नई दिल्ली,4 दिसंबर (युआईटीवी)- अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होते रुपए ने देश की आर्थिक स्थिति और सरकारी नीतियों पर एक नई राजनीतिक बहस छेड़ दी है। बृहस्पतिवार को रुपये की कीमत 90.41 प्रति डॉलर के स्तर तक गिर गई,जो भारतीय करेंसी के इतिहास में सबसे निचला स्तर माना जा रहा है। इस गिरावट ने विपक्ष को सरकार पर हमला करने का बड़ा मौका दे दिया है। कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर तीखे सवाल उठाए हैं और दावा किया है कि यह स्थिति सरकार की आर्थिक प्रबंधन की असफलता का स्पष्ट प्रमाण है।
कांग्रेस महासचिव और वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने रुपये की गिरावट पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यह समय सरकार से गंभीर सवाल पूछने का है। उन्होंने मोदी सरकार को याद दिलाया कि जब मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल में रुपये में उतार-चढ़ाव होता था,तब भाजपा नेतृत्व ने बार-बार सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने रुपया गिरने पर केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा कि मनमोहन सिंह के दौर में मामूली उतार-चढ़ाव पर भाजपा सवाल उठाती थी, इसलिए आज रुपये की ऐतिहासिक गिरावट पर भाजपा को भी जनता को जवाब देना चाहिए। प्रियंका गांधी का यह बयान राजनीतिक गलियारों में तेजी से चर्चा का विषय बना हुआ है,क्योंकि उन्होंने सीधे तौर पर सरकार की जवाबदेही को मुद्दा बनाया है।
रुपये की गिरावट पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि रुपये के लगातार कमजोर होने से यह स्पष्ट होता है कि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं है। उनके अनुसार सरकार के दावों और जमीनी हकीकत में बड़ा अंतर है। खड़गे ने आरोप लगाया कि “मोदी सरकार की नीतियाँ गलत दिशा में जा रही हैं। अगर सरकार की आर्थिक नीतियाँ प्रभावी होतीं,तो रुपया मजबूती दिखाता,लेकिन रुपए की गिरावट बता रही है कि हमारी आर्थिक हालत अच्छी नहीं है।”
खड़गे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर भी सरकार को घेरते हुए पुराने भाजपा बयानों की याद दिलाई। उन्होंने लिखा, “2014 से पहले भाजपा कहती थी—‘क्या कारण है कि हिंदुस्तान का रुपया पतला होता जा रहा है? इसका जवाब देना पड़ेगा।’ आज हम वही सवाल भाजपा सरकार से पूछ रहे हैं। उन्हें जवाब देना ही पड़ेगा।” खड़गे ने कहा कि वैश्विक परिस्थितियों का हवाला देना सिर्फ बहाना है,क्योंकि कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी भारतीय रुपये की तुलना में अधिक स्थिर बनी हुई है।
हाल के दिनों में रुपये में लगातार गिरावट ने व्यापार,उद्योग और आम जनता की चिंताओं को बढ़ा दिया है। विश्लेषकों के अनुसार,डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी का मुख्य कारण वैश्विक बाजार में डॉलर की मजबूती,विदेशी निवेश में गिरावट,कच्चे तेल की ऊँची कीमतें और भू-राजनीतिक जोखिम हैं,लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इन वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है,जिसके परिणामस्वरूप रुपये पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
गुरुवार को रुपये ने 90.41 के स्तर पर खुलकर बाजारों को चौंका दिया। एक दिन पहले ही यह 90.19 पर बंद हुआ था,लेकिन गुरुवार को तेज फिसलन ने हालात और चिंताजनक बना दिए। सिर्फ एक दिन पहले ही,3 दिसंबर को,रुपया पहली बार 90 के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे फिसलकर ऐतिहासिक गिरावट पर पहुँच गया था। रुपये का यह स्तर आम जनता के लिए भी सीधा असर छोड़ता है। आयातित वस्तुएँ महँगी होती हैं,पेट्रोल-डीजल के दामों में दबाव बढ़ता है और मुद्रास्फीति पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर गिरावट का यह क्रम जारी रहा,तो आने वाले महीनों में महँगाई पर ज्यादा दबाव बनेगा और देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी असर पड़ सकता है। हालाँकि,सरकार की ओर से इस विषय पर कोई विस्तृत टिप्पणी नहीं की गई है,परंतु वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वैश्विक परिस्थितियों से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।
विपक्ष,खासकर कांग्रेस,इसे जनता से जुड़े अहम मुद्दे के रूप में पेश कर रही है और सरकार को कठघरे में खड़ा करने में कोई कमी नहीं छोड़ रही है। प्रियंका गांधी और खड़गे के बयान यह संकेत देते हैं कि विपक्ष आगामी राजनीतिक विमर्श में रुपये की गिरावट और आर्थिक चुनौतियों को प्रमुख मुद्दा बनाने की तैयारी में है।
रुपये में रिकॉर्ड गिरावट ने राजनीतिक और आर्थिक दोनों मोर्चों पर हलचल मचा दी है। जहाँ विपक्ष सरकार की आलोचना कर रहा है,वहीं निवेशक और उद्योग जगत इस बात को लेकर चिंतित हैं कि निकट भविष्य में रुपये की स्थिरता की दिशा क्या होगी। सरकार की आर्थिक रणनीति पर उठते सवाल और विपक्ष के बढ़ते हमले आने वाले दिनों में इस मुद्दे को और राजनीतिक रंग दे सकते हैं।

