In freezing Kupwara, Pune medico leads women's march to 'Save the Girl Child'

पुणे के मेडिको ने सर्द कुपवाड़ा में महिलाओं के ‘बेटी बचाओ’ मार्च का नेतृत्व किया

कुपवाड़ा (जम्मू-कश्मीर)/पुणे, 4 जनवरी (युआईटीवी/आईएएनएस)| पुणे के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. गणेश राख के नेतृत्व में 2,000 से अधिक लोगों ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा शहर की सड़कों पर कड़ाके की ठंड में मार्च निकाला और ‘बेटी बचाओ’ के नारे लगाए। आयोजकों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।

In freezing Kupwara, Pune medico leads women's march to 'Save the Girl Child'
In freezing Kupwara, Pune medico leads women’s march to ‘Save the Girl Child’

कुपवाड़ा में अपनी तरह का यह पहला सबसे बड़ा जुलूस देखा गया। यह जुलूस ‘बेटी बचाओ जनांदोलन’ (बीबीजे) के 11वें वर्ष और महाराष्ट्र की महान समाज सुधारक सावित्रीबाई ज्यातिबा फुले की 192वीं जयंती को चिह्न्ति करने के लिए निकाला गया।

कुपवाड़ा की सड़कों पर 18 से 40 आयु वर्ग की 90 प्रतिशत से अधिक महिलाएं मार्च में शामिल हुईं। वे बैनर, तख्तियां और पोस्टर लिए हुई थीं और लगभग 100,000 आबादी वाले कस्बे में बेटियों को बचाने के नारे लगाए।

जुलूस बाद में एक सार्वजनिक सभा में जाकर खत्म हुआ, जिसे डॉ.गणेश राख के अलावा कुपवाड़ा के उपायुक्त सागर डोईफोडे, मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. बशीर अहमद, सरकारी डिग्री कॉलेज के प्राचार्य, प्रोफेसर मोहम्मद शोफी, चिकित्सा अधिकारी डॉ. फिरदोज अहमद भट, आशा कार्यकर्ता रफ्फिका लुलबी और सामाजिक कार्यकर्ता फैयाज अहमद ने संबोधित किया।

डॉ.राख ने चौंकाने वाले आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2001 की जनगणना के अनुसार, जम्मू-कश्मीर का पुरुष : महिला अनुपात 1000:892 था, लेकिन 2011 में यह 1000:940 के राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे 1000:889 तक गिर गया।

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “2021 की जनगणना के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन संकेत हैं कि इस बार स्थिति और भी भयावह हो सकती है।”

डोइफोड ने बीबीजे और डॉ.राख के जागरूकता पैदा करने के प्रयासों और ‘बालिकाओं को मनाने’ के महत्व की सराहना की और कहा कि आने वाले दिनों में पूरे जम्मू और कश्मीर में इसी तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

लुलाबी ने लोगों और माता-पिता से सभी बेटियों को सम्मान के साथ और बेटों के समान व्यवहार करने का आह्वान किया और इस बात पर जोर दिया कि बेहतर भविष्य के लिए बालिकाओं की रक्षा करना बेहद जरूरी है।

उन्होंने कहा, “बेटी हमारा कल है, वह परिवार पर बोझ नहीं है, उसके बिना परिवार, समुदाय और समाज का विकास या प्रगति नहीं हो सकती।”

भट ने कहा, “लोग कहते हैं कि इस्लाम एक से अधिक विवाह की अनुमति देता है, लेकिन अगर यही हाल बना रहा, तो निकट भविष्य में लड़कों को एक शादी के लिए भी लड़की पाना मुश्किल हो जाएगा।”

डॉ.राख ने बताया कि कुपवाड़ा संभागीय आयुक्तालय, जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा आईसीडीएस, जीडीसी, शक्ति मिशन और आशा कार्यकर्ताओं के अलावा अन्य स्थानीय संगठनों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

पुणे के मेडिको ने 3 जनवरी, 2012 को अपने छोटे से मेडिकेयर अस्पताल, एक प्रसूति अस्पताल में बीबीजे की शुरुआत की, जिसमें हर बच्ची के जन्म पर अस्पताल के सभी बिलों को माफ कर दिया गया।

शुरुआत में उन्हें ‘मैड डॉक्टर’ कहा गया, लकिन वह अपने मिशन पर अडिग रहे। उनका मेडिकेयर अस्पताल पिछले 11 वर्षो से बेटियों के जन्म पर केक काटकर और मिठाई बांटकर जश्न मनाता रहा है। इस अस्पताल में 2,450 बच्चियों की मुफ्त डिलीवरी कराई गया है।

एक दशक पहले आईएएनएस ने पहली बार राख की इस मुहिम पर प्रकाश डाला था। उसके बाद बीबीजे आंदोलन वैश्विक सुर्खियों में आ गया और राख को यूरोप, अमेरिका, कनाडा, खाड़ी देशों, एशिया और सुदूर पूर्वी देशों के अलावा कई अफ्रीकी देशों में अभियान चलाने के लिए आमंत्रित किया गया।

डॉ. राख ने गर्व के साथ कहा, “पिछले 11 वर्षो में बीबीजे ने 5 लाख से अधिक मेडिकोज, 13,000 सामाजिक संगठनों और 25 लाख स्वयंसेवकों को आकर्षित किया है, जो पूरे भारत में लड़कियों को बचाने के लिए अपने तरीके से काम कर रहे हैं। हमने देश और विदेश में 1,000 से अधिक मार्च/रैलियों का आयोजन किया है।”

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