न्यूयॉर्क,17 अक्टूबर (युआईटीवी)- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक नई हलचल देखने को मिली है,जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया कि वह जल्द ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात कर सकते हैं। ट्रंप ने कहा कि इस बैठक का उद्देश्य रूस के साथ कूटनीतिक संबंधों को सुधारना और यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की दिशा में ठोस पहल करना होगा। हालाँकि,इस मुलाकात से पहले उन्होंने एक ऐसा बयान दिया है,जिसने वॉशिंगटन में राजनीतिक बहस को और तेज कर दिया है। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि वह रिपब्लिकन नेताओं से मॉस्को से तेल खरीदने वाले देशों पर कठोर दंड लगाने वाले विधेयक को रोकने का अनुरोध करेंगे,क्योंकि फिलहाल यह “सही समय” नहीं है।
ट्रंप ने अपने बयान में कहा, “सीनेट में रिपब्लिकन नेता जॉन थुन द्वारा प्रस्तावित 500 प्रतिशत दंडात्मक टैरिफ विधेयक को आगे बढ़ाने का यह उपयुक्त समय नहीं है। मैं उनसे (जॉन थुन) और सदन के अध्यक्ष माइक जॉनसन से बात करूँगा। हम इस पर सही निर्णय लेंगे।” राष्ट्रपति ट्रंप ने यह भी जोड़ा कि जॉन थुन और अन्य विधायकों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि वह यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए पुतिन के साथ कूटनीतिक प्रयास कर रहे हैं।
यह बयान ट्रंप ने व्लादिमीर पुतिन से फोन पर हुई बातचीत के तुरंत बाद दिया,जिसने इस संभावित बैठक को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। पुतिन और ट्रंप के बीच हुई इस बातचीत को दोनों देशों के बीच जमी बर्फ पिघलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार,दोनों नेता अगले दो हफ्तों में हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में मुलाकात कर सकते हैं।
राष्ट्रपति ट्रंप ने इस संभावित बैठक को लेकर कहा, “देखते हैं क्या होता है,लेकिन मुझे लगता है कि यह मुलाकात बहुत सकारात्मक हो सकती है। हम शांति चाहते हैं और अगर इस बैठक से यूक्रेन में जारी युद्ध समाप्त करने की दिशा में कुछ प्रगति होती है,तो यह पूरी दुनिया के लिए अच्छा संकेत होगा।”
इस बीच,अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन नेता जॉन थुन ने कुछ दिन पहले घोषणा की थी कि वह रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 500 प्रतिशत दंडात्मक टैरिफ लगाने के विधेयक को आगे बढ़ाने जा रहे हैं। थुन के अनुसार,यह प्रस्ताव सीनेटर लिंडसे ग्राहम के साथ मिलकर तैयार किया गया है और इसे दोनों पार्टियों — रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स का समर्थन प्राप्त है। इस विधेयक के समर्थन में सीनेट के 84 और प्रतिनिधि सभा के 100 सदस्य बताए जा रहे हैं।
अगर यह विधेयक पारित होता,तो इसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर महसूस किया जाता क्योंकि रूस से तेल खरीदने वाले प्रमुख देशों में भारत,चीन,तुर्की और यूरोपीय संघ के कई देश शामिल हैं। इस विधेयक के तहत अमेरिका राष्ट्रपति को विवेकाधिकार देता है कि वह चाहें तो इन टैरिफ को लागू करें या कुछ देशों को इससे छूट दें। हालाँकि,इसके मूल प्रावधानों के अनुसार,इसे सभी देशों पर समान रूप से लागू किया जाना था।
विश्लेषकों का मानना है कि इस विधेयक के लागू होने से वाशिंगटन की कूटनीतिक स्थिति जटिल हो सकती थी,क्योंकि रूस से ऊर्जा आयात करने वाले देशों के साथ अमेरिका के संबंध बिगड़ सकते थे। खासकर यूरोपीय संघ,जो अब भी रूसी गैस और तेल पर काफी हद तक निर्भर है,इस कानून से नाराज हो सकता था। इसके अलावा,चीन और तुर्की जैसे देशों के साथ अमेरिका के आर्थिक और रणनीतिक रिश्तों पर भी इसका असर पड़ सकता था।
