काबुल,29 अक्टूबर (युआईटीवी)- अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। मंगलवार को अफगानिस्तान ने इस्लामाबाद को एक सख्त चेतावनी जारी करते हुए कहा कि यदि भविष्य में पाकिस्तान ने अफगान क्षेत्र पर कोई भी सैन्य कार्रवाई की,तो उसका मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा। काबुल ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अब सीमा पार से आने वाले हमलों को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। यह चेतावनी ऐसे समय में आई है,जब तुर्की में दोनों देशों के बीच तीन दिनों तक चली वार्ता विफल हो गई और किसी समझौते पर सहमति नहीं बन पाई।
अफगानिस्तान के प्रमुख मीडिया आउटलेट एरियाना न्यूज ने अपने सूत्रों के हवाले से बताया कि तुर्की में आयोजित वार्ता के दौरान पाकिस्तान ने कुछ “अनुचित और अस्वीकार्य” माँगें रखीं। इनमें सबसे प्रमुख माँग यह थी कि अफगानिस्तान अपनी धरती से उन सशस्त्र समूहों को नियंत्रित करे या वापस बुलाए,जो कथित तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ सक्रिय हैं। काबुल ने पाकिस्तान की इस माँग को सिरे से खारिज कर दिया। रिपोर्ट के मुताबिक,जब पाकिस्तान ने यह संकेत दिया कि वह सीमा पार से आतंकवाद के खिलाफ हवाई हमले कर सकता है,तो अफगान प्रतिनिधिमंडल ने सख्त लहजे में कहा कि अफगान सेना किसी भी ऐसे हमले का जवाब देने के लिए तैयार है और अब पाकिस्तान को “सीमा पार आक्रामकता” का स्वाद चखाया जाएगा।
अफगान गृह मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल मतीन कानी ने इस संदर्भ में कहा, “अगर पाकिस्तान ने हमारे देश पर कोई भी हमला किया,तो अफगान सुरक्षा बल निर्णायक जवाब देंगे। यह न केवल पाकिस्तान के लिए एक सबक होगा,बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लिए भी एक संदेश होगा कि अफगान राष्ट्र अपनी संप्रभुता से कभी समझौता नहीं करता।” उन्होंने आगे कहा कि भले ही अफगानिस्तान के पास परमाणु हथियार नहीं हैं,लेकिन यह देश अपने साहस और दृढ़ता के बल पर दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं को चुनौती देता आया है। अब्दुल मतीन कानी ने अमेरिका और नाटो का उल्लेख करते हुए कहा, “20 वर्षों के युद्ध के बावजूद न तो नाटो और न ही अमेरिका अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में ले पाया। अफगान जनता कभी किसी के आगे नहीं झुकी और न ही झुकेगी।”
यह बयान ऐसे समय में आया है,जब हाल ही में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में हवाई हमले किए थे,जिनमें कई नागरिकों के मारे जाने की खबरें आईं। इस कार्रवाई के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते और तनावपूर्ण हो गए हैं। तुर्की में हाल ही में आयोजित वार्ता को इन तनावों को कम करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था,लेकिन अब यह प्रयास भी विफल हो गया है।
इस्तांबुल में तीन दिनों तक चली यह वार्ता क्षेत्रीय मध्यस्थों और कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँच सकी। खामा प्रेस ने जियो न्यूज की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच मतभेद इतने गहरे हैं कि किसी भी साझा घोषणा या समझौते की संभावना खत्म हो गई। एक वरिष्ठ मध्यस्थ ने बताया कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों अपने-अपने “राष्ट्रीय सुरक्षा” के नजरिए से समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
पाकिस्तान की ओर से प्रतिनिधियों ने इस वार्ता के दौरान बार-बार इस बात पर जोर दिया कि अफगानिस्तान अपनी धरती से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे आतंकी संगठनों के ठिकानों को खत्म करे और उन्हें पाकिस्तान में घुसपैठ करने से रोके। इस्लामाबाद ने कहा कि टीटीपी विद्रोह उसके राष्ट्रीय हितों और नागरिकों की सुरक्षा के लिए “सीधा खतरा” है। पाकिस्तानी अधिकारियों ने आरोप लगाया कि अफगान सरकार टीटीपी के खिलाफ पर्याप्त कार्रवाई नहीं कर रही और इन आतंकियों को “मौन समर्थन” दे रही है।
