वाशिंगटन,12 अगस्त (युआईटीवी)- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ होने वाली अपनी आगामी बैठक से पहले एक बड़ा और चर्चित बयान दिया है। ट्रंप ने साफ कहा है कि वह इस मुलाकात में यूक्रेन के लिए रूस के कब्जे वाले कुछ क्षेत्रों को वापस पाने की कोशिश करेंगे। उनके इस बयान ने न केवल अमेरिका और रूस बल्कि पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अलास्का में होने वाली इस बैठक की ओर खींच लिया है। यह बैठक एक तरह से ‘अनुभव-आधारित’ बताई जा रही है,जिसमें ट्रंप और पुतिन के बीच सीधी बातचीत के जरिए संभावित समाधान तलाशने की कोशिश होगी।
व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने खुलकर कहा कि रूस ने यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है,जिसमें कई महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र शामिल हैं। उन्होंने कहा, “हम यूक्रेन के लिए उस क्षेत्र का कुछ हिस्सा वापस पाने की कोशिश करेंगे।” ट्रंप का यह बयान ऐसे समय आया है,जब रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध यूरोप की सुरक्षा और वैश्विक भू-राजनीतिक स्थिरता के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
ट्रंप ने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में एक ऐसी बैठक हो सकती है,जिसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की भी शामिल हों। उन्होंने यह संभावना जताई कि अलास्का में होने वाली आगामी बैठक में या भविष्य में आयोजित किसी शिखर सम्मेलन में तीनों नेता—रूस,यूक्रेन और अमेरिका एक साथ बातचीत कर सकते हैं। व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को बताया था कि ट्रंप ऐसे त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए तैयार हैं।
इस बीच,नाटो में अमेरिकी राजदूत मैथ्यू व्हिटेकर ने भी रविवार को अपने बयान में कहा कि अभी भी यह संभव है कि जेलेंस्की अलास्का में होने वाली बैठक में शामिल हों। उन्होंने कहा, “इसका अंतिम निर्णय राष्ट्रपति ट्रंप करेंगे और अभी भी फैसला करने के लिए समय मौजूद है।” हालाँकि,उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह भागीदारी इस पर निर्भर करेगी कि बातचीत का एजेंडा और माहौल क्या होता है।
अलास्का शिखर सम्मेलन की खबरों पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि कीव से सलाह लिए बिना किसी भी प्रकार का समझौता “मृत घोषणा” के समान होगा। जेलेंस्की का यह बयान इस बात की पुष्टि करता है कि यूक्रेन अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर किसी भी समझौते को बिना अपनी सहमति के स्वीकार नहीं करेगा।
यह बैठक इस सप्ताह के अंत में अलास्का में होने वाली है,जहाँ ट्रंप और पुतिन आमने-सामने बैठकर वार्ता करेंगे। ट्रंप ने दावा किया है कि पुतिन से मिलने के केवल दो मिनट के भीतर ही उन्हें यह समझ में आ जाएगा कि प्रगति संभव है या नहीं। उनके मुताबिक, “कभी-कभी आपको लंबी बैठक की ज़रूरत नहीं होती। एक नेता की नीयत और इच्छाशक्ति को समझने में सिर्फ कुछ मिनट ही काफी होते हैं।”
गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप ने 8 अगस्त को पुतिन के साथ इस बैठक की आधिकारिक घोषणा की थी। उसी दिन उन्होंने रूस के लिए एक अल्टीमेटम भी जारी किया था,जिसमें कहा गया था कि या तो रूस युद्धविराम पर सहमत हो या फिर उसे और कठोर अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। इस घोषणा ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी थी और कई विशेषज्ञों ने इसे ट्रंप की आक्रामक कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा बताया था।
अलास्का में होने वाली यह वार्ता कई मायनों में ऐतिहासिक मानी जा रही है। एक तरफ रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को खत्म करने की कोशिश होगी,तो दूसरी ओर अमेरिका और रूस के रिश्तों में आई तल्खी को कम करने का भी प्रयास हो सकता है। हालाँकि,इस पूरी प्रक्रिया में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि रूस पहले ही यूक्रेन के बड़े भूभाग,विशेषकर डोनबास और क्रीमिया पर नियंत्रण जमा चुका है और इन्हें वापस करने के लिए वह तैयार होगा या नहीं,यह बड़ा सवाल है।
अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की रणनीति काफी हद तक व्यक्तिगत कूटनीति और त्वरित समझौते की क्षमता पर आधारित है। वह मानते हैं कि व्यक्तिगत मुलाकातों में नेताओं की सोच और स्थिति को सीधे समझा जा सकता है और इसी आधार पर किसी नतीजे तक पहुँचा जा सकता है,लेकिन यूक्रेन संकट की जटिलता,इसके भू-राजनीतिक निहितार्थ और नाटो की स्थिति को देखते हुए यह आसान काम नहीं होगा।
दुनिया भर की नज़रें अब अलास्का की इस बैठक पर टिकी हैं। यदि इसमें कोई सकारात्मक प्रगति होती है,तो यह न केवल यूक्रेन युद्ध में एक मोड़ ला सकती है,बल्कि अमेरिका-रूस संबंधों में भी नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है। दूसरी ओर,अगर बैठक बेनतीजा रहती है,तो यह तनाव को और गहरा कर सकती है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक बार फिर से अनिश्चितता में डाल सकती है।
इस सबके बीच,यूक्रेन की स्थिति बेहद नाजुक है। कीव को उम्मीद है कि अमेरिका उसके हितों की रक्षा करेगा और बिना उसकी सहमति के किसी भी समझौते को आगे नहीं बढ़ाएगा। वहीं,रूस अपनी सैन्य और राजनीतिक बढ़त का इस्तेमाल करके वार्ता में अपने हित साधने की कोशिश करेगा। आने वाले कुछ दिनों में यह साफ हो जाएगा कि अलास्का में ट्रंप और पुतिन की यह मुलाकात इतिहास में एक निर्णायक मोड़ के रूप में दर्ज होगी या केवल एक और असफल कूटनीतिक प्रयास के रूप में याद की जाएगी।