नई दिल्ली,22 अगस्त (युआईटीवी)- भारत में ऑनलाइन गेमिंग का दायरा पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। लाखों यूजर्स रोज़ाना अपने स्मार्टफोन के ज़रिए फैंटेसी स्पोर्ट्स,बोर्ड गेम्स और कैज़ुअल गेमिंग का हिस्सा बनते हैं,लेकिन इस बढ़ती लोकप्रियता के साथ-साथ लत,वित्तीय नुकसान और अपराधों की चिंताओं ने भी जोर पकड़ लिया था। इसी पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार ने हाल ही में ‘प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025’ संसद में पारित कर दिया,जिसने भारत की रियल मनी गेमिंग (आरएमजी) इंडस्ट्री में हलचल मचा दी है। इस कानून के लागू होते ही देश की प्रमुख आरएमजी कंपनियों – ड्रीम स्पोर्ट्स,मोबाइल प्रीमियर लीग (एमपीएल),गेम्सक्राफ्ट और ज़ूपी ने अपने प्लेटफॉर्म पर चल रहे सभी पेड गेम्स और रियल मनी कॉन्टेस्ट को बंद कर दिया है।
इस नए कानून के तहत अब किसी भी तरह का ऑनलाइन गेम,जिसमें खिलाड़ी वित्तीय लाभ की उम्मीद में पैसा लगाते हैं,गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है। यानी कि ‘पे टू प्ले’ वाले फैंटेसी स्पोर्ट्स कॉन्टेस्ट,ऑनलाइन कैश लूडो,पोकर या अन्य रियल मनी गेम्स अब पूरी तरह प्रतिबंधित होंगे। सरकार का तर्क है कि इस तरह के खेल न सिर्फ लोगों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुँचाते हैं,बल्कि उनमें जुआ खेलने जैसी प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं और कई बार अपराध से भी जुड़े होते हैं।
सबसे पहले ड्रीम स्पोर्ट्स ने अपने यूजर्स को नोटिस जारी कर कहा कि वह अपने नए लॉन्च किए गए दो ऐप्स -ड्रीम पिक्स और ड्रीम प्ले पर सभी पेड कॉन्टेस्ट को रोक रही है। कंपनी ने साफ किया कि यूजर्स का अकाउंट बैलेंस सुरक्षित है और वह ड्रीम11 ऐप के ज़रिए कभी भी पैसे निकाल सकते हैं। ड्रीम स्पोर्ट्स,जो फैंटेसी स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में सबसे बड़ा नाम माना जाता है,ने हाल ही में इन दोनों ऐप्स की शुरुआत की थी ताकि यूजर्स को फैंटेसी और कैज़ुअल दोनों तरह के रियल मनी गेम्स का अनुभव मिल सके,लेकिन कानून के लागू होते ही कंपनी ने अपनी रणनीति बदल ली और अब केवल फ्री गेमिंग अनुभव पर फोकस करेगी।
दूसरी ओर,बोर्ड गेम्स पर केंद्रित कंपनी ज़ूपी ने भी अपने प्लेटफॉर्म पर सभी पेड गेम्स को सस्पेंड करने की घोषणा की। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि ज़ूपी पूरी तरह से सक्रिय रहेगा और यूजर्स अपने पसंदीदा फ्री गेम्स जैसे लूडो सुप्रीम,लूडो टर्बो,स्नेक्स एंड लैडर्स और ट्रंप कार्ड मेनिया का आनंद ले सकेंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पेड गेम्स पर रोक कानून का पालन करने के लिए है,जबकि मुफ्त गेम्स पहले की तरह उपलब्ध रहेंगे।
इसी तरह,मोबाइल प्रीमियर लीग (एमपीएल) और गेम्सक्राफ्ट जैसी अन्य बड़ी आरएमजी कंपनियों ने भी अपने सभी पेड गेमिंग ऑफरिंग को बंद कर दिया है। दोनों कंपनियों ने यूजर्स को आश्वस्त किया है कि उनके अकाउंट्स में मौजूद शेष राशि को बिना किसी परेशानी के आसानी से निकाला जा सकता है। इन कंपनियों का कहना है कि वे नए कानून का सम्मान करती हैं और यूजर्स को सुरक्षित एवं मनोरंजक गेमिंग अनुभव देने की दिशा में आगे बढ़ेंगी।
सरकार ने बिल पेश करते समय साफ कहा था कि ऑनलाइन मनी गेमिंग की वजह से युवाओं और बच्चों में लत बढ़ रही है,कई परिवार आर्थिक संकट में फँस जाते हैं और धोखाधड़ी या अपराध जैसी घटनाएँ भी बढ़ती हैं। बिल में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसे गेम्स की पेशकश करता है,मदद करता है,बढ़ावा देता है या इसमें शामिल होता है,तो उसे 3 साल की कैद और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इतना ही नहीं,ऐसे खेलों के विज्ञापन,प्रमोशन या स्पॉन्सरशिप पर भी 2 साल की जेल या 50 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। अधिकारियों को यह अधिकार भी दिया गया है कि वे किसी भी संदिग्ध परिसर की तलाशी ले सकते हैं और बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम गेमिंग इंडस्ट्री के लिए झटका जरूर है,लेकिन लंबे समय में यह समाज के हित में साबित हो सकता है। पिछले कुछ सालों में ऐसे कई मामले सामने आए थे,जहाँ युवा कर्ज में डूब गए या अपराध के रास्ते पर चले गए क्योंकि वे रियल मनी गेमिंग में भारी नुकसान उठा बैठे थे। हालाँकि,इंडस्ट्री के अंदर से यह आवाज भी उठ रही है कि सरकार को पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बजाय इसे नियंत्रित और नियामित करना चाहिए था,ताकि जिम्मेदार गेमिंग को बढ़ावा मिले और कंपनियों को भी काम करने का अवसर मिले।
फिलहाल,इस नए कानून ने पूरे आरएमजी सेक्टर का परिदृश्य बदल दिया है। जहाँ पहले इन कंपनियों की कमाई का बड़ा हिस्सा पेड गेम्स और रियल मनी कॉन्टेस्ट से आता था,वहीं अब उन्हें मुफ्त गेमिंग और अन्य नवाचारों की ओर ध्यान देना होगा। कंपनियों के सामने चुनौती यह है कि वे किस तरह से अपने यूजर्स को जोड़कर रखें और नए बिज़नेस मॉडल तैयार करें।
निस्संदेह, ‘प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025’ ने भारत की गेमिंग इंडस्ट्री में नई बहस छेड़ दी है। एक ओर सरकार इसे सामाजिक हित में बता रही है,तो दूसरी ओर इंडस्ट्री इससे नुकसान और रोजगार पर खतरे की बात कर रही है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह कानून ऑनलाइन गेमिंग के परिदृश्य को किस हद तक बदलता है और कंपनियाँ किस तरह इससे उबरकर अपने लिए नई राहें तलाशती हैं।