सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (तस्वीर क्रेडिट@airnews_puduvai)

सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग की पहली भारत यात्रा,मोदी संग द्विपक्षीय वार्ता से रिश्तों में नई ऊर्जा की उम्मीद

नई दिल्ली,2 सितंबर (युआईटीवी)- भारत और सिंगापुर के बीच राजनयिक संबंधों को नई दिशा देने के लिए सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग 2 से 4 सितंबर तक भारत की आधिकारिक यात्रा पर आ रहे हैं। यह उनकी पहली भारत यात्रा होगी और इसे दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के औपचारिक निमंत्रण पर हो रही है और इसमें उनके साथ उनकी पत्नी,कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल रहेंगे।

भारत और सिंगापुर के बीच संबंधों की ऐतिहासिक गहराई है,लेकिन हाल के वर्षों में इन रिश्तों ने नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं। सिंगापुर,भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का अहम हिस्सा रहा है। पिछले वर्ष सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सिंगापुर यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी का दर्जा दिया गया था। इस संदर्भ में लॉरेंस वोंग की यह यात्रा उस साझेदारी को और मजबूत करने और उसे ठोस परिणामों में बदलने का अवसर लेकर आई है। खास बात यह है कि यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है,जब दोनों देश अपने राजनयिक संबंधों की 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं,जो मित्रता और विश्वास की स्थायी नींव को दर्शाता है।

यात्रा कार्यक्रम के अनुसार,4 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लॉरेंस वोंग के बीच औपचारिक द्विपक्षीय वार्ता होगी। इस वार्ता में दोनों नेता विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की समीक्षा करेंगे और आने वाले समय में नई योजनाओं को अंतिम रूप देंगे। उम्मीद है कि व्यापार,तकनीक,शिक्षा और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया जाएगा। साथ ही,रक्षा और सुरक्षा सहयोग पर भी चर्चा होने की संभावना है,क्योंकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य ने इन विषयों को अत्यंत प्रासंगिक बना दिया है।

इस दौरान वोंग राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मुलाकात करेंगे। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से उनकी बैठकें भी तय हैं। इन मुलाकातों का उद्देश्य केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना ही नहीं,बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी विचार-विमर्श करना है। जलवायु परिवर्तन,ऊर्जा सुरक्षा,आपूर्ति शृंखला की स्थिरता और एशिया में शांति व विकास जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के नेताओं के बीच सार्थक संवाद की उम्मीद की जा रही है।

भारत और सिंगापुर के बीच आर्थिक संबंध लंबे समय से मजबूत रहे हैं। सिंगापुर,भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रमुख स्रोतों में से एक है। वहीं,भारतीय कंपनियों ने भी सिंगापुर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। डिजिटल अर्थव्यवस्था,फिनटेक,स्टार्टअप और नवाचार जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग तेजी से बढ़ रहा है। इस यात्रा से इन क्षेत्रों में नए करार और समझौतों की घोषणा होने की संभावना है।

सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी भारत और सिंगापुर के बीच रिश्ते गहरे हैं। सिंगापुर में भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं और वहाँ की बहुसांस्कृतिक संरचना में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। शिक्षा और लोगों से लोगों के बीच संपर्क भी इन संबंधों की बुनियाद को मजबूत करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि लॉरेंस वोंग की यात्रा से शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में नए कार्यक्रम शुरू हो सकते हैं,जिससे युवा पीढ़ी को लाभ मिलेगा।

भारत सरकार ने इस उच्च स्तरीय यात्रा को लेकर पूरी तैयारी कर ली है। मेहमानों के स्वागत के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं और इस यात्रा को द्विपक्षीय संबंधों के नए अध्याय की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। दोनों देशों के लोग भी इस यात्रा को लेकर उत्साहित हैं,क्योंकि इसके परिणामस्वरूप नई परियोजनाओं और सहयोग योजनाओं की शुरुआत होने की पूरी संभावना है।

विशेषज्ञों का मानना है कि लॉरेंस वोंग की यह यात्रा केवल द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं रहेगी,बल्कि एशिया में शांति,स्थिरता और विकास के लिए भी अहम साबित होगी। चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव,दक्षिण चीन सागर में विवाद और वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के बीच भारत और सिंगापुर का सहयोग क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग की भारत यात्रा को ऐतिहासिक और दूरगामी महत्व की नजर से देखा जा रहा है। यह केवल दोनों देशों के बीच दोस्ती और साझेदारी का प्रतीक नहीं है,बल्कि आने वाले समय में आर्थिक,सांस्कृतिक और रणनीतिक सहयोग के नए आयाम खोलने का भी अवसर है। इस यात्रा से न केवल भारत और सिंगापुर के रिश्ते प्रगाढ़ होंगे,बल्कि पूरे एशिया में सहयोग और विकास की नई संभावनाओं का मार्ग भी प्रशस्त होगा।