अमेरिकी व्यापार विभाग के आँकड़ों के अनुसार, 2023 में अमेरिका और रूस के बीच लगभग 5.2 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था,जिसमें से 2.4 अरब डॉलर का व्यापार घाटा अमेरिका के पक्ष में नहीं था। ऐसे में अगर ट्रंप इस विधेयक को आगे बढ़ाने देते,तो अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं पर भी इसका आर्थिक दबाव पड़ता।
राष्ट्रपति ट्रंप के इस रुख से यह संकेत मिल रहा है कि वह रूस के साथ संबंध सुधारने के लिए तैयार हैं। ट्रंप प्रशासन के आलोचकों का कहना है कि उनका यह कदम यूक्रेन युद्ध पर रूस की जिम्मेदारी को नजरअंदाज करने जैसा है,जबकि समर्थकों का मानना है कि यह कदम अमेरिका और रूस के बीच तनाव कम करने और वैश्विक ऊर्जा संकट को नियंत्रित करने की दिशा में एक व्यवहारिक पहल है।
ट्रंप और पुतिन के बीच संभावित मुलाकात को लेकर व्हाइट हाउस की ओर से अभी कोई आधिकारिक कार्यक्रम घोषित नहीं किया गया है,लेकिन सूत्रों का कहना है कि यह बैठक बुडापेस्ट में हो सकती है,जहाँ दोनों नेता तटस्थ माहौल में यूक्रेन युद्ध और तेल प्रतिबंधों से जुड़ी नीतियों पर बातचीत करेंगे। यह भी बताया जा रहा है कि इस बैठक में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन की भूमिका मध्यस्थ के रूप में हो सकती है,जिन्होंने हाल के महीनों में पुतिन और ट्रंप दोनों से अलग-अलग बातचीत की है।
वहीं,इस पूरे विवाद में भारत का नाम भी फिर से चर्चा में आ गया है। राष्ट्रपति ट्रंप ने बुधवार को दावा किया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भरोसा दिया है कि भारत जल्द ही रूस से तेल की खरीद को बंद कर देगा। उन्होंने कहा, “मैं प्रधानमंत्री मोदी से बहुत सम्मान करता हूँ। उन्होंने मुझे बताया कि वह रूस से तेल आयात को रोक देंगे। यह एक अच्छा संकेत है।” हालाँकि,भारत ने इस दावे की पुष्टि नहीं की है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि मौजूदा अमेरिकी प्रशासन भारत के साथ ऊर्जा सहयोग को गहराई देने में रुचि रखता है और इस दिशा में दोनों देशों के बीच संवाद जारी है।
ट्रंप का यह बयान ऐसे समय आया है,जब भारत रूस से सस्ते कच्चे तेल की बड़ी मात्रा में खरीद कर रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस से तेल आयात में कई गुना वृद्धि की है। यह कदम भारत के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी साबित हुआ है,लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इसे लेकर चिंता जताई है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर ट्रंप और पुतिन की यह बैठक होती है और इसमें यूक्रेन युद्ध को लेकर कोई ठोस पहल होती है,तो यह ट्रंप की विदेश नीति के लिए बड़ी उपलब्धि हो सकती है। वहीं,उनके विरोधी इसे “राजनयिक ढकोसला” बताते हुए यह दावा कर रहे हैं कि ट्रंप का रूस के प्रति झुकाव अमेरिकी हितों के विपरीत है।
ट्रंप की यह संभावित मुलाकात ऐसे समय में होने जा रही है,जब अमेरिका और रूस के बीच संबंध दशकों में सबसे खराब दौर में हैं। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अमेरिका ने मॉस्को पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे और उसे वैश्विक मंचों से अलग-थलग करने की कोशिश की थी,लेकिन अब ट्रंप के इस नए रुख ने संकेत दिया है कि वह शायद एक “नया संवाद” शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं।
यदि यह बैठक सफल होती है,तो यह न केवल यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक कदम हो सकता है,बल्कि यह विश्व राजनीति की दिशा भी बदल सकती है। ट्रंप ने कहा, “हम शांति चाहते हैं। युद्ध किसी के लिए भी अच्छा नहीं है। अगर यह बैठक शांति की ओर ले जाती है,तो यह पूरी दुनिया के लिए जीत होगी।”
अब सारी निगाहें बुडापेस्ट पर टिकी हैं,जहाँ अगले दो हफ्तों में ट्रंप और पुतिन की संभावित मुलाकात से वैश्विक राजनीति का एक नया अध्याय शुरू हो सकता है। यह मुलाकात केवल अमेरिका-रूस संबंधों की दिशा तय नहीं करेगी,बल्कि यह तय करेगी कि आने वाले वर्षों में विश्व की शक्ति-संतुलन किस ओर झुकेगा।