दूसरी ओर,अफगान पक्ष का कहना है कि पाकिस्तान अपनी आंतरिक असफलताओं का दोष काबुल पर थोप रहा है। अफगान प्रतिनिधियों का तर्क है कि टीटीपी की जड़ें पाकिस्तान के अंदर हैं और अफगानिस्तान को दोषी ठहराना राजनीतिक तौर पर गलत है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अपनी सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी नीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है,न कि पड़ोसी देशों को निशाना बनाने की।
काबुल का यह भी कहना है कि पाकिस्तान बार-बार अफगानिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन कर रहा है। अफगान अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि सीमा पार से किए गए हवाई हमले अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हैं और यदि पाकिस्तान ने भविष्य में इस तरह की कार्रवाई की,तो अफगानिस्तान “पूरी ताकत से” जवाब देगा। अफगान सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि सभी सीमा चौकियों और वायु रक्षा इकाइयों को उच्च सतर्कता पर रखा गया है।
क्षेत्रीय विश्लेषकों का मानना है कि दोनों देशों के बीच यह टकराव दक्षिण एशिया के पहले से ही अस्थिर भू-राजनीतिक माहौल को और गंभीर बना सकता है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा,जिसे डूरंड रेखा कहा जाता है,दशकों से विवाद का विषय रही है। इस सीमा पर अक्सर झड़पें होती रही हैं,जिनमें सैनिकों और नागरिकों दोनों की जान जाती है। अब जब दोनों देशों में सैन्य तैयारी बढ़ रही है,तो खतरा है कि यह सीमा संघर्ष एक व्यापक सैन्य टकराव का रूप ले सकता है।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि तुर्की की वार्ता का विफल होना इस बात का संकेत है कि फिलहाल दोनों देशों के बीच भरोसे का माहौल नहीं है। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार और पाकिस्तान के बीच शुरुआती महीनों में जो सहयोग दिखा था,अब वह धीरे-धीरे अविश्वास में बदल गया है। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तालिबान सरकार टीटीपी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएगी,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दूसरी ओर,तालिबान नेताओं को लगता है कि पाकिस्तान उनकी संप्रभुता का सम्मान नहीं कर रहा।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस बढ़ते तनाव पर चिंता जताई जा रही है। संयुक्त राष्ट्र और कुछ पश्चिमी देशों ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और बातचीत की प्रक्रिया जारी रखने की अपील की है। हालाँकि,इस समय दोनों की बयानबाज़ी से लगता है कि स्थिति जल्दी सामान्य नहीं होने वाली।
अफगानिस्तान के हालिया बयान ने साफ कर दिया है कि वह अब पाकिस्तान की किसी भी सैन्य कार्रवाई को “सीमा पार आतंकवाद” के रूप में देखेगा और उसका जवाब देना अपनी “राष्ट्रीय प्रतिष्ठा” का सवाल मानेगा। वहीं पाकिस्तान की सरकार इस्लामाबाद में बढ़ते आतंकी हमलों के दबाव में है और घरेलू स्तर पर टीटीपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई दिखाने की कोशिश कर रही है।
तुर्की वार्ता की विफलता के साथ ही यह आशंका और गहरी हो गई है कि आने वाले हफ्तों में डूरंड रेखा के आसपास फिर से हिंसा भड़क सकती है। यदि ऐसा हुआ,तो यह न केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है। अफगानिस्तान की चेतावनी स्पष्ट है कि अब हर हमले का जवाब दिया जाएगा और यह जवाब पाकिस्तान के लिए “एक सबक और दुनिया के लिए एक संदेश” होगा कि अफगान राष्ट्र अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार है।

