नई दिल्ली,4 दिसंबर (युआईटीवी)- ऑस्ट्रेलिया की राजनीति इन दिनों अचानक गर्माई हुई है और इसकी वजह है पॉलिन हैनसन तथा उनकी पार्टी वन नेशन की बढ़ती लोकप्रियता। हैनसन का नाम हमेशा से इमिग्रेशन विरोधी बयानों,कड़े रुख और विवादों के साथ जुड़ा रहा है,लेकिन इस बार कहानी कुछ अलग है। वह सिर्फ किसी बयान या प्रदर्शन को लेकर नहीं,बल्कि अपनी राजनीतिक ताकत में अचानक आई तेजी की वजह से सुर्खियों में हैं। ऑस्ट्रेलिया में किया गया नया राजनीतिक सर्वे यही संकेत दे रहा है कि देश की जनभावनाओं में एक बड़ा बदलाव हो रहा है।
हाल ही में प्रतिष्ठित सर्वे एजेंसी रॉय मॉर्गन ने पूरे ऑस्ट्रेलिया में 5,248 लोगों से राजनीतिक पसंद के बारे में सवाल पूछा। इस सर्वे का परिणाम सभी को हैरान कर देने वाला था। वन नेशन को 14 प्रतिशत जनसमर्थन मिला,जो पिछले 25 से 27 वर्षों में पार्टी के लिए सबसे बड़ी छलांग मानी जा रही है। यह न सिर्फ हैनसन की राजनीति की वापसी है,बल्कि ऐसे समय में हो रही है,जब आर्थिक दबाव और राजनीतिक अस्थिरता आम मतदाताओं को नई दिशा तलाशने के लिए मजबूर कर रही है।
वन नेशन के समर्थन में इस तेज़ उछाल के पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं। ऑस्ट्रेलिया फिलहाल गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। महँगाई लगातार बढ़ रही है,किराए आसमान छू रहे हैं,घर खरीदना पहले से कहीं मुश्किल हो गया है और दैनिक जीवन की लागत लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है। इसी बीच देश में आप्रवासन में वृद्धि भी एक बड़ा मुद्दा बन गया है,जिसे लेकर जनता के एक वर्ग में असंतोष बढ़ रहा है। वन नेशन ने इन्हीं मुद्दों को अपना मुख्य राजनीतिक हथियार बना लिया है। पार्टी महँगाई,बढ़ते आप्रवासन और सरकार की आर्थिक नीतियों को विफल बताते हुए वोटरों में तेजी से पैठ बना रही है।
ऑस्ट्रेलियन डॉट कॉम डॉट एयू की एक रिपोर्ट के मुताबिक,वहाँ की रिजर्व बैंक गवर्नर मिशेल बुलॉक ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि अगर राजकोषीय घाटा बढ़ा तो ब्याज दरें और बढ़ सकती हैं। ब्याज दरों के बढ़ने का सीधा असर घर खरीदने या व्यवसाय चलाने वालों पर पड़ता है,जिससे आम लोगों की चिंताएँ और गहरी होती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में वन नेशन खुद को ‘जनता की आवाज़’ के रूप में पेश कर रही है और आर्थिक असुरक्षा से जूझ रहे लोगों का विश्वास जीतने में सफल होती दिख रही है।
पॉलिन हैनसन की हालिया गतिविधियाँ भी उनकी लोकप्रियता बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। कुछ सप्ताह पहले उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई संसद में बुर्का पहनकर प्रवेश किया,जिसके बाद संसद में भारी हँगामा हुआ और उन्हें अस्थायी तौर पर निलंबित भी किया गया। उन्होंने दावा किया कि यह प्रदर्शन चेहरे को ढकने वाले कपड़ों पर प्रतिबंध लगाने की माँग को उजागर करने के लिए था,जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बताया जाता है। यह कदम विवादित था,आलोचना भी हुई,लेकिन राजनीतिक रूप से इसका प्रभाव उलटा पड़ा,उनके समर्थकों की संख्या और तेजी से बढ़ने लगी।
ऑस्ट्रेलियाई राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस बढ़ते समर्थन की एक और वजह है बड़ी राजनीतिक पार्टियों का कमजोर प्रदर्शन। जहाँ सत्ता में मौजूद पार्टियाँ बढ़ती महँगाई से निपटने में संघर्ष कर रही हैं,वहीं विपक्षी दल भी कोई ठोस वैकल्पिक समाधान देने में असफल नजर आ रहे हैं। ऐसे माहौल में वन नेशन खुद को एक “सीधे बोलने वाली,मजबूत और सख्त” पार्टी के रूप में पेश कर रही है,जो उन मुद्दों को उठा रही है जिन्हें लेकर आम लोग चिंतित हैं।
आने वाले चुनावों के संदर्भ में यह ट्रेंड बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अगर वन नेशन का समर्थन इसी रफ्तार से बढ़ता रहा,तो पार्टी संसद के ऊपरी सदन—सिनेट में एक बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभर सकती है। इससे नीतिगत फैसलों में उनका दबदबा बढ़ेगा और सरकार को कई मोर्चों पर उनसे बातचीत और समझौता करना पड़ सकता है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया में समाज के एक हिस्से में यह भावना बढ़ रही है कि पारंपरिक पार्टियाँ उनकी चिंताओं को नज़रअंदाज़ कर रही हैं। आर्थिक संघर्षों के बीच जनता एक ऐसे विकल्प की तलाश में है जो उनकी बात खुलकर कहे और कठोर कदम उठाने से न डरे। वन नेशन और पॉलिन हैनसन इसी भावनात्मक लहर पर सवार होकर आगे बढ़ रहे हैं।
हालाँकि,यह भी सच है कि हैनसन की राजनीति हमेशा से विवादों में घिरी रही है। उनके बयान कई बार नस्लवादी और भेदभावपूर्ण कहे गए हैं। उनकी बुर्का-विरोधी अभियान और प्रवासन को सीमित करने की मांग ने पहले भी बहस छेड़ी है,लेकिन वर्तमान आर्थिक माहौल में उनके ये मुद्दे काफी लोगों के साथ जुड़ते दिखाई दे रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति ऑस्ट्रेलिया के लिए एक चेतावनी भी है। अगर आर्थिक असंतुलन,महँगाई और आवास संकट पर काबू नहीं पाया गया,तो कट्टरपंथी,ध्रुवीकरण वाली राजनीति और मजबूत हो सकती है। वन नेशन की बढ़ती ताकत इस बात का संकेत है कि न केवल मतदाता,बल्कि पूरा राजनीतिक परिदृश्य एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है।
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वन नेशन इस रफ्तार को बनाए रख पाती है या मुख्यधारा की पार्टियाँ नए रणनीतिक बदलावों के माध्यम से मतदाताओं को वापस अपनी ओर मोड़ने में सफल होती हैं,लेकिन फिलहाल इतना तय दिख रहा है कि ऑस्ट्रेलिया की राजनीति में पॉलिन हैनसन और वन नेशन एक बार फिर केंद्रीय भूमिका में आ चुके हैं और उनका प्रभाव आने वाले चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है।

