ने भी चुनाव सुधारों पर विचार रखे,लेकिन चर्चा का प्रारंभिक स्वर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने ही सेट किया।

अब जबकि बहस जारी है,यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और विपक्ष इस संवेदनशील मुद्दे पर किस दिशा में आगे बढ़ते हैं। चुनाव सुधारों पर यह गंभीर चर्चा भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम है,जो भविष्य में मतदाताओं के विश्वास,चुनाव आयोग की निष्पक्षता और चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को और मजबूत करेगा।